रत्ती यानी कुदरत का करिश्मा

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एस. डी. ओझा

इसका बीज छोटा-बड़ा नहीं होता, बल्कि एक माप और एक आकार का होता है। प्रत्येक बीज का वजन एक समान होता है। यह विषैला होता है, पर इसका उपयोग पशुओं के घावों में उत्पन्न कीड़ों को मारने के लिए किया जाता है।

एस. डी. ओझा

अक्सर लोग दाल या सब्जी में ऊपर से नमक डालते हैं। हमारे दौर में मांग हुआ करती थी- रत्ती भर नमक देना। रत्ती भर का मतलब जरा सा होता है। अब रत्ती भर कोई नहीं बोलता। सभी जरा-सा ही बोलते हैं, लेकिन ‘रत्ती भर’ को लेकर आज भी मुहावरे प्रचलित हैं। ‘रत्ती भर’ के वाक्यों में प्रयोग के कुछ नमूने देखिए-

  • तुम्हें तो रत्ती भर भी शर्म नहीं है।
  • रत्ती भर किया गया सत्कर्म एक मन पुण्य के बराबर होता है।
  • इस घर में हमारा रत्ती भर भी मूल्य नहीं है।

कुछ लोग ‘रत्ती भर’ भी झूठ नहीं बोलते। देखिए एक बानगी –
रत्ती भर झूठ नहीं इसमें,
सपनों में मेरे आते हो तुम,
फिर देख के चौबारे में मुझे,
मुंह फेर के क्यों जाते हो तुम।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिस रत्ती की बात यहां हो रही है, वह माप की एक इकाई है। इस माप का प्रयोग सुनार करते हैं। हमने अपने जमाने में जो माप-तौल पढ़ा है, उनमें रत्ती का भी नाम शामिल है। विस्तृत वर्णन इस प्रकार है-

रत्ती के बीज लाल होते हैं, जिनका ऊपरी सिरा काला होता है। रत्ती के बीज सफेद रंग के भी होते हैं। उनके भी ऊपरी सिरे भी काले होते हैं। इसका बीज छोटा-बड़ा नहीं होता, बल्कि एक माप और एक आकार का होता है। प्रत्येक बीज का वजन एक समान होता है। इसे आप कुदरत का करिश्मा भी कह सकते हैं।

8 खसखस = 1 चावल
8 चावल = 1 रत्ती
8 रत्ती = 1 माशा
4 माशा = 1 टंक
12 माशा = 1 तोला
5 तोला = 1 छटांक
16 छटांक = 1 सेर
5 सेर = 1 पंसेरी
8 पंसेरी = एक मन

हालांकि उपरोक्त माप अब कालातीत हो गए हैं, पर आज भी रत्ती और तोला स्वर्णकारों के पास चल रहे हैं। 1 रत्ती का मतलब 0.125 ग्राम होता है। 11.66 ग्राम 1 तोले के बराबर होता है। लेकिन आजकल एक तोला 10 ग्राम होता है।

इन सभी माप में रत्ती अधिक प्रसिद्ध हुई, क्योंकि यह प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। रत्ती को कृष्णला और रक्तकाकचिंची के नाम से भी जाना जाता है। रत्ती का पौधा पहाड़ों में पाया जाता है। इसे स्थानीय भाषा में गुंजा कहते हैं।

रत्ती के बीज लाल होते हैं, जिनका ऊपरी सिरा काला होता है। रत्ती के बीज सफेद रंग के भी होते हैं। उनके भी ऊपरी सिरे भी काले होते हैं। इसका बीज छोटा-बड़ा नहीं होता, बल्कि एक माप और एक आकार का होता है। प्रत्येक बीज का वजन एक समान होता है। इसे आप कुदरत का करिश्मा भी कह सकते हैं।

रत्ती के इस प्राकृतिक गुण के कारण स्वर्णकार पहले इसे माप के रूप में प्रयोग करते थे। शायद आजकल भी करते हों। रत्ती का उपयोग पशुओं के घावों में उत्पन्न कीड़ों को मारने के लिए किया जाता है। यह खुराक के रूप में प्रयोग किया जाता है। एक खुराक में अधिकतम दो बीज ही दिए जाते हैं। इसकी दो खुराक देने पर घाव पूरी तरह ठीक हो जाता है। रत्ती के बीज जहरीले होते हैं। इसलिए इन्हें खाया नहीं जाता। माताएं रत्ती के बीज की माला बनाकर अपने बच्चों को पहनाती हैं। ऐसी मान्यता है कि इसकी माला बच्चों को बुरी नजरों से बचाती है।

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