‘हिजाब न पहनने वाली महिलाओं का किरदार खराब होता है/ वे आवारा होती हैं’, कहने वाले मुस्लिम नेता के खिलाफ केरल में तीन महीने बाद मुकदमा दर्ज किया गया है। यह मुकदमा लेखिका एवं एक्टिविस्ट वीपी जुहारा की शिकायत पर दर्ज हुआ है। उन्होंने अक्टूबर में पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई थी और उन्होंने मौलाना तथा समस्थ केरल जेम-इय्युतल उलामा के नेता मुक्कम उमर फैजी के इस महिला विरोधी बयान के खिलाफ हिजाब उतारकर विरोध भी जताया था।
दरअसल यह सारा मामला शुरू हुआ केरल के एक वामपंथी नेता के अनिल कुमार के एक बयान के बाद। सीपीएम के नेता के अनिल कुमार ने एक नास्तिक संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अक्टूबर में यह कहा था कि मुस्लिम महिलाओं ने मुस्लिम बहुल मलप्पुरम जिले में मार्क्सवादी पार्टी के प्रभाव के चलते ही हिजाब पहनना छोड़ दिया है। इस घटना के बाद जहां कट्टरपंथी नेता जैसे समस्थ के अब्दुस्समद पूककोट्टूर, मुस्लिम लीग के नेता एम शाजी और केपीए मजीद तथा मार्क्सवादी पार्टी नेतृत्व के कट्टर आलोचक शाजी, के अनिल कुमार के बहाने पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ बयान देने लगे थे। अक्टूबर में इस बयान पर इतना विरोध मचा था कि महिलाओं के लिए आजादी की बात करने वाली सीपीएम बैकफुट पर आई थी और उसे यह कहना पड़ा था कि यह अनिल कुमार का निजी बयान है। परन्तु मुक्कम उमर फैजी ने एक टीवी कार्यक्रम में इस बयान के विरोध में जो कहा था वह बेहद शर्मनाक था। उमर फैजी ने मुस्लिम महिलाओं पर उंगली उठाई थी। यह कहा था कि “मुस्लिम महिलाओं को पर्दा करना चाहिए, उन्हें अपना शरीर दूसरे आदमियों को नहीं दिखाना चाहिए। दूसरे आदमियों के सामने आवारा जीवन जीना कोई प्रगतिशीलता नहीं है और मुस्लिम महिलाओं को ऐसे आवारापन/लम्पटई से बचना चाहिए। आप हमें पुराने ख्यालों का कह सकते हैं, मगर हमें इसी पर टिकना है!”
इस बयान को लेकर एक्टिविस्ट एवं लेखिका वीपी जुहारा ने 8 अक्टूबर 2023 को, जो खुद एक प्रगतिशील मुस्लिम महिला आन्दोलन एनआईएसए की संस्थापिका हैं, ने विरोध दर्ज कराया था। कुदुम्बश्री के “थिरिके स्कूली अर्थात स्कूल की ओर वापस” आयोजन में बोलते हुए फैजी की टिप्पणी पर आपत्ति जताई थी और कहा था कि यह महिला की अपनी पसंद है कि वह पर्दा करे या न करे। उन्होंने यह भी कहा था कि वह बचपन से ही हिजाब पहनकर बड़ी हुई हैं और वह उनके जीवन का हिस्सा बन गया था। वह इसे इसलिए पहनती थीं क्योंकि वह उनकी आदत में शुमार था, न कि वह मुस्लिम होने के नाते इसे पहनती हैं। फैजी के बयान का विरोध करते हुए उन्होंने अपने सिर से साड़ी का पल्लू हटा दिया था। मगर इसके बाद उन्हें आयोजन में ही विरोध का सामना करना पड़ा था। स्कूल के पेरेंट टीचर एसोसिएशन के कुछ सदस्यों ने उनके खिलाफ नारे लगाए तो वह आयोजन स्थल से चली गयी थीं। बाद में वह पुलिस स्टेशन गयी थीं। उन्होंने फैजी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि पुलिस ने अक्टूबर ने शिकायत दर्ज कर ली थी, मगर यह भी कहा था कि वह कानूनी सलाह के बाद ही कोई कदम उठाएंगे। अब पूरे तीन महीने बाद नदाक्कवु पुलिस ने उमर फैजी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। जुहारा ने कहा कि यह मुस्लिम महिलाओं की जीत है और उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम महिलाओं का अपना एक स्वाभिमान होता है और किसी को भी ऐसे बयान देने का साहस नहीं होना चाहिए।
हालाँकि उनकी शिकायत पर तीन महीने बाद मुकदमा दर्ज हो गया है, परन्तु अब सबसे बड़ा प्रश्न उठता है कि जुहारा जिस प्रगतिशीलता के लिए लड़ रही हैं, क्या उनकी इस लड़ाई में स्वघोषित प्रगतिशील लोग उनके साथ हैं? दुर्भाग्य से भारत में प्रगतिशीलों की परिभाषा में वह लोग आते हैं जो कर्नाटक में कुछ कट्टर मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनकर स्कूल जाने की मांग को और उस मांग को लेकर उठाए गए क़दमों को वस्त्र पहनने का अधिकार और उनकी अस्मिता का अधिकार बताते हैं, परन्तु जब जुहारा जैसी महिलाएं उमर फैजी जैसे पुरुषों का विरोध करते हुए मजहबी कट्टरता के विरोध का सामना करती हैं, तो उस मामले पर उनका मुंह सिल जाता है।
भारत में दुर्भाग्य से प्रगतिशील लेखक एवं कम्युनिस्ट फेमिनिस्ट लेखिकाएं कर्नाटक में उन मुस्लिम लड़कियों के पक्ष में आकर जो स्कूल तक में हिजाब और बुर्का पहनकर आना चाहती हैं, लाखों मुस्लिम लड़कियों को कट्टरता के अंधेरे में धकेलने में अपना योगदान जरूर देती हैं, मगर वह अपने ही लेखक समुदाय की जुहारा के पक्ष में एक भी शब्द नहीं लिखती हैं। जुहारा की यह लड़ाई ईरान और अफगानिस्तान की उन लाखों महिलाओं द्वारा लड़ी जा रही उसी लड़ाई का एक हिस्सा है, जो मजहबी कट्टरता के खिलाफ है, जो महिलाओं को परदे में रखकर उनकी सोच संकुचित करने के खिलाफ है और दुर्भाग्य से कम्युनिस्ट फेमिनिस्ट संकुचित सोच के तो साथ हैं, परन्तु जुहारा जैसी महिलाओं के साथ नहीं! और यह भी हो सकता है कि उन्होंने जुहारा का नाम भी पहले न सुना हो!
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