महाभारत युद्ध आरम्भ होने से पहले मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी की पावन तिथि को किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन और योगेश्वर कृष्ण के मध्य आत्मा की अनश्वरता और निष्काम कर्म के सनातन तत्वदर्शन पर जो अनूठा वार्तालाप हुआ था; सनातन धर्म का वह नवनीत आज पूरी दुनिया में ‘श्रीमद्भागवद्गीता’ के रूप में विख्यात है। वर्तमान समय से पांच हजार वर्ष पहले कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में दिया गया विश्व के सबसे बड़े नीतिज्ञ भगवान श्रीकृष्ण का यह वचनामृत ‘महाभारत’ के छठे खंड “भीष्म पर्व” का सर्वाधिक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस अमृतोपम गीताज्ञान के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने जहां एक ओर मोहग्रस्त अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर क्षत्रियोचित कर्म हेतु प्रेरित किया था तो दूसरी ओर एक युगप्रवर्तक धर्म प्रवक्ता के रूप में धर्म के नाम पर पुरातन काल से चली आ रही अंधरूढ़ियों का निराकरण कर धर्म का सहज, सरल और लोकोपयोगी स्वरूप जन सामान्य के समक्ष प्रस्तुत किया था। सनातन धर्म के तत्वदर्शी मनीषियों की मानें तो इस अनूठे धर्मशास्त्र में किसी पंथ विशेष की नहीं अपितु विश्व मानवता के कल्याण के लिए ज्ञान, भक्ति व कर्मयोग के तथ्यपूर्ण समन्वय की अद्भुत व्याख्या मिलती है। देश-दुनिया के सभी दार्शनिक व मनीषी आज इस विषय पर एकमत हैं कि 18 अध्यायों के 700 श्लोकों में प्रवाहित इस अद्भुत ज्ञान गंगा का कोई सानी नहीं है। इस अनुपम ग्रन्थ की वैश्विक लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने अनूठे विषय वैशिष्ट्य के कारण दुनियाभर की 78 भाषाओं में इस ग्रन्थ के 250 से ज्यादा अनुवाद हो चुके हैं।
काबिलेगौर हो कि देवभूमि भारत में युगपुरुष श्रीकृष्ण की इस कालजयी वाणी की अद्भुत विवेचनाएँ की गयी हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के लोकप्रिय भाष्यों में अष्टावक्र गीता ( राजा जनक व अष्टावक्र के मध्य का संवाद), अवधूत गीता (दत्तात्रेय महराज द्वारा की गयी गीता की व्याख्या), जगद्गुरु आदि शंकराचार्य और रामानुज के गीता भाष्य, ज्ञानेश्वरी (संत ज्ञानेश्वर), ईश्वरार्जुन संवाद (परमहंस श्री श्री योगानंद), गीता यथारूप (प्रभुपाद स्वामी), भगवद्गीता सार (स्वामी क्रियानन्द), गीता साधक संजीविनी (रामसुख दास जी महराज ), गीता चिंतन (हनुमान प्रसाद पोद्दार), गूढ़ार्थ दीपिका टीका (मधुसूदन सरस्वती), सुबोधिनी टीका (श्रीधर स्वामी ), अनासक्ति योग ( महात्मा गांधी), गीता पर निबंध (अरविन्द घोष ), गीता रहस्य (बाल गंगाधर तिलक), गीता प्रवचन (विनोबा भावे), गीता तत्व विवेचनी (जयदयाल गोयन्दका ) तथा यथार्थ गीता (स्वामी अड़गड़ानंद जी) सर्वाधिक लोकप्रिय हैं।
गीता की इन टीकाओं में “अष्टावक्र गीता” एक अमूल्य ग्रन्थ माना जाता है। अद्वैत वेदान्त के इस ग्रन्थ में ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के संवाद का संकलन है। ग्रंथ में राजा जनक के तीन प्रश्नों की व्याख्या है-ज्ञान कैसे प्राप्त होता है ? मुक्ति कैसे होगी और वैराग्य कैसे प्राप्त होगा ? ये तीन शाश्वत प्रश्न हैं जो हर काल में आत्मानुसंधानियों द्वारा पूछे जाते रहे हैं। इस ग्रन्थ में ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति और बुद्धत्व प्राप्त योगी की दशा का सविस्तार वर्णन है। किंवदंती है कि रामकृष्ण परमहंस ने भी यही पुस्तक नरेंद्र को पढ़ने को कही थी जिसके पश्चात वे उनके शिष्य बने और कालांतर में स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। इसी तरह गीता के भाष्यों में चर्चित “अवधूत गीता” भी अद्वैत वेदान्त के सिद्धान्तों पर आधारित संस्कृत ग्रन्थ है। अवधूत स्वामी दत्तादेय महराज द्वारा रचित यह ग्रन्थ नाथ योगियों का महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। आदि शंकराचर्य