केरल की सड़कों पर माकपा के अपराधियों का राज है। ‘खूंखार अपराधियों ने उनकी कार पर सीधा जोरदार हमला बोला’, लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनी रही। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या पुलिस गुंडों को मुख्यमंत्री की कार पर हमला करने की इजाजत देगी?
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के खिलाफ माकपा की साजिश सामने आई है। 11 दिसंबर की देर शाम जब राज्यपाल हवाईअड्डे जा रहे थे, माकपा के छात्र संगठन एसएफआई के लोगों ने काले झंडे दिखाकर उनका विरोध किया और उन पर हमला किया। राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मुख्यमंत्री पिनराई विजयन पर जानबूझकर उन्हें शारीरिक चोट पहुंचाने की साजिश रचने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि केरल की सड़कों पर माकपा के अपराधियों का राज है। ‘खूंखार अपराधियों ने उनकी कार पर सीधा जोरदार हमला बोला’, लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनी रही। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या पुलिस गुंडों को मुख्यमंत्री की कार पर हमला करने की इजाजत देगी?
राज्यपाल का आरोप है कि मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कन्नूर में भी ऐसी ही साजिश रची थी। उन्होंने कन्नूर विश्वविद्यालय में दिसंबर 2019 को आयोजित भारतीय इतिहास कांग्रेस का जिक्र करते हुए कहा कि इतिहासकार इरफान हबीब ने उस कार्यक्रम में उनके साथ मारपीट करने की कोशिश की थी। उस समय उन्होंने कहा था कि उस कार्यक्रम में इरफान हबीब भी एक वक्ता थे। राज्यपाल के अनुसार, वह अपना संबोधन शुरू ही करने वाले थे कि कार्यक्रम में उपस्थित अधिकतर प्रतिनिधि खड़े हो गए और संशोधित नागरिकता कानून पर उनके रुख का विरोध करने लगे।
जब उन्होंने अपना पक्ष रखना चाहा, तो इरफान हबीब ने हमला करने का प्रयास किया। राज्यपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री ने गुंडों को सड़कों पर उत्पात मचाने की छूट दे रखी है। साथ ही, उन्होंने सवाल उठाया कि इस साजिश में यदि माकपा एक पक्ष है, तो मुख्यमंत्री क्या कर सकते हैं? भारतीय इतिहास कांग्रेस की घटना के बाद राज्यपाल ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री कार्यालय ने माकपा के उस नेता को ‘पनाह’ दी थी, जिसने कथित तौर पर ‘उनकी जान लेने का प्रयास’ करने में मदद की थी। अब राज्यपाल ने सरकार पर धमकाने और डराने के प्रयासों के खिलाफ चेतावनी दी है।
राज्यपाल पर हमले की निंदा
कहा जा रहा है कि एसएफआई ने राज्यपाल द्वारा ‘विश्वविद्यालयों को संघ परिवार केंद्र में बदलने के कथित प्रयास’ के खिलाफ काले झंडे दिखाए। इस दौरा तिरुवनंतपुरम के पेट्टा जंक्शन पर एसएफआई के लोग राजमार्ग पर घुस आए और राज्यपाल की कार को रुकने के लिए मजबूर किया। मलयालम समाचार चैनलों द्वारा प्रसारित एक वीडियो में कार्यकर्ताओं की भीड़ को राज्यपाल की घेराबंदी करते हुए दिखाया गया है। आरोप है कि एसएफआई के लोगों ने कार पर झंडे वाले डंडों से हमला किया। इस घटना पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी यूनाइटेड डेमोके्रटिक फ्रंट (यूडीएफ) और भाजपा ने निंदा की है।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने कहा कि यह हमला राज्यपाल के खिलाफ था। माकपा की हिंसा से राज्यपाल का बचाव भाजपा करेगी। वहीं, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के. सुधाकरन ने कहा कि यह कानून व्यवस्था बिगड़ने का काला दिन है। विधानसभा में विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन ने कहा कि मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को एसएफआई के प्रदर्शन की पूरी जानकारी थी। उन्होंने इसकी मंजूरी दी है। राज्यपाल के खिलाफ एसएफआई का प्रदर्शन सारी हदें पार गया है। इसके बाद 10 दिसंबर को जब राज्यपाल एक निजी होटल में गए तो एसएफआई कार्यकर्ता वहां भी जमा हो गए और काले झंडे दिखाकर उनका विरोध किया। वे यह आरोप लगाते हुए विरोध कर रहे थे कि ‘राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों को संघ परिवार के केंद्रों में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।’
