Paramahansa Yogananda Jayanti 2024: श्रीमद्भगवद गीता और पतंजलि के योग सूत्र में निहित प्राचीन योग संपदा से आधुनिक दुनिया को लाभान्वित करने का श्रेय यदि किसी को जाता है, तो वह महान ऋषि परमहंस श्री योगानंद हैं। परमहंस योगानंद जी, जिन्होंने “क्रियायोग” के माध्यम से ईश्वर-प्राप्ति और आत्म-साक्षात्कार की वैज्ञानिक पद्धति विकसित की। उन्हें बीसवीं सदी का सबसे महान वैश्विक योगी माना जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली लोकप्रिय आत्मकथाओं में से एक “योगी कथामृत” में बताया गया है कि जब परमहंस योगानंद ने 1952 में अमेरिका में अपना शरीर छोड़ा था, तो उनके शव को जांच के लिए एक महीने तक शवगृह में रखा गया था। एक माह की लंबी अवधि के बाद भी उस शरीर में रत्ती भर भी विकृति नहीं आयी।
उस अमेरिकी शवगृह के प्रभारी ने एक पत्र के माध्यम से लिखित रूप से इस बात की पुष्टि की कि मृत्यु के एक माह बाद भी शव का ताजा रहना अपने आप में एक आश्चर्यजनक सत्य और अद्भुत उदाहरण है।
अमेरिका में योगानंद के स्मारक में संरक्षित वह पत्र आज भी दुनिया भर में इस महान योगी के अमर संदेश का प्रचार कर रहा है कि शुद्ध अंतःकरण से किया गया “क्रियायोग” ईश्वरीय अनुभूति के माध्यम से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
महायोगी श्री श्री योगानन्द जी के अनुसार द्वापर युग में पूर्णावतार श्रीकृष्ण ने शरणागत अर्जुन को ज्ञान, भक्ति और कर्मयोग का ज्ञान देते हुए सबसे पहले “क्रियायोग” की जानकारी दी थी। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि उन्होंने ही अपने पूर्व अवतार में इस अविनाशी क्रिया योग की जानकारी वैवस्वत मनु को दी थी और मनु से यह विद्या भारतभूमि के महानतम सूर्यवंशी सम्राट मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के वंशज महाराज इक्ष्वाकु तक और योगशास्त्र के महानतम विशेषज्ञ महर्षि पतंजलि तक पहुंची थी।
महर्षि पतंजलि का भी मानना था कि क्रियायोग प्राणायाम के माध्यम से शारीरिक अनुशासन, मानसिक नियंत्रण और ॐ पर ध्यान केंद्रित करके सांस लेने और छोड़ने के क्रम को तोड़कर मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। प्राचीन भारत में “क्रियायोग” काफी लोकप्रिय था, लेकिन धीरे-धीरे इस विद्या के विशेषज्ञों की इसे गोपनीय रखने की नीति और लोगों की उदासीनता के कारण यह योग धीरे-धीरे विलुप्त हो गया।बाद में परमहंस योगानंद ने अपने गुरु से प्राप्त इस अद्वितीय योग ज्ञान को देश-दुनिया में लोकप्रिय बनाया। उन्होंने भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी और अमेरिका में सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप नामक संस्थाओं की स्थापना की। आज इन संस्थानों से जुड़े देश-दुनिया के हजारों केंद्रों में वही क्रिया योग सिखाया जाता है जो काशी के महान संत लाहिड़ी महाशय ने अपने गुरु महावतार बाबा जी से सीखा था।
तत्पश्चात लाहिड़ी महाशय से क्रियायोग की दीक्षा लेकर स्वामी युक्तेश्वर गिरि ने अपने सुपात्र शिष्य योगानंद को “क्रियायोग” में दीक्षित किया था फिर अपने गुरु स्वामी युक्तेश्वर गिरि की आज्ञा से योगानंद जी ने इस आध्यात्मिक गोग सम्पदा से विश्व वसुधा को लाभान्वित किया था।
लाहिड़ी महाशय के महावतार बाबाजी से 1861 में “क्रियायोग” की दीक्षा प्राप्त करने की अत्यंत रोचक व्याख्या “योगी कथामृत” में मिलती है। योगानन्द ने लिखा है, “उस बैठक में महावतार बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय से कहा था कि यह “क्रियायोग” जिसे मैं इस उन्नीसवीं सदी में तुम्हारे जरिए इस दुनिया को दे रहा हूं; यह उसी विज्ञान का पुनः प्रवर्तन है जो भगवान कृष्ण ने सदियों पहले अर्जुन को दिया था और बाद में पतंजलि ऋषि को ज्ञात हुआ था।
