सदैव दूसरों की आवश्यकताओं की चिंता, कम बोलना, खूब पैदल चलना, जीवन के नौवें दशक में भी पूरे दिन की सक्रियता, नियम पालन का आग्रह। श्रद्धेय बालासाहब शिरपुरकर जी को कार्यकताओं ने दशकों से इसी रूप में देखा था।
उनकी कोई अपनी समस्या नहीं, कोई निजी आवश्यकता नहीं। सदैव दूसरों की आवश्यकताओं की चिंता, कम बोलना, खूब पैदल चलना, जीवन के नौवें दशक में भी पूरे दिन की सक्रियता, नियम पालन का आग्रह। श्रद्धेय बालासाहब शिरपुरकर जी को कार्यकताओं ने दशकों से इसी रूप में देखा था। घुटनों तक चढ़ी सफेद धोती, दुबली-पतली किन्तु स्वस्थ, निरंतर गतिमान काया, छोटे से कक्ष में भगवान का आसन, सदा साथ रहने वाले कुछ आध्यात्मिक ग्रंथ, उनकी यह छवि सबकी आंखों में बसी है।
वह नियम पालन और व्यवस्थित कार्य के आग्रही थे। चाय, भोजन, अल्पाहार के लिए समय पर न आने वालों को उनकी स्नेहमय फटकार मिलती थी, परन्तु किसी को भूखा जानकर अपने हाथ से बनाकर खिला भी देते थे। ऐसे बालासाहब का, 15 दिसंबर, 2023 को केशवकुटी (जबलपुर) में देवलोक गमन हुआ। पूज्यनीय सरसंघचालक जी ने अपने शोक संदेश में कहा, ‘केशव कुटी का स्नेहछत्र चला गया।’
आदरणीय दिगम्बरराव श्रीधरराव उपाख्य बालासाहब शिरपुरकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक थे। उनका बचपन और किशोरावस्था नागपुर स्थित रेशिम बाग स्मृति मंदिर परिसर के निकट स्थित अपने पैतृक निवास में बीती। बाल्यवस्था से पूज्य द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी का सान्निध्य मिला। युवा होने पर संघ कार्य के अलावा जीवन का और कोई लक्ष्य नहीं था। परन्तु वृद्ध पिता, एक छोटे भाई और दो बहनों की जिम्मेदारी थी। इसलिए 1964 में छोटी बहन का विवाह होने तक उन्होंने भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) और रायपुर कृषि विभाग में कार्य किया। उसके बाद प्रचारक जीवन अपना लिया।
छत्तीसगढ़ तब महाकौशल प्रांत का हिस्सा था। उन्हें रायगढ़ का जिला प्रचारक बनाकर भेजा गया। अनेक वर्षों तक उन्होंने जशपुर, रायगढ़, सारंगढ़-बिलाईगढ़ में संघ कार्य किया। तत्पश्चात छिंदवाड़ा, छतरपुर, शहडोल और रीवां में विभाग प्रचारक रहे। इनमें से अधिकांश स्थान जनजातीय बहुल हैं। कन्वर्जन तंत्र यहां एक शताब्दी से भी अधिक समय से सक्रिय है। तब की परिस्थितियां और साधनों का अभाव अनेक प्रकार की चुनौतियां उत्पन्न करता ही था। शिरपुरकर जी ने दीर्घकाल तक इनका सामना किया। कुछ समय विश्व हिंदू परिषद में भी जिम्मेदारी निभाई।
15 दिसंबर को सुबह की चाय पर सबसे मिले। प्रात: 8:30 बजे वह पूजन के लिए कक्ष में चले जाते थे और 9:30 पर बाहर आते थे। उस दिन 10 बजे तक बाहर नहीं निकले। खोज-खबर हुई, तो सामने रामायण खुली हुई थी, बालासाहब धरती पर बिछी आसनी पर बैठे, बिस्तर से टिके हुए मिले, मानो विश्राम कर रहे हों। एक प्रेरणादायी जीवन की गौरवपूर्ण पूणार्हुति हुई।
1995 से जबलपुर स्थित प्रांत कार्यालय केशवकुटी उनका केंद्र रहा। प्रांत सहव्यवस्था प्रमुख के नाते उन्होंने जिम्मेदारी निभाई और सभी औपचारिक उत्तरदायित्वों से मुक्त होने के बाद केशवकुटी को साधना बना स्थल लिया। प्रात: 3:30 बजे उठना, स्नान-पूजन, एकात्मता स्तोत्र के बाद कार्यालय की स्वच्छता, व्यवस्था, कार्यालय में आने-जाने वालों का हाल-चाल, उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति में लग जाना, तीन दशकों तक उनका दिनक्रम रहा।
उनके स्नेह को स्मरण कर अनेक कार्यकर्ताओं की आंखें नम हो जाती हैं। अखिल भारतीय स्तर से लेकर जिला और खंड कार्यकर्ताओं तक, सभी ने उनके स्नेह को अनुभूत किया है। ‘कहां से आ रहे हो? कब जाना है? भोजन किया?.. चाय पी लो…सुबह की गाड़ी से चले जाना… तुम लोग व्यवस्थित काम करने की आदत डालो.. ये अपनी पद्धति है क्या?’ उनके ऐसे संक्षिप्त वाक्य सैकड़ों कार्यकर्ताओं की स्मृति में हैं।
कार्यालय में आने वाले ज्येष्ठ और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से उनके सहज वातार्लाप को देखकर किसी को भी उनकी सुदीर्घ यात्रा और अनुभव का अंदाज हो जाता था। किसी स्थान, किसी कार्य की चर्चा छेड़ने पर वह कुछ वाक्यों में अपनी बात कहते थे। उन्होंने कभी किसी व्यक्ति को उसकी लघुता या अनुभवहीनता या अपनी वरिष्ठता का अहसास नहीं करवाया। वे ऐसे रहते, ऐसे चलते-उठते-बैठते कि कोई नया व्यक्ति उन्हें उपेक्षा से देखकर, आगे बढ़ जाता। लेकिन शिरपुरकर जी अपने काम में मग्न रहते। ऐसे ही उन्होंने महाप्रयाण किया।
वे जीवन की अंतिम घड़ी तक सक्रिय बने रहे।
15 दिसंबर को सुबह की चाय पर सबसे मिले। प्रात: 8:30 बजे वह पूजन के लिए कक्ष में चले जाते थे और 9:30 पर बाहर आते थे। उस दिन 10 बजे तक बाहर नहीं निकले। खोज-खबर हुई, तो सामने रामायण खुली हुई थी, बालासाहब धरती पर बिछी आसनी पर बैठे, बिस्तर से टिके हुए मिले, मानो विश्राम कर रहे हों। एक प्रेरणादायी जीवन की गौरवपूर्ण पूणार्हुति हुई।
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