राज्यपाल ने मुख्य सचिव से यह रिपोर्ट विश्वविद्यालय बचाओ अभियान समिति के अध्यक्ष आर.एस. शशिकुमार की याचिका के आधार पर मांगी है। उन्होंने वित्तीय आपातकाल की स्थिति की सिफारिश करने की प्रार्थना की थी। उनकी याचिका में कहा गया है कि पीडब्ल्यूडी ठेकेदारों का 16,000 करोड़ रुपये और नागरिक आपूर्ति निगम के आपूर्तिकर्ताओं का 1,000 करोड़ रुपये बकाया है। मुख्य सचिव को लिखे गए राज्यपाल के पत्र में इन सभी मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
एसएफआई के राज्य सचिव एम.वी. गोविंदन ने घोषणा की है कि आने वाले दिनों में आंदोलन तेज किया जाएगा। वह केरल और कालीकट विश्वविद्यालयों के सीनेट और सिंडिकेट के लिए हाल ही में हुए नामांकन का जिक्र कर रहे थे। हालांकि पुलिस ने इस सिलसिले में एसएफआई के 20 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है। लेकिन अगले दिन यानी 11 दिसंबर को काले झंडे के प्रदर्शन ने एक नया मोड़ ले लिया। बताया जा रहा है कि राज्यपाल जिस रास्ते से जाने वाले थे, कुछ अधिकारियों ने उसकी सूचना एसएफआई को दी थी। राज्यपाल ने एसएफआई हमले को लेकर मुख्य सचिव और राज्य पुलिस प्रमुख से स्पष्टीकरण मांगा है।
अपने पत्र में राज्यपाल ने घटना के पीछे के कारण, उन्हें जेड प्लस सुरक्षा नहीं देने का कारण, उनकी सुरक्षा में चूक के लिए कौन जिम्मेदार है और दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है, इस संबंध में विवरण देने के लिए कहा है। साथ ही, उन्होंने कहा कि केरल कोई ‘कम्युनिस्ट देश’ नहीं है, बल्कि भारत का हिस्सा है। राज्य में कई छात्र संगठन हैं, लेकिन एसएफआई ही इस तरह का विरोध करती है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं किसी को नहीं डराता। लेकिन मैं किसी भी धमकी के आगे समर्पण भी नहीं करता। अगर वे कार से पर काले झंडे लहराते हैं, तो कोई नुकसान नहीं। लेकिन अगर वे मेरी कार के करीब आएंगे, तो मैं कार से बाहर निकलूंगा और उनका सामना करूंगा। मैंने पहले ही सरकार से रिपोर्ट मांगी है कि क्या राज्य वित्तीय आपातकाल का सामना कर रहा है। उन्हें 10 दिनों के भीतर इसकी रिपोर्ट देनी होगी।’’
माकपा के राज्य सचिव गोविंदन ने एसएफआई के विरोध प्रदर्शन को लेकर राज्यपाल के बयान की निंदा की है। वहीं, राज्य के पीडब्ल्यूडी मंत्री और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के दामाद मोहम्मद रियाज ने कहा है कि ‘भगवाकरण’ और ‘सांप्रदायीकरण’ का विरोध करने के लिए एसएफआई कार्यकर्ताओं की प्रशंसा की जानी चाहिए। रियाज खुल कर एसएफआई के हमलों को बढ़ावा दे रहे हैं। मंत्री के.एन. बालगोपाल, वी. सिवानकुट्टी, जे. चिंजुरानी और ए.के. ससींद्रन भी राज्यपाल के खिलाफ बयानबाजी पर उतर आए हैं।
राज्य की वित्तीय स्थिति पर मांगा स्पष्टीकरण
एक पहलू यह भी है कि राज्यपाल ने राज्य के मुख्य सचिव से राज्य की वित्तीय स्थिति के बारे में स्पष्टीकरण मांगा है और प्रश्न किया है कि क्या राज्य पर वित्तीय आपातकाल का खतरा मंडरा रहा है। यदि राज्य सरकार जल्द जवाब नहीं देती है, तो राज्यपाल राज्य में वित्तीय आपातकाल लगाने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में केंद्र का रुख महत्वपूर्ण होगा। चूंकि मुख्य सचिव पहले ही उच्च न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर बता चुके हैं कि राज्य गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहा है। सरकार पेंशन का भुगतान करने में असमर्थ है, इसलिए अब राज्य का सबसे शक्तिशाली आईएएस अधिकारी राज्यपाल को दिए जाने वाले अपने उत्तर में इससे इनकार नहीं कर सकता।
यदि वह (मुख्य सचिव) इनकार करते हैं, तो यह उच्च न्यायालय को गुमराह करने जैसा होगा। यदि मुख्य सचिव जवाब नहीं देते हैं, तो राज्यपाल एकतरफा सिफारिश कर सकते हैं। हालांकि अगर मुख्य सचिव तुरंत जवाब नहीं देते हैं तो राज्यपाल दूसरा पत्र भेज सकते हैं और अपने निर्णय पर कार्यवाही कर सकते हैं। राज्यपाल ने मुख्य सचिव से यह रिपोर्ट विश्वविद्यालय बचाओ अभियान समिति के अध्यक्ष आर.एस. शशिकुमार की याचिका के आधार पर मांगी है। उन्होंने वित्तीय आपातकाल की स्थिति की सिफारिश करने की प्रार्थना की थी। उनकी याचिका में कहा गया है कि पीडब्ल्यूडी ठेकेदारों का 16,000 करोड़ रुपये और नागरिक आपूर्ति निगम के आपूर्तिकर्ताओं का 1,000 करोड़ रुपये बकाया है। मुख्य सचिव को लिखे गए राज्यपाल के पत्र में इन सभी मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
