बात भारत की Confluence: भारत विचारों का देश है, इसके पास पुराण, दर्शन हैं: स्वामी अवधेशानंद जी महाराज
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बात भारत की Confluence: भारत विचारों का देश है, इसके पास पुराण, दर्शन हैं: स्वामी अवधेशानंद जी महाराज

स्वामी अवधेशानंद जी महाराज ने कहा कि सनातन का पहला स्वर ही यह है कि आओ और जानो कि क्या नहीं मिटेगा।

by Kuldeep Singh
Jan 15, 2024, 03:04 pm IST
in भारत
Panchjanya baat Bharat ki confluence swami Awdheshanand ji maharaj

स्वामी अवधेशानंद जी महाराज

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पाच्ञजन्य के बात भारती की Confluence में बोलते हुए स्वामी अवधेशानंद जी महाराज ने कहा कि आज से 77 सवर्ष पहले मकर संक्रांति के ही दिन पाच्ञजन्य का प्रकाशन की कल्पना की गई थी। इसलिए मकर सक्रांति का ये दिन पाच्ञजन्य के लिए विशेष दिवस है। इसके मूल में सदा भारत गुंजरित रहा। भारत, जिसे संस्कृत भाषा में प्रकाश का केंद्र कहा गया है। प्रकाश आता है आध्यात्म से। अगर हम भारत की बात करें तो ये प्रकाश का उपासक रहा है तमसो मा ज्योतिर्गमय कहकर उपनिषदों ने आत्म प्रकाश की बात कही है।

असतो मां सदगमय: कहकर उपनिषदों ने स्वयं की सत्ता निजता और अपने अस्तित्व, अपने यथार्थ अथवा अपने सनातन सत्य को जानने की बात कही है। मृत्यर्मामृतमगमय कहकर उपनिषदों, ऋषियों ने इसे अयोनिज, ईश्वरीय स्वर है। हम मृत्यु से परे की सत्ता हैं अजेय हैं हम। हम सीमीची में कालजयी है। हमारे शास्त्रों में आत्मा के सत्य की बात कही गई है, जो कभी मिटती नहीं है।

सनातन का पहला स्वर ही यह है कि आओ और जानो कि क्या नहीं मिटेगा। आत्मा के सत्य की बात उपनिषदों ने कही है। इसी सत्य को जानने के लिए नचिकेता यम के पास गए थे। इसी सत्य को जानने और प्रकाशित करने का काम पाच्ञजन्य बीते 77 सालों से कर रहा है। इसके स्वर कई बार वैदिक और उपनिषदिक लगते हैं। पाच्ञजन्य में आपको एक अद्भुत इतिहास झांकता हुआ दिखाई देता है। अगर हम इतिहास की बात करें तो हमारे रामायण और महाभारत दो ही इतिहास हैं। पाच्ञजन्य के तथ्य औक कथ्य कभी भी मिथ्या नहीं रहे। इसमें कभी भी छद्म, छल और वितंडा नहीं रहा। पाच्ञजन्य ने कभी भी ऐसा नहीं किया कि कोई ऐसी गोपनीयता को भंग कर दिया जाए, जिससे समाज में उत्तेजना फैले।

स्वामी अवधेशानंद जी कहते हैं, “जब भी बात की जाती है पत्रकारिता की तो पाच्ञजन्य ने ध्येवादी पत्रकारिता की है, तो वो कौन लोग थे जो ध्येयवादी पत्रकारिता समर्पित रहे। ऐसे में अटल जी का स्मरण होना आवश्यक है। जब पिछली बार मैं पाच्ञजन्य के संवाद में आया था तो मुझे पता चला कि पहले इसका नाम प्रलयंकर रखा गया था। बाद में इसे बदलकर पाच्ञजन्य रखा गया। जब पाच्ञजन्य का भैरव स्वर जब दुर्योधन, दुशासन, कृपाचार्य और आचार्य द्रोण ने तो महाभारत के शुरू होने से पहले ही कौरवों की सेना 7 पग पीछे चली गई। उन्होंने खुद को हारा मान लिया था। पहली बार पितामह भीष्ण के चेहरे पर पसीना आया था। भगवान श्रीकृष्ण के पाच्ञजन्य शंख फूंकते ही घोड़े हिनहिनाने और हाथी चिंघाड़ने लगे। पितामह भीष्म भी हताश दिखे।”

क्या है भारत

भारत की परिभाषा बताते हुए स्वामी अवधेशानंद जी महाराज ने कहा कि भारत एक तत्व है, दर्शन है, ये एक विचार है। आत्मा के प्रकाशन की दृढ़ता से आद्य काल से खड़ी ज्ञान सत्ता का नाम है भारत। हां भारत देश भी है, ये विचार और सिद्धांत भी है। भारत उस विचार का नाम है, जो ये दहाड़ता रहा है कि सब बातें छोड़कर पहले अपने तत्व को जानो जो अजेय है, नित्य और अमर है। जो प्रकाश के गीत गाता है और आत्मा के नित्यता की बात करता है उसे भारत कहते हैं।

थोड़ी देर के लिए अगर ये मान भी लिया जाए कि पश्चिम के पास कुछ चीज रही है तो वे इस बात को मानते हैं कि सत्य तो केवल एक है, जिसे संवेदांगों के द्वारा अनुभूत किया जा सके। लेकिन सनातन धर्म में ऐसी चीजों को मिथ्या कहा गया है, जिसे इंद्रियों से अनुभूत किया जा सके। सत्य तो प्रकृति से पृथक सत्ता है, जो नित्य परिवर्तन है। उसी सत्य की चर्चा भारत करता रहा है। इसी लिए कई संस्कृतियों के मिटने के बाद भी भारत जस का तस है। भारत के बहुत से ग्रंथ बाहर चले गए, जिन्हें छुपा कर रखा गया है। विमान शास्त्र अभी-अभी पकड़ा गया है, वो भारत से गया था। पश्चिमी देशों में ये जो भौतिक प्रगति दिखाई दे रही है, वो सभी भारत की चीजें हैं।

आर्टिफिशियिल इंटेलीजेंस को लेकर स्वामी अवधेशानंद महाराज ने कहा कि इस फील्ड में सबसे ज्यादा काम करने वाले अधिकतर एक्सपर्ट भारत के ही हैं। इसलिए ये समझने की बात है कि भारत ज्ञान और विचार का देश है। अगर भारत की बात की जाए तो इसके पास इतिहास, पुराण, दर्शन हैं। भारत का ये ज्ञान ही हमें ये विश्वास देता है कि देह मरती है हम नहीं। मैं सनातन, सत्य और नित्य हूं। भारत ने दुनिया को विवेक दिया है, जिससे सत्य को पहचाना जा सकता है। भारत कभी सुख की बात नहीं करता, ये तो आनंद की बात करता है, सुख दैहिक है, जबकि आनंद आत्मा आता है। भारत सच्चिदानंद की बात करता है। भारत विचारों की बात करता है। पाच्ञजन्य में विचारों के स्वर मुखर होते रहे हैं। पाच्ञजन्य आज भी जीवंत और जागृत है, उसके तेवर कभी नहीं बदले, कठिनाई छू नहीं पाई, बाधा और विरोध बोना हो गया। पाच्ञजन्य 77 वर्षों के बाद भी चैतन्य है।

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