म्यांमार में अपने कट्टर मजहबी कृत्यों के कारण स्थान न पाने के कारण रोहिंग्या मुस्लिम अब दूसरे मुस्लिम देशों की ओर जा रहे हैं। विश्व के सबसे बड़े मुस्लिम देश इंडोनेशिया में वह लोग अब शरण के लिए जा रहे हैं, मगर यह देखना बहुत ही हैरान करने वाला है कि जहां एक ओर मुस्लिम भाईचारे की बात की जाती है और मुस्लिम ब्रदरहुड की बात करते हुए 57 देशों की चर्चा की जाती है, वहीं मुस्लिम रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने के लिए मुस्लिम देश ही तैयार नहीं है।
म्यांमार से भागकर इन रोहिंग्या मुस्लिमों ने बांग्लादेश में शरण ली थी, मगर अब वह बांग्लादेश से निकलकर इंडोनेशिया और मलेशिया की ओर जा रहे हैं, जो दोनों ही मुस्लिम देश हैं। इंडोनेशिया में रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर इन दिनों समाचारों की सुर्खियां बहुत अधिक हैं। यह इसलिए हैं क्योंकि सबसे बड़ा मुस्लिम देश भी रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर सहज नहीं है।
दिसंबर माह में 250 रोहिंग्या मुस्लिमों से भरी एक नाव इंडोनेशिया के एचे राज्य के एक समुद्री किनारे पर पहुंची थी। परन्तु उस नाव को वहां के स्थानीय निवासियों ने उतरने नहीं दिया और जबरन उस नाव को वापस भेज दिया था। लकड़ी की वह नाव, जिसमें रोहिंग्या मुस्लिम सवार थे। उस नाव की उस समय फिर कहीं लोकेशन नहीं मिली थी।
मगर सारा मुस्लिम जगत एक है, कहने वाले देश मुस्लिम शरणार्थियों को लेने से क्यों इंकार करते हैं यह बात समझ से परे है ? यह भी स्थानीय लोगों का कहना था कि तीन हफ्ते पहले वह नाव बांग्लादेश से चली थी। बांग्लादेश भी मुस्लिम देश है। मगर वहां से लोगों को भगा दिया जा रहा है। वहां पर इनके साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है, कि वह भाग रहे हैं। जीवन की अस्थिरता को समझते हुए भी भाग रहे हैं। फिर यही प्रश्न है कि आखिर मुस्लिम देशों में ही मुस्लिम शरणार्थियों को क्यों नहीं लिया जा रहा है?
बांग्लादेश में उन्हें एक ऐसे टापू में भेज दिया था और वह टापू ऐसा था जो हमेशा तूफानों में घिरा रहता है। भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश ऐसा देश है जिसने वर्ष 2017 में म्यांमार से भगाए हुए इन मुस्लिमों को शरण दी थी। हालंकि बांग्लादेश स्वयं भी आर्थिक रूप से इतना मजबूत नहीं है, परन्तु विदेशी संस्थाओं द्वारा कई प्रकार के सहयोग के आश्वासन पर संभवतया इतना बड़ा कदम उठाया हो कि लगभग 12 लाख रोहिंग्या मुस्लिमों को शरण दी। मगर शीघ्र ही बांग्लादेश में तनाव बढ़ने की बात सामने आने लगी। स्थानीय लोग यह तक आरोप लगाने लगे कि कॉक्स बाजार में रहते लोगों के कारण मानव तस्करी और नशे जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं।
और अब वहां पर शायद रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए हालात तेजी से और खराब हुए हैं, जिसके चलते वहां से वह लोग दूसरे और मुस्लिम देशों में जा रहे हैं और मुस्लिम देश ही उन्हें पनाह देने के लिए तैयार नहीं हैं ? ऐसे में यह एक बहुत बड़ा प्रश्न उठता है कि आखिर इंडोनेशिया या बांग्लादेश जैसे मुस्लिम देशों के लिए रोहिंग्या मुस्लिम समस्या क्यों है?