राज्यपाल की रिपोर्ट सामान्यत: केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी जाती है। तीन वर्ष पहले केंद्र सरकार चेतावनी दी चुकी है कि केरल और पंजाब सहित पांच राज्यों की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है। केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने भी सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि वह सरकारी कर्मचारियों को डीए की पांच किस्तों का भुगतान कब उपलब्ध कराएगी। इसके लिए 18,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता है।
मुसीबत में केरल सरकार
संविधान के अनुच्छेद-360(1) के अनुसार, राजकोषीय आपातकाल सिर्फ तब लगाया जा सकता है, जब इसकी सिफारिश राज्यपाल द्वारा की गई हो और राष्ट्रपति द्वारा इसका अनुमोदन किया गया हो। यह स्थिति तब तक बनी रहती है, जब तक राष्ट्रपति इसे वापस नहीं ले लेते। संसद के दोनों सदनों को दो महीने के भीतर राजकोषीय आपातकाल को मंजूरी देनी होती है। केंद्र सरकार चाहे तो आपातकाल की घोषणा किए बिना भी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। आर.एस. शशिकुमार की याचिका में भुगतान की जाने वाली बकाया राशि दर्शाने वाली तालिका और मुख्य सचिव द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत शपथ-पत्र की प्रतियां शामिल हैं। याचिका में कहा गया है कि जब लोगों का सामान्य जीवन वित्तीय संकट के कारण संकट में होता है, तो हिंसा और अपराध बढ़ने की संभावना होती है। इसीलिए अनुच्छेद 360(1) के तहत राजकोषीय आपातकाल की आवश्यकता है। इसलिए याचिका में राज्यपाल से अनुरोध किया गया है कि वह राष्ट्रपति से राज्य में वित्तीय आपातकाल घोषित करने की सिफारिश करें। शशिकुमार के अनुसार-
2. सरकारी ठेकेदारों को 16,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना है।
3. विश्वविद्यालय कॉलेज के शिक्षकों का यूजीसी वेतन 2018 से 15,000 करोड़ रुपये बकाया है।
4. पिछले कई महीनों से कल्याण पेंशन का भुगतान नहीं होने के कारण वृद्ध लोग कठिनाई में हैं।
5. राज्य सरकार के कर्मचारियों को वेतन वृद्धि और डीए के 24,000 करोड़ रुपये बकाया हैं।
6. केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) के कर्मचारियों को नियमित वेतन नहीं मिलता है।
7. सेवानिवृत्त कर्मचारियों को महीनों तक पेंशन नहीं मिलती है।
शशिकुमार का आरोप है कि इसके बावजूद राज्य सरकार ‘केरलियम’ और ‘नव केरल सदा’ के लिए फिजूलखर्ची और विलासितापूर्ण खर्च को प्राथमिकता देती है। वित्तीय लेखा परीक्षा रिपोर्ट को राज्य विधानसभा के समक्ष रखना एक संवैधानिक आवश्यकता है। 2021-2022 की रिपोर्ट मई 2022 में उपलब्ध हुई थी। फिर भी इसे जानबूझकर विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है। शशिकुमार का एक और आरोप यह है कि मंत्रियों के स्टाफ सदस्यों पर, जब वे सेवा में ढाई साल पूरे कर लेते हैं, तब वैधानिक पेंशन बंद होने के बावजूद करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। उधर, केरल परिवहन विकास वित्त निगम ने, जो केरल सरकार के स्वामित्व की वित्तीय कंपनी है, सावधि जमा (एफडी) के रूप में लोगों के करोड़ों रुपये जमा किए थे, लेकिन परिपक्वता के बाद भी पैसा वापस नहीं मिला है। इसलिए निवेशक अदालत का रुख कर चुके हैं।
श्री रामकृष्ण मिशन, कोलकाता ने बरसों पहले केरल सरकार की गारंटी पर केटीडीएफसी में 130 करोड़ रुपये जमा किए थे। इस निवेश की भी परिपक्वता तिथि पार हो चुकी है और मिशन अपना पैसा ब्याज सहित वापस चाहता है, जो नहीं मिल रहा है। एक अन्य रिपोर्ट से पता चलता है कि केटीडीएफसी पर विभिन्न निवेशकों के 490 करोड़ रुपये बकाया हैं। करीब 350 निवेशक अपना पैसा वापस पाने के लिए रिजर्व बैंक का दरवाजा खटखटा चुके हैं। रिजर्व बैंक ने केटीडीएफसी के परिचालन पर रोक लगाते हुए एक स्टॉप मेमो जारी किया था। लाइसेंस रद्द करने की दिशा में यह पहला कदम है। जब कोलकाता की लक्ष्मीनाथ ट्रेड लिंक प्राइवेट लिमिटेड की 30 लाख रुपये चुकाने के लिए याचिका विचार के लिए आई तो केडीटीएफसी ने स्पष्टीकरण के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि गारंटी देने के बावजूद जिम्मेदारी से बचना राज्य सरकार के लिए शर्म की बात है।
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