परमहंस योगानन्द के अनुसार “क्रियायोग” श्वसन संस्थान को साधने की एक सरलमनःकायिक कार्यप्रणाली है। वे कहते थे कि मन की एकाग्रता धीमे श्वसन परनिर्भर है क्योंकि तेज या विषम श्वास भय, काम क्रोध आदि हानिकर भावावेगों की अवस्था का सहचर है। उनके अनुसार क्रियायोगी मन से अपनी प्राणशक्ति को मेरुदंड के छह चक्रों में ऊपर-नीचे घुमाते हैं। आधे मिनट की यह क्रिया एक
वर्ष की स्वाभाविक तौर पर होने वाली आध्यात्मिक उन्नति के बराबर होती है। इसीलिए प्राणशक्ति के द्वारा मन को नियन्त्रित करने वाला क्रियायोग अनन्त तकपहुंचने के लिये सबसे सरल प्रभावकारी और अत्यन्त वैज्ञानिक मार्ग है।
परमहंस योगानंद जी जानते थे कि उनके शरीर छोड़ने के बाद भी ऐसे कई लोग आएंगे जो ईश्वर प्राप्ति के इस मार्ग पर चलना चाहेंगे। इसीलिए मानव जाति की आने वाली पीढ़ियों को क्रिया योग से लाभान्वित करने के लिए “योगदा सत्संग पथमाला” का संकलन किया गया है। कोई भी इच्छुक व्यक्ति इस साहित्य को योगदा सत्संग सोसाइटी के केंद्रों से डाक द्वारा प्राप्त कर सकता है। ये पाठ अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में उपलब्ध हैं। इनको पढ़ने के लिए एक ही योग्यता की अनिवार्य है- आत्मोन्नति एवं ईश्वर-साक्षात्कार की प्रबल इच्छाशक्ति। आपको बता दें कि साल 1920 में अमेरिका के बोस्टन में आयोजित “इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ रिलीजियस लिब्रल्स” को संबोधित करने वाले परमहंस योगानंद इस धार्मिक सभा का प्रतिनिधित्व करने वाले तीसरे महान भारतीय संत माने जाते हैं।
उनसे पहले क्रमशः स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामतीर्थ ने ऐसे धार्मिक सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था और विश्व मंच पर भारत के प्राचीन आध्यात्मिक विज्ञान की विजय पताका फहरायी थी।
यह जानना दिलचस्प है कि 5 जनवरी 1893 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में जन्मे इस भारत भूमि के इस वैश्विक योगी की स्मृति में भारत सरकार द्वारा दो बार डाक टिकट जारी किया जा चुका है। सर्वप्रथम वर्ष 1977 में योगानंदजी की 25वीं महासमाधि दिवस के मौके पर और दूसरी बार परमहंस योगानंदजी के 65वें महासमाधि दिवस पर वर्ष 2017 में।
गौरतलब है कि स्वामी परमहंस योगानंद की आत्मकथा “योगी कथामृत”, पहली बार 1946 में प्रकाशित हुई थी, जिसका अब तक 45 भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। इसमें 13 भारतीय भाषाएं भी शामिल हैं। प्रकाशन के सात दशक बाद भी इस पुस्तक की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है।
1999 में इसे शताब्दी की 100 सर्वोत्तम आध्यात्मिक पुस्तकों की सूचीमें शामिल किया गया था। इसके अलावा उनकी अन्य लोकप्रिय कृतियों में “दसाइंस आफ रिलीजन”, “साइंटिफिक हीलिंग”, “कास्मिक चैट्स” तथा “ए मेटाफिजिकल मेडिटेशंस” आदि हैं। परमहंस के जीवन पर आधारित “अवेक”नाम की एक फिल्म भी रिलीज हो चुकी है।
लगभग सौ साल पहले भारत से अमेरिका आए परमहंस योगानंद को पश्चिम में भारतीय योग का पहला गुरु माना जाता है। योगानंद के प्रशंसकों में नोबेल पुरस्कार विजेता सीबी रमन के पोते स्वामी कृष्णानंद, दिवंगत सितार वादक रविशंकर, दिवंगत एप्पल सीईओ स्टीव जॉब्स, प्रसिद्ध पॉप समूह द बीटल्स के सदस्य और भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली जैसी कई लोकप्रिय हस्तियां भी शामिल हैं। कहा जाता है कि स्टीव जॉब्स भी अपने आईपैड पर एक ही किताब रखते थे और वो थी “ऑटो बायोग्राफी ऑफ ए योगी”।
टिप्पणियाँ