राष्ट्रीय साप्ताहिक ‘पाञ्चजन्य’ (PANCHJANYA) अपनी यात्रा के 77वें वर्ष को मना रहा है। इसके तहत आज यानि सोमवार को दिल्ली के होटल अशोक में “बात भारत की” Confluence कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम में राम मंदिर आंदोलन के जुड़े तीन पत्रकारों ने राम मंदिर आंदोलन की जानकारी साझा की। इन लोगों ने आंदोलन के आंखों देखी विचारों को साझा किया। उन दौरान ये पत्रकार पाञ्चजन्य के लिए कार्य कर रहे थे।
पाञ्चजन्य का आंखों देखी सत्र में पत्रकार अशोक श्रीवास्तव, सुभाष और गोपाल जी शामिल हुए, जहां इन लोगों ने राम मंदिर आंदोलन का आंखों देखी दृश्य बताया। गोपाल शर्मा ने बताया कि अयोध्या आंदोलन से मेरा बहुत गहरा जुड़ाव है। प्रभु राम का आशीर्वाद भी है। उन्होंने कहा कि शायद ही कोई ऐसी प्रमुख घटना हो जिसमें मैं वहां मौजूद न रहा हूं। इस आंदोलन में परमहंस रामदास महाराज जी की बहुत बड़ी भूमिका थी। उन्होंने 9 दिन तक भोजन का त्याग कर दिया था। उन्होंने कहा था कि कारसेवा होगी तभी कारसेवा करूंगा।
उन्होंने कहा कि कारसेवा के दौरान पुलिस ने गोली चलाने के मना कर दिया था। सीआरपीएफ ने कहा था कि हम राम भक्तों पर गोलियां नहीं चलाएंगे। इस कारसेवा से मुलायम सरकार पर तो आक्रोश था ही। इधर अशोक सिंघल जी के माथे पर खून देखकर कारसेवकों पर भी आक्रोश था। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि किस तरीके से बाबरी के ढाचों के ढहाया गया।
इस दौरान सुभाष जी ने बताया कि केंद्र में नेहरू की सरकार थी उस दौरान उन्होंने पत्र लिखकर यूपी सरकार को कहा था कि वहां से मूर्तियां हटवा दो। आज वो कहते हैं कि राम मंदिर बनाने का श्रेय हमको जाता है। हालांकि जिला प्रशासन और यूपी सरकार ने मूर्ति हटाने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि फरवरी 1986 को जब ताला खुला था। केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। उस दौरान कुछ नहीं किए तो शाहबानों को प्रकरण लाकर उसको बैलेंस करने की कोशिश की थी।
इस दौरान अशोक श्रीवास्तव ने बताया कि 6 दिसंबर को मैं उस घटना को कवर कर रहा था। वहां बड़ी संख्या में लोग थे और मैं स्टेज पर खड़े होकर फोटो खींच रहा था, तभी कुछ लोग ढांचे पर चढ़ गए। पहले आडवानी जी ने उन्हें उतारने की कोशिश की, ताकि वो गिर न जाएं, लेकिन जब मामला बढ़ गया तो बाकी लोगों ने कारसेवकों पर जोश भरना शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरा ढांचा ढहा दिया गया।
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