युद्ध की आशंका से डरे China ने Myanmar सेना और विद्रो​ही गुटों में कराया Ceasefire, कुनमिंग में हुआ समझौता
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युद्ध की आशंका से डरे China ने Myanmar सेना और विद्रो​ही गुटों में कराया Ceasefire, कुनमिंग में हुआ समझौता

चीन को युद्ध के उसकी सीमाओं तक आ पहुुंचने और उसके यहां अफरातफरी मचाने का भय सता रहा था। इसलिए कम्युनिस्ट चीन ने कोशिश की कि किसी तरह युद्ध रुक जाए

by WEB DESK
Jan 13, 2024, 12:40 pm IST
in विश्व
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म्यांमार में सैन्य शासन और जातीय अल्पसंख्यक विद्रोही गुटों के बीच लंबे समय से युद्ध छिड़ा हुआ है। दोनों ही पक्ष अपना अपना पलड़ा भारी बताते आ रहे हैं। इस युद्ध में अब तक जानोमाल की काफी हानि​ हो चुकी है, लेकिन कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं दिख रहा। ऐसे में मयांमार से सटे चीन को युद्ध के उसकी सीमाओं तक आ पहुुंचने और उसके यहां अफरातफरी मचाने का भय सता रहा था। इसलिए कम्युनिस्ट चीन ने कोशिश की कि किसी तरह युद्ध रुक जाए। म्यांमार सीमा से सिर्फ 400 किलोमीटर दूर चीन के कुनमिंग में समझौता वार्ता की गई और फिलहाल युद्धविराम हो गया।

म्यांमार सेना तथा विद्रोही गुटों के गठबंधन के बीच युद्धविराम पर सहमति तो जता दी गई है, लेकिन यह अस्थायी है। म्यांमार जुंटा की तरफ से जॉ मिन तुन ने कहा है कि वे चाहते हैं युद्धविराम के इस समझौते पर आगे भी बात हो ताकि इसे मजबूती से अमल में लाया जा सके। साथ ही, सीमा के दरवाजे भी फिर से खोल देने की बात भी की जा सकती है।

म्यांमार के दोनों पक्षों के बीच इस समझौते की पृष्ठभूमि में चीन में इस डर का उपजना है कि कहीं युद्ध की तपिश उसके द्वार तक न आ पहुंचे। इस चिंता के चलते बीजिंग ने म्यांमार में संघर्ष के रुकने में ही अपनी भलाई देखी और समझौते के लिए प्रयास किए। उसी के दखल से युद्धरत पक्षों में फिलहाल संघर्षविराम को लेकर सहमति बनी है।

म्यांमार में तख्तापलट के बाद से ही सत्तारूढ़ सैन्य जुंटा के सामने विद्रोही गुटों ने जबरदस्त चुनौती खड़ी कर दी

म्यांमार में तख्तापलट के बाद से ही सत्तारूढ़ सैन्य जुंटा के सामने विद्रोही गुटों ने जबरदस्त चुनौती खड़ी कर दी ​थी। सीमा पार व्यापार तो प्रभावित हुआ ही था, चीन को यह भी लग रहा था कि म्यांमार से ‘शरणार्थियों’ की बड़ी तादाद उसके यहां न आ बसे। उससे एक और मुसीबत खड़ी होती जिसे झेल पाने की चीन की फिलहाल स्थिति नहीं है।

उल्लेखनीय है कि 2021 के फरवरी माह में एक बड़ी उथलपुथल के बाद म्यांमार में सेना ने देश की कमान अपने हाथ में ली थी और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गईं आन सान सू की के नेतृत्व वाली सरकार को कुर्सी से हटाकर नेता आन सान को उनके घर में नजरबंद कर दिया था। वे आज भी नजरबंदी ही झेल रही हैं। उधर म्यांमार के जातीय गुटों ने विद्रोह कर दिया था और सेना के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष शुरू किया था। अब इस समझौते के बाद फिलहाल संघर्ष के थमने की उम्मीद जताई जा रही है।

म्यांमार के सैन्य शासन अथवा जुंटा ने कल इस समझौते की पुष्टि भी कर दी है। सैन्य जुंटा के प्रवक्ता ने बताया कि चीन की मध्यस्थता में कुनमिंग में हुई चर्चा में जातीय अल्पसंख्यक गुटों के गठबंधन और जुंटा में ‘अस्थायी संघर्षविराम’ पर सहमति बनी है।

म्यांमार में इस संघर्ष के शुरू होने के लगभग तीन साल बाद यह समझौता हुआ तो है लेकिन इसके अस्थायी होने की वजह से विशेषज्ञों का मानना है कि शायद यह लंबा न चल पाए। विवाद के बिंदु अनेक हैं, जिन पर कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं है।

चीन को इससे चिंता इस बात की थी कि म्यांमार से सटी उसकी उत्तरी सीमा पर हिंसा ने प्रचंड रूप ले रखा था। डर था कि उसका असर चीन तक जा पहुंचे। अपनी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी के चलते देशवासियों का आक्रोश झेल रहे कम्युनिस्ट शासकों को लगा कि म्यांमार में संघर्ष का असर चीन तक पहुंचा तो हालात बेकाबू हो सकते हैं, इसलिए भी उसने यह पहल की है।

म्यांमार में तख्तापलट के बाद से ही सत्तारूढ़ सैन्य जुंटा के सामने विद्रोही गुटों ने जबरदस्त चुनौती खड़ी कर दी ​थी। सीमा पार व्यापार तो प्रभावित हुआ ही था, चीन को यह भी लग रहा था कि म्यांमार से ‘शरणार्थियों’ की बड़ी तादाद उसके यहां न आ बसे। उससे एक और मुसीबत खड़ी होती जिसे झेल पाने की चीन की फिलहाल स्थिति नहीं है।

संघर्षविरात समझौते के बारे में चीन के विदेश मंत्रालय ने भी विज्ञप्ति जारी करके जानकारी दी है। उससे पता चलता है कि चीन के कुनमिंग में 10-11 जनवरी को म्यांमार के युद्धरत दोनों पक्षों के बीच संघर्षविराम पर बात हुई थी। तय हुआ कि दोनों पक्ष फौरन गोलीबारी बंद करेंगे।

Topics: ceasefirerefugeeChinakunmingallianceसंघर्षविरामrebelsचीनfearम्यांमारmyanmar china relationsbeijingwarmyanmar
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