सागर मंथन में ‘सुरक्षा और सवाल’ विषय पर उत्तराखंड के मुख्य वन्य संरक्षक श्री पराग धकाते और कर्नल (से.नि.) तेज के. टिक्कू से वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा ने संवाद किया। प्रस्तुत हैं उस संवाद के मुख्य अंश-
हमारे देश की 25 प्रतिशत भूमि पर जंगल हैं। जहां जंगल की बात होती है, वहां जल की बात होती है। आक्सीजन, पानी इत्यादि का स्रोत जंगल है। इसकी सुरक्षा का दायित्व वन विभाग के साथ हम सभी का है। उत्तराखंड के जंगलों पर अतिक्रमण हो रहा था। जगह-जगह मजारें बनाई जा रही थीं।
राज्य सरकार ने अभियान चलाकर लगभग 13,000 हेक्टेयर भूमि को अतिक्रमण मुक्त करा लिया है। आने वाले समय में फिर कहीं अतिक्रमण न हो, इसके लिए नीति बनाई गई है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जहां की जनसांख्यिकी बदलती है, वहां की आर्थिक स्थिति पर भी उसका दुष्प्रभाव पड़ता है। स्थानीय लोगों का अधिकार मारा जाता है। जब हम पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को जोड़ने की बात करते हैं तब अनेक बिंदुओं पर ध्यान देना होता है। बहुत सारे लोग प्रत्यक्ष रूप से जंगल से जुड़े हैं। इन लोगों का जीविकोपार्जन जंगल पर निर्भर है।
उत्तराखंड में वन पंचायत सिद्धांत है, जहां महिलाएं वनों का प्रबंधन करती हैं। हमारे देश के कई राज्य ऐसे हैं, जो अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े हैं। उनकी सीमा जंगल होती है और वहीं से गलत तत्व या भारत विरोधी हरकतें करने वाले लोग प्रवेश करते हैं। हालांकि सुरक्षा के लिए वहां सुरक्षाकर्मी एवं वन्यकर्मी तैनात होते हैं। मेरा मानना है कि इन वन्यकर्मियों को भी प्रशिक्षण देकर एक सुरक्षाकर्मी की तरह तैयार करना चाहिए। इससे हमारी सुरक्षा और मजबूत होगी।
आतंकवाद का होगा अंत — कर्नल (से.नि.) तेज के. टिक्कू
कश्मीर घाटी के लगभग 27 प्रतिशत भूभाग पर जंगल हैं, वहीं 60 प्रतिशत भूभाग पर पहाड़ी है। जंगल के बिना जीवन नहीं है। इसके बावजूद मेरा मानना है कि जिन जंगलों में कायर आतंकवादी छुप कर हमारे वीर सैनिकों पर हमला करते हैं, उन्हें आतंकवादियों से मुक्त कराना ही होगा। इसलिए ऐसी नीति बने कि आतंकवादियों से जंगल मुक्त रहें। पूंछ, राजौरी क्षेत्र में जंगल बहुत हैं। वहां सीमा बिल्कुल सटी हुई है।
यही कारण है कि आतंकवादी किसी घटना को अंजाम देकर उन जंगलों में छुप जाते हैं। ऐसे इलाके भारतीय सेना के लिए बहुत बड़ी चुनौती हैं। पर जिस तरह से भारतीय सेना काम कर रही है यकीन मानिए बहुत जल्दी ही वहां पर आतंकवाद का अंत हो जाएगा। जम्मू-कश्मीर में सरकार की नीतियों में बहुत बदलाव आया है।
आजादी से लेकर 2016 तक वहां की नीति एक विशेष विचार पर आधारित थी। इससे देश के विरुद्ध आवाज उठाने वालों को बढ़ावा मिलता था। आज वहां पर इन चीजों में बदलाव हुआ है। 2016 से पहले दो-तीन परिवारों के हाथ में वहां की सत्ता रही है। इन परिवारों के लोग दिल्ली में अलग बातें करते थे, तो कश्मीर में अलग।
इस कारण पाकिस्तान को हमारे यहां दखलअंदाजी करने में बहुत आसानी होती थी। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद तो वहां के लोगों की सोच में बहुत बड़ा बदलाव आया है। अब जम्मू-कश्मीर में काफी हद तक आतंकवाद पर अंकुश लग चुका है।
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