गोवा में आयोजित पाञ्चजन्य के सागर मंथन कार्यक्रम का उद्घाटन श्री विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री मिलिंद परांडे ने किया। इस अवसर पर पांञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर, भारत प्रकाशन लिमिटेड के निदेशक बृज बिहारी गुप्ता और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ गोवा विभाग के विभाग संचालक राजेंद्र भोवे उपस्थित रहे। इस मौके पर मिलिंद परांडे ने कहा कि सुशासन का प्रारंभ संस्कृति पर आधारित है, जो कि धर्म आधारित होती है। सुशासन में दंड शक्ति का बड़ा महत्व है, लेकिन समाज को ठीक रखने के लिए संस्कारों की आवश्यकता है। जो जीवन मूल्य समाज की धारणा करते हैं वही धर्म का हिस्सा है। हिन्दू राष्ट्र को कई लोग भू राजनीतिक संकल्पना मानते हैं। महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध का कारण पर स्त्री की तरफ लालसा है। केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होने वाला। जीवन मूल्यों का पवित्र होना आवश्यक है।
स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में अंतर समझने की आवश्यकता है, तभी चीजें अच्छी हो सकती हैं। भारत का इतिहास हिन्दू इतिहास है और अपने जीवन मूल्यों, अपनी संस्कृति को समझने की आवश्यकता है। हिन्दू संस्कृति पर्यावरण प्रेमी है। इसीलिए हम पेड़ों की पूजा करते हैं, धरती को मां का दर्जा देते हैं। हमारी संस्कृति जीवंत है। संस्कृति पूरी दुनिया को जीवन दृष्टि देने का काम करती है। आत्मोत सर्वभूतेषु यानि हम सभी में ईश्वर हैं।
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समाज में ऐसी शक्तियां काम कर रही हैं, जिसके कारण समाज का विघटन हो रहा है और इसे समझने की आवश्यकता है। हमारे यहां सभी बातें धर्म के फ्रेमवर्क में की जाती है। कृतज्ञता का भाव हमारी संस्कृति का हिस्सा है। यही कारण है कि हमारे अंदर मातृ देवो भव और पितृ देवो भव का भाव आता है। यह भाव व्यापक हुआ तो समाज सही बनेगा। कृतज्ञता का भाव हिन्दू संस्कृति का हिस्सा है।
जिन संबंधों के आधार पर भारत की परिवार व्यवस्था टिकी है उन्हें लिव इन रिलेशनशिप जैसी कुरीतियां नष्ट कर रही हैं। यह दुख की बात है कि आज इसको देखते हुए इसके लिए कानून बनाने पड़ रहे हैं। देश के प्रति सीएए के कानून के तहत भारत के बाहर रहने वाला व्यक्ति अगर असुरक्षित है तो हम उसकी चिंता करेंगे। यह 2000 सालों में पहली बार भारत में हुआ है, जब हमने अपनी जाति के लिए चिंता की। जयसिंह राजे को शिवाजी को गिरफ्तार करने के लिए औरंगजेब ने भेजा था। लेकिन शिवाजी ने जय सिंह राजे को समझाया कि हम दोनों हिन्दू हैं, लेकिन वो इस भावना को नहीं समझ पाए। वो देश और समाज के लिए क्या अच्छा है ये समझने में पूरा तरह से विफल रहे। आज विश्व में हिन्दू देश केवल नेपाल और भारत रह गए।
भारत पूरी दुनिया में टिका है, क्योंकि यहां सत्ता बदली लेकिन कोई इसकी धर्म और संस्कृति को डिगा नहीं सका। इस तरह की बातें संस्कृति में निहित हैं। इसलिए समन्वय आवश्यक है। समन्वय का भाव नहीं होगा तो देश औऱ समाज की संकल्पना नहीं कर सकते। यही दुनियाभर में संघर्ष का कारण है। भारत की सत्ता की मिलिट्री सत्ता न होकर धार्मिक सत्ता रही है। लेकिन विश्व गुरू बनने के लिए स्वयं को ताकतवर बनाए रहना आवश्यक है। इसके लिए एक मजबूत शासन की आवश्यकता है।
हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हमें एक मजबूत समाज की जरूरत है। लेकिन बड़ी समस्या है कि आज बहुत सारे लोग पश्चिमी सभ्यता को जीवन समझने लगे हैं। हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वो समाज के लिए अपने जीवन में सांस्कृतिक जीवन मूल्य लाने की जरूरत है। इस काम को सभी को मिलकर करने की जरूरत है। कम्यनिस्ट लोगों ने अपने ही कई लोगों की हत्या साम्यवादियों ने की है। सूरज का अस्त हो रहा था तो उसके मन में चिंता आ गई औऱ इतने में एक मां ने मंदिर ने दीपक जला दिया तो दीपक सूरज न दीपक जला दिया और अंधेरा दीपक को नहीं बुझा सका। इसी बीच फिर से सूर्योदय हो गया। एक नागरिक के नाते हम सभी को एक दीपक की जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। तभी एक सुदृढ़ समाज का निर्माण हो सकेगा।
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