दिनांक 22 जनवरी 2024 को अयोध्या जी में बन रहे भव्य मंदिर के गर्भगृह में श्री रामलला के श्री विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होगी। इसी के चलते तैयारियां जोरों पर हैं, मंदिर निर्माण स्थल पर मंदिर के शिल्पकार (श्रमिक और अभियंता) कई शिफ्टों में लगातार काम कर रहे हैं।
अब जब प्रभु रामलला अपने घर विराजने वाले हैं तो टीम पाञ्चजन्य अयोध्या में चल रही तैयारियों को देखने के अलावा उन बलिदान हुए कारसेवकों के घर जाकर ना सिर्फ उनका हालचाल ले रही है बल्कि आज वह किस हालत में हैं और मंदिर निर्माण को देखते हुए कैसा महसूस कर रहे हैं, उसको भी जानने का प्रयास कर रही है। इस रिपोर्ट में हम बात करेंगे उस बलिदानी रामभक्त की जिसे अयोध्या गोलीकांड में पहली गोली लगी थी। जो खुद गोली लगने पर घायल होने के बावजूद दूसरे की जान बचाने का प्रयास करते हुए बलिदान हुआ।
टीम पाञ्चजन्य अयोध्या के नयाघाट क्षेत्र में मिठाई की दुकान चलाने वाले वासुदेव गुप्ता के घर पहुंची। कुल दो कमरों के मकान में जगह-जगह उपयोग की हुई ईटें और टूटा हुआ फर्नीचर पड़ा हुआ था। जानकारी करने पर पता चला कि ये सब उनकी दुकान का है। जो टूट गई है और पड़ोसियों द्वारा मुकदमें आदि के चलते फंसी हुई है।
घर पहुंचने पर हमारी मुलाकात वासुदेव गुप्ता की बेटी सीमा गुप्ता से हुई। हमारे निवेदन पर उन्होंने अपना घर हमें दिखाया जहां छोटे कमरों में सामान आदि बिखरे पड़े थे। हालांकि सीमा गुप्ता ने अपने आर्थिक हालतों को लेकर खुलकर कुछ नहीं बताया पर घर की हालत बता रही थी कि परिवार का समय गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है।
आर्थिक संकट और बिमारियों ने तोड़ा परिवार
सीमा गुप्ता ने बताया कि उनके पिताजी अपने पीछे पत्नी 3 बेटियां और 2 बेटों को छोड़ कर गए थे। लेकिन पिता के जाने के बाद अचानक घर में बिमारियों ने डेरा डाल लिया और वर्ष 1997 में बहन वर्ष 2008 में भाई और अंत में वर्ष 2014 में माता दिवंगत हो गईं। सीमा ने कहा पिता जी के जाने के बाद से ही घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई पैसों का आभाव था इसलिए अच्छा इलाज नहीं हो पाया। अगर घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होती तो शायद मेरे भाई बहनों को तो बचाया ही जा सकता था।
मंदिर ट्रस्ट ने दिया रोजगार
सीमा ने बताया अब परिवार की 2 बेटियां और एक बेटा विवाहित और उसके दो बच्चे ही रह गए हैं। घर की जब आर्थिक स्थिति की जानकारी मंदिर ट्रस्ट और ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय जी को हुई तो उन्होंने भाई को रामजन्मभूमि के लॉकर विभाग में नौकरी दे दी है। वर्तमान में उसी नौकरी से परिवार का बस गुजरा ही चल पा रहा है। लेकिन जहां कुछ नहीं था वहां इतना भी डूबते को तिनके के सहारे जैसा है। फिलहाल हमने खुद को प्रभु श्रीराम की शरण में रखकर सब कुछ उनके ऊपर छोड़ रखा है। हमें उम्मीद है कि आज नहीं तो कल मोदी जी और योगी जी की सरकार द्वारा उनके परिवार की दशा सुधारने में मददगार होगी।
दुकान पर कारसेवकों की सेवा करते थे “वासुदेव हलवाई”
अपने पिता को याद करते हुए सीमा गुप्ता ने बताया कि हम मूलतः अयोध्या जी के ही निवासी है। मेरे पिता भगवान राम और बजरंगबली के भक्त थे। जिस समय अयोध्या में कारसेवकों का आना लगा हुआ था पिता जी तभी से उनकी सेवा में जुट गए थे। हमारी मिठाई की एक छोटी से दुकान थी सभी पिता जी को वासुदेव हलवाई के नाम से जानते थे। पिता जी बाहर से अयोध्या में आने वाले कारसेवकों के लिए दुकान पर ही चाय और यथासंभव नाश्ते का इंतजाम रखते थे।
राम के नाम पर खत्म हुआ भेदभाव, हिंदू समाज से बना एक परिवार