के “गीता भाष्य” में वैदिक कर्मकांड और उपनिषदों के ब्रह्मवाद का अद्भुद समन्वय मिलता है। उपनिषदों के वेदांत तथा बौद्ध और जैन धर्म के संन्यासवाद के प्रभाव से भारतीय जनता में विरक्ति और निवृत्ति के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए उन्होंने गीता के कर्मयोग की युगानुकूल व्याख्या कर देश को एक नया संजीवनी मंत्र प्रदान किया। इसी क्रम में संत ज्ञानेश्वर की “ज्ञानेश्वरी” में वर्णित ज्ञान एवं भक्ति के समन्वय के साथ नाथ संप्रदाय के योग, स्वानुभव इत्यादि की व्याख्या की गयी है। यद्यपि उन्होंने अपनी टीका शंकराचार्य के “गीताभाष्य” के आधार पर लिखी मगर इन मूल सिद्धांतों को भागवत सम्प्रदाय की सुदृढ़ पीठिका पर प्रतिष्ठित किया गया है। इसी तरह विनोबा भावे के “गीता प्रवचन” में कृष्ण-अर्जुन संवाद की समाजशास्त्रीय दृष्टि से अद्भुत विवेचना मिलती है। विनोबा जी लिखते हैं गीता और उनका सम्बन्ध तर्क से परे है। उनका शरीर मां के दूध पर जितना पला है, उससे कहीं अधिक उनका पोषण गीता के ज्ञानामृत से हुआ है। वहीं स्वामी श्री रामसुखदास जी द्वारा गीता के सरल भाषा में किये गये भाष्य “गीता प्रबोधनी” संस्कृत न जानने वाले व्यक्तियों के लिये बहुत उपयोगी है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के मानव जीवनोपयोगी दिव्य उपदेश संकलित हैं। इसी तरह बाल गंगाधर तिलक के भाष्य “गीता रहस्य” में भगवान श्रीकृष्ण के निष्काम कर्मयोग की जो सरल, व्यावहारिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से स्पष्ट व्याख्या मिलती है, वह अपने आप में अद्भुत है। इसकी इस पुस्तक की रचना लोकमान्य जी ने माण्डला जेल (बर्मा) में की थी। वे अपने समय और समाज के मुताबिक गीता को देखना और समझना चाहते थे। एक थके हुए गुलाम समाज को जगाने के लिए वह गीता को संजीवनी बनाना चाहते थे। जानना दिलचस्प होगा कि इस “गीता रहस्य” को तिलक ने पांच महीने कारावास अवधि में पेंसिल से लिखा था। इस ग्रंथ में तिलक ने मनुष्य को उसके संसार में वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराया है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तो “गीता” को अपनी माता कहते थे। उनकी गीता पर टीका “अनासक्ति योग” भी एक पठनीय ग्रन्थ है जिसमें उपनिषदों का सार निहित है। उन्होंने स्वयं अपने जीवन में अनासक्ति योग का पालन किया। इसी के बल पर उन्होंने न सिर्फ भारत की राजनीति का नक्शा बदल दिया वरन विश्व को सत्य, अहिंसा, शांति और प्रेम की अजेय शक्ति के दिग्दर्शन कराया।
ज्ञात हो कि श्रीमद्भागवद्गीता के अनेकानेक भाष्यों के बीच जिस टीका ने विशेष लोकप्रियता पायी है, वह है स्वामी अड़गड़ानंद महराज की “यथार्थ गीता”। इस ग्रन्थ में कर्मफल त्याग की बेहद अनूठी व्याख्या मिलती है। इस कृति में स्वामी जी ने इस बात पर बल दिया है कि अंधश्रद्धा व बाह्याचारिता भक्ति नहीं है; अपितु भक्त वह है जो किसी से द्वेष नहीं करता, करुणा का भंडार है, ममता-रहित है, निरहंकार है, सुख-दुःख, शीत-उष्ण व मान-अपमान में सम है, क्षमाशील व संतोषी है, जिसके निश्चय कभी बदलते नहीं, जिसने अपनी मन और बुद्धि ईश्वर को अर्पण कर दिया हैं। ऐसे भक्त ही ईशकृपा के सच्चे अधिकारी होते हैं। इसी क्रम में अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ “इस्कॉन” के संस्थापक आचार्यश्री ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा रचित “भगवद्गीता यथारूप” की प्रामाणिकता और दिव्यता की वजह से आज विश्व में सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली गीता है। 200 से भी ज्यादा भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि मुगल बादशाह शाहजहाँ का सबसे बड़ा बेटा दाराशिकोह भी एकेश्वरवाद पर आधारित इस ग्रंथ ने काफी गहराई से प्रभावित था और उसने भगवद्गीता का ‘’राज्मनामा’’ (युद्धकथा) नाम से फारसी भाषा में अनुवाद भी किया था।
भगवद्गीता से प्रभावित वैश्विक हस्तियाँ