सबसे बड़ी बात तो संसाधनों पर प्रभाव की बात की रही है ? हर देश के संसाधनों पर उसी देश के नागरिकों का अधिकार होना चाहिए और होता भी है। यदि बाहर से शरणार्थी लाकर बसाए जाते हैं तो जनसांख्यकीय परिवर्तन के साथ-साथ संसाधनों का भी बंटवारा होता है और जो स्थानीय लोगों को अपने अधिकारों पर अतिक्रमण प्रतीत होता है और जो होता भी है।
मीडिया के अनुसार एक एक्टिविस्ट नेटवर्क, फ्री रोहिंग्या कोएलिशन के सह-संस्थापक नाय सान ल्विन ने यह बताया कि इस वर्ष के शुरू में विश्व खाद्य कार्यक्रम ने शरणार्थियों के खाने के राशन में कटौती कर दी थी, जबकि रोहिंग्या के लिए वह मदद डूबते को तिनके का सहारा जैसी थी।
वहीं बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों को न ही नौकरी करने और न ही बांग्ला भाषा सीखने की आजादी है क्योंकि बांग्लादेशी अधिकारी यह नहीं चाहते हैं कि रोहिंग्या समाज की मुख्य धारा में मिल जाएं और यही कारण है कि वह लोग अब इंडोनेशिया जैसे देशों में जा रहे हैं।
मगर वहां पर भी लोग उन्हें लेकर आशान्वित नहीं हैं और हर संभव विरोध कर रहे हैं। म्यांमार के रखाइन प्रांत के सुन्नी मुसलमान रोहिंग्या मुस्लिम कहे जाते हैं और म्यांमार में इन्हें नागरिकता नहीं दी गयी है। वर्ष 2017 में एक बौद्ध लड़की के साथ दुष्कर्म के बाद इनके खिलाफ कदम उठाया गया था।
और वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार मामलों के विशेषज्ञ टॉम एंड्रूज़ ने एक प्रेस कांफ्रेंस में यह कहा था कि रोहिंग्या आतंकियों ने म्यांमार में हिंदुओं की सुनियोजित हत्या की थी। अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के कृत्यों के आधार पर यह रिपोर्ट प्रकाशित की गयी थी। यह कहा गया था कि म्यांमार में हिन्दुओं की सुनियोजित प्रताड़ना और हत्या हुई है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की इस रिपोर्ट में बताया गया था कि रोहिंग्या आतंकियों ने 99 से ज्यादा हिंदू महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की हत्या की थी। गांवों में रहने वाले हिंदुओं को बड़ी संख्या में अगवा करके ले जाया गया और उन पर अत्याचार किए गए था। यह सब म्यांमार के रोहिंग्या बहुल प्रांत राखिन में 2017 में हुआ था।
इस संगठन का अध्यक्ष पाकिस्तान का अताउल्ला अबू आमेर जुनूनी था और इसी संगठन ने जब सुरक्षा बलों पर लगातार हमला किया था तो रोहिंग्या मुस्लिमानों पर म्यांमार की सेना ने कार्रवाई की थी।
और उसके बाद ही हजारों रोहिंग्या मुस्लिम भारत में भी आए थे। लगभग हर मुस्लिम देश कट्टरपंथी रोहिंग्या मुस्लिमों को शरण देने से बक रहा है, मगर दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत में कई ऐसे दल या संगठन हैं जो अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए अवैध रूप से इन्हें बसाने की बात कर रहे हैं।
हाल ही में जम्मू और कश्मीर में अवैध रूप से रोहिंग्या एवं बांग्लादेशी मुस्लिमों को शरण देने के आरोप में बड़ी कार्रवाई करते हुए लगभग 50 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। यह बात समझ से परे है कि इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देशों में अपने संसाधनों के प्रति जागरूकता है और उन्हें यह बात समझ में आ रही है कि अवैध शरणार्थी किस हद तक किसी भी देश के लिए खतरा बन सकते हैं, तो भारत के कुछ लोग इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं या फिर वह अपनी वोट बैंक की राजनीति में इतने अंधे हो गए हैं कि वह अपने निजी लाभ से परे कुछ देख नहीं पा रहे हैं।
जब इंडोनेशिया में आम लोग और मुख्यत: विद्यार्थी वर्ग इन शरणार्थियों का विरोध कर रहा है तो उसी दौरान भारत से एक बड़ी खबर इसी सन्दर्भ में दबकर रह गयी। यह खबर थी कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक 19 वर्षीय रोहिंग्या लड़की की याचिका खारिज कर दी थी। यह याचिका इस सन्दर्भ में थी कि उसे कथित अवैध हिरासत से रिहा कर दिया जाए।
उसका कहना था कि उसकी गतिविधियों पर प्रतिबन्ध दरअसल अवैध कारावास है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उस युवती की गतिविधियाँ सराय रोहिला तक ही सीमित हैं। और इस उद्देश्य के लिए नौ जून 2022 को विदेशी अधिनियम-1948 के तहत एक उचित आदेश जारी किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि याचिकाकर्ता निश्चित ही एक अवैध आप्रवासी है। केंद्र सरकार ने पीठ कि यह बताया था कि याचिकाकर्ता को राष्ट्रीयता के सत्यापन के बाद क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार उसके गृह देश में निर्वासित करना होगा और चूंकि वह निर्वासन के लिए उपलब्ध रहे उसकी गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
याचिकाकर्ता की याचिका से महत्वपूर्ण है कि उस 19 वर्षीय युवती के पास इतना साहस और संसाधन कहाँ से आए कि वह सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गयी? जहां कानूनी संसाधन भारत के आम नागरिकों के लिए बहुत कठिनाई से उपलब्ध हो पाते हैं कि वह अपनी याचिका को लेकर सर्वोच्च न्यायालय जा सकें, वहां पर एक माननीय न्यायालय द्वारा घोषित अवैध आप्रवासी युवती पहुंच गयी तो उसे इतने संसाधन और इतनी पहुँच कहाँ से मिल रही है?
क्या यही खतरा इंडोनेशिया के बांदा एचे के कुछ छात्र समूह पहचान गए हैं और उन्होंने इन शरणार्थियों का विरोध किया एवं इस हद तक विरोध किया कि पुलिस ने बमुश्किल रोहिंग्या शरणार्थियों को बचाया।
इन विद्यार्थी समूहो के पास बैनर थे कि जिन्हें अपने देशवाले अपने साथ नहीं रख रहे हैं उन्हें हम क्यों रखें?
दुर्भाग्य से भारत में कई लोग ऐसे हैं जो भारत में ऐसे प्रश्न उठाने वालों को देश का दुश्मन घोषित कर देंगे परन्तु इस मूलभूत प्रश्न पर मौन रहेंगे कि आखिर क्या कारण है कि रोहिंग्या हिन्दुओं की हत्या पर वह पूरा समुदाय क्यों चुप रहता है जिसे कथित रूप से भगाया जा रहा है और क्यों भगाया जा रहा है?
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