भारत को जब अपने पुराने दोषों से आगे बढ़ने का अवसर मिला है, तब किन्हें दर्द हो रहा है। महत्वपूर्ण यह है कि हम समझें कि हमारे सामने चुनौती कहां तक है, कितनी गहरी है और क्यों है। आखिर पापजीवियों को पालना भी पाप ही है।
अभी तक भारत बड़े पैमाने पर आंदोलनजीवियों का सामना करता रहा है, लेकिन अब ऐसे लोगों की कतार खड़ी हो गई है, जो आंदोलनजीवी नहीं हैं, लेकिन पापजीवी जरूर हैं। अतीत में भारत से या अतीत में भारत के नेतृत्व से जो भी गलतियां हुई होंगी, उन गलतियों का एक पारिस्थिकीतंत्र भी बन गया था, और ऐसे कई लोग हो गए थे, जो इस पापजीविता पर निर्भर थे। अब उन गलतियों के परिमार्जन से यह पापजीवी तंत्र अपने समक्ष गंभीर संकट महसूस कर रहा है। सबसे पहले कश्मीर का उदाहरण लिया जा सकता है। कश्मीर को समस्या बनाने के लिए कुछ लोगों की कुछ गलतियां जिम्मेदार थीं।
यहां उनके विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह एक तथ्य है कि अनुच्छेद 370 और 35 ए का बेजा उपयोग उन्ही गलतियों के कारण था। इन दोनों के आधार पर ऐसा पापजीवी पारिस्थिकीतंत्र बन गया था, जिसमें आतंकवाद भी था, लूट भी थी, दमन भी था और सबसे बढ़कर भारत को कमजोर और नीचा रखने का एक निहित स्वार्थ भी था। लेकिन जैसे ही संविधान में संशोधन हुआ और इन पापोत्तर प्रावधानों को समाप्त किया गया, वह पारिस्थिकीतंत्र लड़खड़ाने लगा।
अतीत में जिन भी कर्मों से भारत की विकास दर कम रखी गई थी या कम बनी रही थी, उसे वैसा ही रहना चाहिए, अन्यथा उनके पापों को भांडा फूट जाएगा? सीताराम येचुरी, ममता बनर्जी या कांग्रेस के नेता या कुछ अन्य नेता जब श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण ठुकराने पर बयान देते हैं, तो उनकी वही टीस सामने झलकती है कि यह उनके पापों को बनाए रखने वाले ढांचे का ध्वंस हो रहा है। अधिकांश बहुरूपियों को अब अपने मूल स्वरूप में लौटना पड़ रहा है, अपना असली रंग दिखाना पड़ रहा है।
अब स्थिति यह हो गई है कि जो लोग पहले यह कहा करते थे की अनुच्छेद 370 को खत्म कर सकना किसी के वश की बात नहीं है, वे यह कहते हुए कि कश्मीर की जनता इसे स्वीकार नहीं करेगी, या पाकिस्तान इसे स्वीकार नहीं करेगा, अब यह कहने की स्थिति में आ गए हैं कि अगर उनकी इच्छा के अनुसार या उनके हितों के अनुसार कुछ नहीं हुआ, तो कश्मीर गाजा पट्टी बन जाएगा। किसे धमका रहे हैं आप? और उससे भी बढ़कर, आपकी यह धमकी कहां से प्रेरित है?
वास्तव में राष्ट्र, संविधान, लोकतंत्र और लोक आस्था को ललकारने वाली यह पापजीविता ही है। जिसे आप कभी अनु. 370 या 35 ए की आड़ में, कभी समाजवादी पार्टी के सांसद के राम मंदिर पर दिए गए बयान के रूप में देख सकते हैं, और कभी सैम पित्रोदा की टिप्पणियों में।
महत्वपूर्ण यह है कि हम यह पहचान लें कि हमारे वास्तविक और आंतरिक शत्रु कौन से हैं और वह किस रूप में सामने आते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि भारत को जब अपने पुराने दोषों से आगे बढ़ने का अवसर मिला है, तब किन्हें दर्द हो रहा है
प्रश्न इन लोगों के पेट में समय-समय पर उठती मरोड़ का है।
मसलन, राम मंदिर निर्माण से आपत्ति आखिर क्यों? क्या इस कारण कि मंदिर का बनना औपनिवेशिक सोच से उत्पन्न पापों का निरसन करता है? उन पापों का परिमार्जन करता है, जो पहले किए गए थे और जिन पापों को भारत की मजबूरी कहकर भारत पर थोपा गया था? हाल ही में अर्थ क्षेत्र के एक स्वयंभू विद्वान को इस बात को लेकर भारी समस्या हो रही थी कि भारत की विकास दर विश्व में सबसे अधिक क्यों है।
क्या उन्हें लगता है कि अतीत में जिन भी कर्मों से भारत की विकास दर कम रखी गई थी या कम बनी रही थी, उसे वैसा ही रहना चाहिए, अन्यथा उनके पापों को भांडा फूट जाएगा? सीताराम येचुरी, ममता बनर्जी या कांग्रेस के नेता या कुछ अन्य नेता जब श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण ठुकराने पर बयान देते हैं, तो उनकी वही टीस सामने झलकती है कि यह उनके पापों को बनाए रखने वाले ढांचे का ध्वंस हो रहा है। अधिकांश बहुरूपियों को अब अपने मूल स्वरूप में लौटना पड़ रहा है, अपना असली रंग दिखाना पड़ रहा है। इनमें कई ऐसे भी हैं, जिनके चुनावी हिंदुत्व का तमाशा देखने का भारत अब आदी हो चुका है।
लेकिन वास्तव में उनका रहस्य इस देश को तभी समझ लेना चाहिए था, जब यही लोग देशभक्ति किस्म की कोई बात करते थे, और वह बात उनके किसी क्रियाकलाप में कहीं झलकती भी नहीं थी और न ही उनकी किसी गतिविधि का कोई ऐसा परिणाम निकला था जिसे भारत के हित में उठाया गया बड़ा कदम मनाया जा सकता हो। इसमें ‘गरीबी हटाओ’ से लेकर ‘मेरे पति के हत्यारे अभी जिंदा हैं’ तक की बातों की एक लंबी कतार है। जो आप कहते थे, वह आपका इरादा नहीं था। जो आप नजर आते थे, वह आपका स्वांग था। और अब वह स्वांग समाप्त हो रहा है।
यह आत्मचिंतन का विषय है। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि यह लोग क्या करते हैं, उनके स्वार्थ क्या है, अथवा कौन-सी शक्ति इन्हें मोहरा बना रही है। महत्वपूर्ण यह है कि हम यह पहचान लें कि हमारे वास्तविक और आंतरिक शत्रु कौन से हैं और वह किस रूप में सामने आते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि भारत को जब अपने पुराने दोषों से आगे बढ़ने का अवसर मिला है, तब किन्हें दर्द हो रहा है। महत्वपूर्ण यह है कि हम समझें कि हमारे सामने चुनौती कहां तक है, कितनी गहरी है और क्यों है। आखिर पापजीवियों को पालना भी पाप ही है।
@hiteshshankar
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