केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की घटना पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को न मानने की बात करने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला ने एक बार फिर से पाकिस्तान के साथ बातचीत करने का रोना रोया है। फारुक अब्दुल्ला ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के एक कथन का जिक्र किया कि दोस्त बदले जा सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं बदले जा सकते।
फारुक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान से बातचीत के लिए भारत सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की और कहा कि अगर हम अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर रहेंगे, तो ही दोनों का विकास होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक कथन का भी जिक्र किया और कहा कि पीएम मोदी ने यह भी कहा कि युद्ध अब कोई विकल्प नहीं है और मामले बातचीत के जरिए समाधान निकाला जाना चाहिए। लेकिन, बातचीत कहां है? नवाज शरीफ (पाकिस्तान के) प्रधानमंत्री बनने वाले हैं और वे कह रहे हैं कि हम (भारत के साथ) बात करने के लिए तैयार हैं, लेकिन क्या कारण है कि हम बात करने के लिए तैयार नहीं हैं ? यदि हम बातचीत के माध्यम से कोई समाधान नहीं ढूंढते हैं, तो हमारा हश्र गाजा और फिलिस्तीन जैसा ही होगा, जिन पर इजराइल द्वारा बमबारी की जा रही है…अल्लाह मुझ पर रहम करे।
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हर चीज को अपने हिसाब से इस्तेमाल करने के आदी फारुक अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘युद्ध विकल्प नहीं है’। वाले बयान का तो जिक्र कर लिया, लेकिन वे इस बात को बड़ी ही चालाकी से क्रॉस कर गए। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस और यूक्रेन युद्ध को लेकर शांति के लिए हो रही बातचीत के मौके पर पूछे गए एक सवाल के जबाव में कहा था कि ये सदी युद्ध की नहीं, बल्कि ये सदी विकास के लिए प्रयास की है।
फारुक अब्दुल्ला को ज्ञान देने से पहले पहले से निहित पाकिस्तान की नीतियों पर भी बात करनी चाहिए थी। पाकिस्तान के आतंकवाद पर भी उन्हें बात करनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने इस मामले में एक शब्द तक बोलना गंवारा नहीं समझा। जबकि भारत सरकार ने बार-बार कहा है कि हम पाकिस्तान से बातचीत करेंगे, लेकिन इसकी पहली शर्त ये है कि उसे आतंकवाद का रास्ता छोड़ना होगा।
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