पाञ्चजन्य के सागर मंथन सुशासन संवाद 2.0 में आमंत्रित उद्यमी द्रुमि भट्ट ने महिलाओं को होने वाली समस्याओं और स्टार्टअप्स कल्चर को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि लेबर रेट में औरतों की सहभागिता कम है। जो आइडियाज हैं उनकों इन्क्यूबेट करना एक बड़ी चुनौती है। महिलाओं के लिए भारत सरकार को एक अलग स्टार्टअप के लिए नया प्लेटफॉर्म बनाना चाहिए, ताकि उनके साथ भेदभाव को कम किया जा सके। स्टार्टअप्स के मामले में अगर हमें इजरायल का आत्मविश्वास हमें मिल जाए तो बहुत अच्छा होगा।
द्रुमि अग्रवाल कई सारे स्टार्टअप्स संचालित करती हैं। वो ग्रामीण इलाकों में काम करती हैं। उन्होंने कहा कि भारत के पास एक डेमोग्राफिक डिविडेंट हैं और अगले 10 साल के अंदर इसे प्रोडक्टिव बनाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को बखूबी जानते हैं। यही कारण है कि वो अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पूरे दम से कहते हैं कि हमारे पास दुनिया की सबसे युवा आबादी है। द्रुमि की विद्याकुल नाम की हमारी एक स्टार्टअप है जो कि रूरल इकोनोमी पर काम करती है। वो कहती हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। अगर हमने रूरल इकोनोमी पर फोकस नहीं किया तो विकास का सपना साकार नहीं होगा। हम न्यू वर्ल्ड ऑर्डर में जा रहे हैं, लेकिन रूरल इलाको में रहने वाले लोगों को अभी और विकसित करने की जरूरत है। ग्रामीण इलाकों में कैपिटलाइजेशन की आवश्यकता है।
इसे भी पढ़ें: पाञ्चजन्य सागर मंथन सुशासन संवाद 2.0: 450 साल तक पुर्तगालियों ने शासन किया, हमने अपनी संस्कृति को बचाया: प्रमोद सावंत
इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में अक्सर किसी भी इनोवेशन को जुगाड़ से जोड़ने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि मैं भारत ग्रोथ स्टोरी की मैं बहुत बड़ी प्रशंसक हूं। युवाओं का जो काम के प्रति रवैया है तो उसमें जब हम जुगाड़ शब्द का इस्तेमाल करते हैं। ये जुगाड़ अगर इनोवेशन में इस्तेमाल होता है तो ये प्रोडक्टिव है। लेकिन नेगेटिव वे में इससे दूर रहने की जरूरत है।
बांस को घास की कैटेगरी में डालना क्रांतिकारी कदम
इस मौके पर एबीवीपी नेता रहे और उद्यमी अंबर अग्रवाल ने भारतीय न्याय संहिता पर बात करते हुए जिक्र किया कि साल 2017 में एक पॉलिसी चेंज आया था जिसके तरहत बांस के पेड़ों को घास का करार दे दिया गया। उस दौरान फॉरेस्ट वुड कटिंग अलाऊ नहीं था, लेकिन नए नियम के तहत इसे घास करार दे दिया गया। इसके बाद हम बांस को काटकर उससे कई सारी चीजें बनाने लगे। भारत सरकार ने नीतियों में ये बदलाव किया है ये किसानों के लिए आय का भी अच्छा साधन है। हमने गुजरात के कच्छ में भी किसानों को बांस की खेती के लिए प्रोत्साहित किया।
अंबर अग्रवाल के मुताबिक, “मैं शहर में था और मेरा बांस का उत्पाद है वो गांव में है। प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है और बस हमें उसे पहचानने की आवश्यकता है। यहां थोड़ा सा तकनीक एक बड़ा मुद्दा है। युवाओं को जरूरत है कि अभी से इन्हें नई-नई योजनाओ पर स्टडी करें। ग्रामीण इलाकों के लोग काफी ज्यादा जागरूक हैं और ये अच्छी बात है। आज का ग्रामीण युवा इंटरनेट का इस्तेमाल करना जानता है तो वो सब कुछ कर सकता है।”
टिप्पणियाँ