उसकी शादी मात्र पंद्रह वर्ष की उम्र में हुई थी, मगर उसे फांसी की सजा दे दी गई। उसे फांसी पर लटका भी दिया गया। वर्ष 2009 में पंद्रह वर्ष की आयु में निकाह करने वाली लड़की समीरा ने अपने शौहर को चार वर्ष के बाद 2013 में मार डाला था। यह और भी बड़ी पीड़ा है कि वह 19 वर्ष की आयु तक दो बच्चों की मां भी थी।
इस मामले में ऐसा बताया जाता है कि शौहर औए बीवी के बीच ताल्लुक अच्छे नहीं थे और जिसके चलते बीवी ने शौहर को कुछ मिलाकर पिला दिया था और शौहर के घरवालों ने बच्चों को अपने पास रखकर समीरा के लिए मौत की सजा मांगी।
The execution of #SamiraSabzian, forced into child marriage at age 15 by the Iranian regime for an alleged crime 10 years ago, has been delayed for about a week, possibly until December 20th. While this week will pass swiftly, the effort to #SaveSamira must persist with increased… pic.twitter.com/BQzoLs2Tyd
— pmv1401 (@panee_motamedi) December 13, 2023
यह हालांकि घरेलू मामला है और इस पर लोगों की राय भिन्न हो सकती है, मगर 15 वर्ष की उम्र में निकाह पर तो बात होनी ही चाहिए, बच्चियों के परिपक्व होने पर ही शादी की आजादी पर बात होनी चाहिए। क्योंकि ईरान में लड़कियां अपनी मूलभूत आजादी की मांग को लेकर लगातार लड़ रही हैं और वह है अनिवार्य हिजाब से आजादी!
अनिवार्य हिजाब को लेकर महिलाओं के साथ लगातार अन्याय की बातें लगातार सामने आ रहीं हैं। 12 दिसंबर 2023 को ही एक महिला डॉक्टर को हिजाब न पहनने के कारण यूनिवर्सिटी से नौकरी से निकाल दिया गया। डॉ. फातिमा राजेल, जो बाबोल यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेस में प्रोफेसर और सर्जन थीं, उन्होंने एक अवार्ड समारोह में शिरकत की थी।
उस अवार्ड समारोह में उन्होंने बिना हिजाब पहने अवार्ड लिया था। जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ था, वैसे ही ईरान में कट्टरपंथी लोग भड़क गए और शुक्रवार की नमाज में आमोल के इमाम ने कहा कि सर्जन के इस कदम के खिलाफ कानूनी और कड़ा कदम उठाना चाहिए।
अब उनका मेडिकल लाइसेंस भी सस्पेंड हो गया है। हालांकि उन्होंने बाद में माफी का वीडियो भी साझा किया। ईरान की निर्वासित एक्टिविस्ट मसीह अलीनेजद ने उनका यह वीडियो साझा करते हुए पूरे विश्व समुदाय से यह आग्रह किया है कि वह महिलाओं के जीवन की आजादी के लिए कदम उठाएं।
I call on doctors worldwide: Let us not remain silent about this injustice. Dr. Fatemeh RajaeiRad, honored as Amol’s top physician, courageously stepped onto the stage without the mandatory hijab. Today, she’s being penalized, her medical license suspended, simply for defying a… pic.twitter.com/XCe1QWsC7D
— Masih Alinejad 🏳️ (@AlinejadMasih) October 27, 2023
महिलाओं के प्रति यह हिंसा यहीं नहीं थमती है। यह हिंसा लैंगिक सीमाओं को भी पार करती है। सभी को महसा अमीनी की मौत के बाद हुए प्रदर्शन याद होंगे और उसे दबाने के लिए जो दमनचक्र सरकार द्वारा चलाया गया, उसमें हजारों लोगों को यातनाएं दी गयी थीं, यह भी लोगों को याद होगा। कैसे कई पुरुष भी सरकार के इस दमन चक्र का शिकार हुए थे, जिनमें ईरानी एक्टिविस्ट मोहसेन शेखारी का नाम भी लिया जा सकता है जिन्हें दिसंबर 2022 में फांसी पर चढ़ा दिया गया था।
वहीं अब गार्जियन में एक लेख प्रकाशित हुआ है, जो यह दिखाता है कि कैसे ईरान ब्रिटेन में उन लोगों पर निशाना साध रहा है जो महिलाओं की इस आजादी पर बात कर रहे हैं। ईरान मूल की एक विद्यार्थी सौदाबे ने महसा अमीन की मृत्यु के विरोध में एवं अपने देश में महिलाओं की स्थिति के ऊपर मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में तो विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया ही था, बल्कि इस्लामिक सेंटर ऑफ इंग्लैण्ड के सामने भी किया था। वहीं इस वर्ष संसद में एक सांसद ने यह कहा है कि इस्लामिक सेंटर ऑफ इंग्लैण्ड के ईरानी सरकार के साथ सम्बन्ध हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार ईरान मूल की विद्यार्थी ने जैसे ही महसा अमीन की मृत्यु के विरोध में प्रदर्शन का आयोजन किया वैसे ही उसके पास ऑनलाइन धमकियां आने लगीं और यह भी कहा जाने लगा कि उसके इन कदमों का खामियाजा ईरान में उसके परिजनों को भुगतना होगा।
सौदाबे का कहना था कि इस्लामिक सेंटर का प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले कई लोगों ने उसका और अन्य प्रदर्शनकारियों का विरोध किया। इस रिपोर्ट के अनुसार अमीनी की मृत्यु के बाद विरोध प्रदर्शन करने वाले कई लोगों का यह कहना है कि वह लगातार डर के साए में जिंदा हैं। उनका कहना है कि यूके में ईरान का विरोध करने वाले लोग अपने घर नहीं जा सकते हैं।
यहां तक कि बीबीसी के कर्मियों ने भी गार्जियन के साथ बातचीत में यह कहा था कि उन्हें भी ईरानी अधिकारियों द्वारा परेशान किए जाने के बाद घर से बाहर निकलने पर अकेले चलने में डर लगता था और ईरान में उनके परिजनों को गैर कानूनी रूप से हिरासत में लिया गया था।
वहीं यदि फांसी की बात की जाए तो ईरान में अमीनी की मृत्यु के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद कम से कम 229 लोगों को फांसी दी जा चुकी हैं। नवम्बर में ही ईरान में मौत की सजा को लेकर यूएन ने चेतावनी जारी की थी और इसे खतरनाक बताया था। यूएन के अनुसार इस वर्ष के आरंभिक 7 महीनों में ही 419 लोगों को मौत की सजा सुनाई जा चुकी थी, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 30% अधिक थी।
अमीनी की मृत्यु के बाद आरम्भ हुए प्रदर्शनों के बाद ईरानी लड़कियों का अपने देश में किया जा रहा विरोध प्रदर्शन या फिर यूके में सौदाबे जैसी लड़कियों को धमकी देना और उनका ईरान ही कभी न आ पाना, यह अब महिलाओं के प्रति हिंसा के वह उदाहरण हैं, जिन पर लगातार बात होनी चाहिए। इन मामलों को लगातार सामने आते रहना चाहिए जिससे यह पता चले कि दुनिया के एक देश में महिलाएं अपने अधिकारों की लड़ाई कितनी दृढ़ता से लड़ रही हैं।
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