उन दिनों की याद करते हुए सीमा ने बताया कि वो समय ऐसा था कि समाज में कोई उंच-नीच नहीं कोई जात-पात कारसेवा और भगवान राम के नाम पर पूरा समाज एक था लोग किसी भी घर में राम राम करके घुस जाते थे वहां उन्हें भोजन पानी, वस्त्र और रुकने की व्यवस्था स्वयं अयोध्यावासी कर लेते थे। कारसेवा के दौरान मानों पूरा हिंदू समाज एक परिवार हो गया हो ऐसा प्रतीत होता था।
अयोध्या का रामभक्त कैसे बैठ सकता है… कहकर आगे बढ़े वासुदेव
वहीं जब धीरे-धीरे अयोध्या में कारसेवकों की संख्या बढ़ने लगी तो पिता जी भी कारसेवा के लिए तैयार हो गए जब उनसे कोई कहता था तुम व्यापारी हो अपना ध्यान व्यापार पर लगाओ तो वे कहते थे की दुनियाभर के रामभक्त अयोध्या आ रहे है, तो अयोध्या का रामभक्त कैसे व्यापार में लग सकता है। हम देश को क्या चेहरा दिखाएंगे। आज अगर अयोध्यावासी ही घर से न निकले तो कल को अयोध्यावासियों पर हँसा जाएगा।
पहली गोली लगने पर भी किया मदद का प्रयास
सीमा के अनुसार कारसेवकों पर जब 30 अक्टूबर 1990 को जब कारसेवकों पर पहली बार गोली चली तो पहली गोली उनके पिता वासुदेव गुप्ता को लगी थी। गोली लगने घायल हुए पिता वहां से भागे नहीं बल्कि उनके साथ चल रहे व्यक्ति को भी गोली लगी हुई थी उसी की मदद करने का प्रयास करने लगे इतने में ही उन्हें और भी गोलियां लग गईं और वह वहीं मौके पर ही बलिदान हो गए। उन्होंने बताया कि उनके पिता को 3 गोलियां लगी थी जो उनके पेट और कमर में जा धंसी थी। उनका शव भी रामजन्मभूमि के पास ही रामकोट के पास मिला था।
हैलीकॉप्टर से इशारा… और गोलियां दागने लगे उस्मान और भुल्लर
जब टीम पाञ्चजन्य ने सीमा से पूछा की गोलियां कैसे और किसने चलाई? तो उन्होंने बताया की हम उस समय बहुत ज्यादा समझदार नहीं थे लेकिन ध्यान आता है कि जब पिता जी एक जत्थे के साथ निकल रहे थे तो उसी समय एक हैलीकॉप्टर आसमान में दिखाई दिया। उस हैलीकॉप्टर से लाइट के माध्यम से इशारा हुआ और इधर कारसेवकों पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया। वहीं दो सिपाही जिनका नाम उस्मान और भुल्लर था। बताया जाता है सबसे ज्यादा कारसेवकों का नरसंहार इन्ही दो सिपाहियों ने किया था। लोगों में इनके प्रति आक्रोश इस कदर था कि इनके नाम दीवारों पर लिख-लिख कालिख पोती जा रही थी। इनके प्रतीकात्मक पुतलों को जगह जगह लटकाया गया था।
शव पाने के लिए करना पड़ा संघर्ष, हिंदू संगठनों के सहयोग से हुआ अंतिम संस्कार
सीमा ने बताया जब कारसेवकों पर गोली चलने की खबर से पूरा परिवार सहम गया था सबको एक दम चिंता सताने लगी तभी जानकारी आई कि पिता जी वाले जथ्ते पर भी गोलियां चलाई गईं है। बाद में उनके बलिदान होने की जानकारी भी सामने आईं। जब मेरी मां ने पिता जी के शव को खोजना शुरू किया तो कहीं से कोई सही जानकारी नहीं मिल पा रही थी। अंत में हिंदू संगठनों के अथक संघर्ष से मुलायम सरकार के प्रशासन को झुकना पड़ा और पोस्टमार्टम के बाद शव परिवार को सौंपना पड़ा।
माँ ने संभाला परिवार
सीमा ने बताया पिता जी (वासुदेव गुप्ता) के बलिदान के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी माता जी (शकुंतला गुप्ता) के कंधों पर आ गईं। अब मिठाई का काम माता जी को आता नहीं था तो उसे चलना बड़ा मुश्किल हुआ तो माता जी ने कड़ी मेहनत कर कुछ रुपए जोड़कर एक भगवान राम से सम्बंधित वस्त्र और सामान की दुकान डाल ली जिससे घर का गुजरा चलना शुरू हुआ। इसी दुकान से हुई कमाई से बचत करके उन्होंने अपनी एक बेटी की शादी भी की थी।
हालांकि सीमा ने बताया कि माता जी के जाने के बाद घर की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई और फिर 2019 में इसी दुकान से हुई बजत से मैंने पहले अपने भाई की शादी की फिर फिर 2020 में अपना घर बसाया। सड़क चौड़ीकरण के बाद बची हुई दुकान पर पड़ोसियों ने मुकद्दमे डाल दिए जिससे हमारे पास बची हुई दुकान विवादित हो गई और टूट गई. अब फिलहाल हम खाली हाथ है.