हर्ष का विषय है कि सनातन धर्म के महाग्रंथ श्रीमद्भागवद्गीता ने दुनियाभर की कई महान हस्तियों के जीवन को नयी दिशा दी है। इस सूची में सापेक्षता का सिद्धांत प्रतिपादित करने वाले नोबलजयी विश्वविख्यात जर्मन भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंसटीन का नाम प्रमुखता से आता है। वे भगवद्गीता के उपदेशों से गहराई से प्रभावित थे। उन्होंने कहा था कि “ जब मैंने भगवद गीता को पढ़ा तो मुझे पता चला कि ईश्वर ने कैसे दुनिया को बनाया। इसलिए मैं सबसे कहना चाहता हूं कि गीता को जरूर पढ़ें।‘’ इसी तरह अमेरिका के प्रसिद्ध प्रकृतिवादी व दार्शनिक कवि हेनरी डेविड थोरो ने भी अपनी सर्वाधिक लोकप्रिय किताब ‘’वाल्डेन’’ में भगवद गीता का कई बार उल्लेख किया है। वह ‘’वाल्डेन’’ के पहले अध्याय में लिखते हैं “ पूरब के दर्शनों में सबसे ज्यादा सशक्त दर्शन भगवतगीता का ही है।” ऐसे ही अमेरिकी दार्शनिक व कवि टी. एस. इलियट पर भी भारतीय दर्शन का गहरा प्रभाव माना जाता है। अपनी कविता “द ड्राई साल्वेजेस” में भगवद गीता में कृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद का उल्लेख करते हुए उन्होंने लोगों से कहा था कि व्यक्तिगत फायदे की जगह ईश्वर को पाने के पीछे भागो। अंग्रेजी के जाने माने लेखक और दार्शनिक एलडस हक्सले ने भी भगवद गीता के बारे में लिखा था कि यह मानव के आध्यात्मिक विकास का सबसे व्यवस्थित दर्शन है और इसी कारण इसका महत्व केवल भारतीयों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए उतना ही है।”
जानना दिलचस्प हो भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष वैज्ञानिक सुनीता विलियम्स जब अंतरिक्ष मिशन के लिए जा रही थीं, तो वे अपने साथ भगवान गणेश की एक छोटी मूर्ति और भगवदगीता ले गयी थीं। उस वक्त जब अमेरिकी पत्रकारों ने उनसे यह पूछा कि वह अंतरिक्ष में गीता और भगवान गणेश की मूर्ति क्यों ले जा रही हैं तो उनका उत्तर था कि गीता के जरिये उनको जीवन के उद्देश्य को समझने और अपने लक्ष्य को सफलता पूर्वक पूरा करने में व्यापक मदद मिलेगी। वहीं ऑस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध दार्शनिक, समाज सुधारक रूडोल्फ जोसेफ लॉरेंज स्टेनर ने गीता की व्याख्या करते हुए कहा था कि यह भारतीय धर्मग्रन्थ जीवन और सृजन को समझने का पूरा ज्ञान देता है। स्टेनर कहते हैं कि कोई व्यक्ति कर्म, प्रशिक्षण और बुद्धि से कितनी ऊंचाई तक पहुंच सकता है, श्रीकृष्ण इसका सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
कहा जाता है कि जर्मनी के दार्शनिक, भाषाविद और नौकरशाह फ्रेडरिक वॉन हमबोल्ट ने गीता को पढ़ने के लिए 1821 में संस्कृत भाषा सीखी थी। भगवदगीता के बारे में उनका कहना था कि यह सत्य के करीब दुनिया का सबसे बेहतरीन जीवन दर्शन है। गीता को पढ़ने के बाद उन्होंने अपने दोस्त और राजनीतिज्ञ फ्रेडरिक वॉन गेंट्ज को पत्र लिखते हुए कहा था, ‘’इस पुस्तक पढ़कर मुझे ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का अनुभव हुआ था। इस ग्रन्थ की निर्मलता और सरलता ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया। इस कृति में कृष्ण ने अपने सिद्धांत को जिस खास अंदाज में पेश किया है, उसमें मैं अध्यात्म की जटिलता नहीं देखता। यह किताब लोगों को नये सिरे से सोचने पर मजबूर करती है।‘’
गीता प्रेमी वैश्विक विभूतियों में आयरिश मूल की ब्रिटिश सामाजिक कार्यकर्ता एनी बेसेंट जिन्होंने महामना मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी; का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। उनके मन में में काशी और गीता के प्रति गहन आस्था थी। बाइबिल से टूटे बेंसेंट के मन को गीता से गहरी सांत्वना मिली थी। उन्होंने “द लॉर्ड सॉन्ग” के नाम से भगवद गीता का अनुवाद भी किया था। इस किताब में वे लिखती हैं कि भगवद गीता हमें सिखाती है कि सांसारिक जीवन में रहते हुए कैसे ईश्वर को पाया जा सकता है।
टिप्पणियाँ