सुरबहार सितार और सलिल चौधरी

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मोहन कुमार जाजू

1958 में भारतीय संगीत वाद्य यंत्रों की एक बहुत प्रसिद्ध दुकान हुआ करती थी। वह एकमात्र दुकान थी, जो पूरे अमेरिका में प्रामाणिक भारतीय वाद्य यंत्रों को बेचती थी। डेविड बर्नार्ड इसके मालिक हुआ करते थे।

अमेरिका के दक्षिण कैलिफोर्निया (लॉस एंजिल्स) में 1958 में भारतीय संगीत वाद्य यंत्रों की एक बहुत प्रसिद्ध दुकान हुआ करती थी। वह एकमात्र दुकान थी, जो पूरे अमेरिका में प्रामाणिक भारतीय वाद्य यंत्रों को बेचती थी। डेविड बर्नार्ड इसके मालिक हुआ करते थे।

एक दिन एक 36 वर्षीय भारतीय नौजवान इस दुकान में आया और वाद्य यंत्रों को बड़े ध्यान से देखने लगा। साधारण वेशभूषा वाला यह आदमी वहां के कर्मचारियों को कुछ खास आकर्षित नहीं कर सका, मगर फिर भी एक सेल्स गर्ल क्रिस्टिना उसके पास आकर बनावटी मुस्कान के साथ बोली, ‘‘मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूं?’’

उस नौजवान ने सितार देखने की मांग की और क्रिस्टिना ने उसे सितारों के संग्रह दिखाए। मगर उस व्यक्ति को सारे सितार छोड़ कर एक खास सितार पसंद आया, जिसे उसने देखने की जिद की। चूंकि वह सितार बहुत ऊपर शोकेस में रखा हुआ था, इसलिए उसे उतारना मुश्किल था। तब तक दुकान के मालिक डेविड भी अपने केबिन से निकल कर आ गए। आज तक किसी ने उस सितार को देखने की जिद नहीं की थी।

बहरहाल, सितार को उतार गया तो क्रिस्टिना शेखी बघारते हुए बोली, ‘‘इसे ‘बॉस’ सितार कहा जाता है और आम सितारवादक इसे नहीं बजा सकता। यह बहुत बड़े-बड़े शो में इस्तेमाल होता है।’’

वह भारतीय युवक बोला, ‘‘आप इसे ‘बॉस’ सितार कहते होंगे, मगर हम इसे ‘सुरबहार’ सितार के नाम से जानते हैं। क्या मैं इसे बजा कर देख सकता हूं?’’

अब तक दुकान के सारे लोग वहां इकट्ठा हो चुके थे। खैर, डेविड ने सितार बजाने की इजाजत दे दी। उस भारतीय ने थोड़ी देर तार कसे और फिर सुर मिलाया। सुर मिल जाने पर वह उसे अपने घुटनों पर लेकर बैठ गया और फिर उसने राग ‘खमाज’ बजाया। उसका वह राग बजाना था कि वहां सारे लोग जैसे किसी दूसरी दुनिया में चले गए। किसी को समय और स्थान का कोई होश न रहा। जैसे सब कुछ थम गया हो वहां। जब राग खत्म हुआ तो दुकान में ऐसा सन्नाटा छा चुका था, जैसे तूफान के जाने के बाद होता है। उन लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि वे ताली बजाएं या मौन रहें।

‘‘मैं भारतीयों को कमतर आंकती थी और अपने लोगों पर ही गर्व करती थी। आप दुकान पर आए, तब भी मैंने बुझे मन से आपको सितार दिखाया था। मगर आपने मुझे अचंभित कर दिया। फिर पता नहीं आपसे कभी मुलाकात हो या न हो, इसलिए मेरे लिए इस नोट पर कुछ लिख दीजिए।’’

डेविड तो इतने अधिक भावुक हो गए कि उस भारतीय से बोले, ‘‘आखिर कौन हैं आप? मैंने पं. रविशंकर को सुना है और उनके जैसा सितार कोई नहीं बजाता। मगर आप उनसे किसी तरह से कम नहीं हैं। मैं आज धन्य हो गया कि आप मेरी दुकान पर आए। बताइए, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?’’

उस व्यक्ति ने वह सितार खरीदने की बात कही, मगर डेविड ने कहा, ‘‘इसे मेरी तरफ से उपहार के तौर पर लीजिए, क्योंकि इस सितार का कोई मोल नहीं है। यह अनमोल है। मैं इसे बेच नहीं सकता।’’

क्रिस्टिना, जो अब तक रो रही थी, उसने उस भारतीय को चूमा और एक डॉलर का नोट देते हुए कहा, ‘‘मैं भारतीयों को कमतर आंकती थी और अपने लोगों पर ही गर्व करती थी। आप दुकान पर आए, तब भी मैंने बुझे मन से आपको सितार दिखाया था। मगर आपने मुझे अचंभित कर दिया। फिर पता नहीं आपसे कभी मुलाकात हो या न हो, इसलिए मेरे लिए इस नोट पर कुछ लिख दीजिए।’’

उस व्यक्ति ने क्रिस्टिना की तारीफ करते हुए अंत में नोट पर अपना नाम लिखा ‘सलिल चौधरी’। उसी वर्ष सलिल चौधरी ने अपनी एक फिल्म के लिए उसी सुरबहार सितार का उपयोग करके एक बहुत प्रसिद्ध बांग्ला गाना बनाया, जो राग खमाज पर आधारित था। बाद में यही गाना हिंदी में बना, जिसे स्वर कोकिला स्व. लता मंगेशकर ने स्वर दिया था। गाने के बोल थे, ‘‘ओ सजना, बरखा बहार आई, रस की फुहार लाई, अंखियों में प्यार लाई।’’ 1959 में बनी इस फिल्म का नाम था ‘परख’।

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