वासुदेव के बलिदान के बाद पत्नी ने की कारसेवा
अपनी माता के बारे में बताते हुए सीमा ने बताया कि उनके पिता जी के बलिदान होने के बाद उनकी माता जी शकुंतला गुप्ता ने कारसेवा करने का की कसम खाई और निरंतर कारसेवा करती रहीं। वर्ष1992 में जब विवादित ढाँचा ध्वस्त हुआ था तब उनकी माँ कई अन्य महिलाओं को साथ लेकर घटनास्थल पर मौजूद थीं। इस दौरान उनकी माँ ने कई घायल कारसेवकों का इलाज अपने स्तर पर किया था।
आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन से मिली धमकी
सीमा गुप्ता ने बात करते हुए आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन से मिली धमकी के बारे में भी हमें बताया था। उन्होंने कहा कि उनके पिता के बलिदान होने के लगभग 1-2 साल बाद उनके घर एक धमकी भरा पत्र आया था। यह पत्र हिंदी में लिखा गया था जिसके अल्फाज उर्दू में लिखे गए थे। 6-7 पन्नों के इस पत्र में हिजबुल मुजाहिद्दीन की मुहर लगी हुई थी। जिसकी शिकायत प्रशासन से की गई थी।
सरयू नदी को ‘शरीफा नदी’ और अयोध्या को ‘अयूबाबाद’ बनाया जाएगा
सीमा ने कहा हम तो ज्यादा समझदार नहीं थे और ना ही हमें उर्दू समझ आती थी लेकिन जब हमने उर्दू जानने वाले से इस पत्र के बारे में पूछ तो उन्होंने बताया कि पत्र के अन्दर कई धमकियों के साथ लिखा है, “‘एक को भेज चुकी हो, दूसरे को संभाल कर रखना। सरयू नदी को ‘शरीफा नदी’ और अयोध्या को ‘अयूबाबाद’ बनाया जाएगा।”
सैकड़ों वर्षों के संघर्ष का परिणाम है रामलला का भव्य मंदिर
अब जब टीम पाञ्चजन्य ने सीमा से पूछा की आज राममंदिर का भव्य निर्माण हो रहा है। 22 जनवरी को भगवान रामलला के श्रीविग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होने को है। आपको कैसा महसूस हो रहा है तो सीमा ने बताया कि भगवान रामलला के मंदिर बनने से हमारा परिवार बेहद प्रसन्न है। हमारे पिता का बलिदान आज हमें सार्थक होते दिख रहा है हमारी माता जी का सपना हमे साकार होते दिख रहा है। भगवान राम के मंदिर निर्माण से सभी बलिदानी आत्माओं को शांति की अनुभति हो रही होगी। बलिदानी परिवारों को प्रसन्नता मिल रही होगी कि उनके परिवार में जिन्होंने भी कारसेवा के दौरान बलिदान दिया है वह रामकाज आज सफल हो रहा है। यह सब सैकड़ों वर्षों के संघर्ष और मोदी जी व योगी जी की जोड़ी के अटल संकल्प से पूर्ण हुआ है।
बलिदान हुए रामभक्तों के इतिहास को याद रखा जाए
बलिदानी वासुदेव गुप्ता की बेटी से जब हमारी वार्ता अपने अंतिम चरण में थी तभी उनके भाई और वासुदेव जी के पुत्र संदीप गुप्ता भी अपनी शिफ्ट राममंदिर क्षेत्र से करके घर वापस आ चुके थे। और उन्होंने हमसे बात करते हुए कहा कि हमारा परिवार चाहता है कि इस मंदिर के साथ उनके पिता और अन्य बलिदान हुए रामभक्तों के इतिहास को याद किया जाए। साथ ही उन्हें उमीद है कि उनके पिता की स्मृति बनाए रखने के लिए वर्तमान सरकार वासुदेव गुप्ता के नाम पर एक स्मारक जरूर बनवाएगी।
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