आज ही के दिन हुआ था संसद पर हमला, मौजूद थे 100 से ज्यादा सांसद, दोषी अफजल गुरू को 12 साल बाद दी गई थी फांसी
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आज ही के दिन हुआ था संसद पर हमला, मौजूद थे 100 से ज्यादा सांसद, दोषी अफजल गुरू को 12 साल बाद दी गई थी फांसी

13 दिसंबर 2001 को हुआ था संसद पर हमला, देश के लिए बलिदान हुए हुतात्माओं को याद करने का दिन

by आशीष कुमार अंशु
Dec 13, 2023, 11:12 am IST
in भारत, दिल्ली
13 दिसंबर 2001 को हुआ था संसद पर हमला

13 दिसंबर 2001 को हुआ था संसद पर हमला

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साल 2001 में संसद पर हमला हुआ था। हमला होते ही सुरक्षाबलों ने मोर्चा संभाला था और आतंकियों को मार गिराया था। दिल्ली पुलिस के अनुसार, मारे गये आतंकियों में हैदर तुफैल, मोहम्मद राना, रणविजय और हमजा शामिल थे। जब यह हमला हुआ उस समय अटल बिहारी वाजपेयी और सोनिया गांधी संसद से जा चुके थे, लेकिन हमले के दौरान 100 से अधिक सांसद परिसर में ही मौजूद थे। हमारे सुरक्षा बलों के अदम्य साहस और स्फूर्ति ने भारत के संसद को सुरक्षित किया और देश के मान-सम्मान की रक्षा की।

आज बलिदानियों को याद करने का दिन

आज का दिन उन हुतात्माओं को याद करने का है जो देश के लिए बलिदान हुए। आज का दिन दिल्ली पुलिस के पांच सुरक्षाकर्मी नानक चंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेन्द्र सिंह और घनश्याम को याद करने का है। आज का दिन केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की महिला कांस्टेबल कमलेश कुमारी और संसद सुरक्षा के दो सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी की बहादुरी और बलिदान को याद करने का है।

टुकड़े—टुकड़े गैंग

संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को हमले के 12 सालों बाद 9 फरवरी 2013 को फांसी दे दी गई थी और वह तिहाड़ में ही दफन कर दिया गया। यही वह अफजल था, जिसके लिए वामपंथी छात्र संगठन जेएनयू में नारे लगाते थे— ”अफजल हम शर्मिन्दा हैं, तेरे कातिल जिन्दा हैं।”, ”तुम कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा।” इस तरह के नारे लगाने वाले वामपंथी समूहों को ही भारतीय समाज ने टुकड़े—टुकड़े गैंग और अर्बन नक्सली नाम दिया। अफजल की जिन्दगी पर गालिब नाम से एक फिल्म भी बनी।

जब राजदीप ने अपनी तुलना गिद्ध से की

संसद हमले को लेकर हमले के चश्मदीद गवाह पत्रकार राजदीप सरदेसाई का एक किस्सा प्रसिद्ध हुआ था। जिसमें उन्होंने अपनी तुलना गिद्ध से की थी। राजदीप कहते हैं 2001 की ठंड का महीना था। दिल्ली में बहुत ही सुहाना मौसम था। हमलोग संसद कवर कर रहे थे और वहां करने को कुछ खास नहीं था। शुक्रवार का दिन था जिस दिन अधिकांश सांसद अपने संसदीय क्षेत्र में जाने की वजह से सदन में नहीं होते थे तो मेरे कैमरामैन ने कहा कि सर यहां कुछ होने वाला नहीं है क्यों नहीं हम लोग पार्टी करते हैं। मुझे भी लगा कि अच्छा विचार है।” राजदीप ने इस कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा— ”हम लोग 11 बजे के आस-पास संसद पहुंचे। वहां अंदर पहुंचे हुए हमें पांच मिनट हुआ होगा, हमने गन शॉट की आवाज सुनी। संसद पर आतंकियों का हमला हुआ था। मेरा कैमरामैन घबरा गया और उसने कहा सर चलिए। मेरी पहली प्रतिक्रिया थी- कहां चलिए? गार्ड को बोलकर संसद का दरवाजा बंद करवाओ, पहले कोई अंदर नहीं आना चाहिए। क्यों? क्योंकि इस बीच दूसरा चैनल अंदर नहीं आना चाहिए। उन दिनों कुछ चैनल ही हुआ करते थे। यह स्टोरी हमें ही ब्रेक करनी है। संसद आने से पहले अपने कैमरामैन के साथ राजदीप वाइन और कबाब की पार्टी संसद भवन के पास वाले एक पार्क में करने की योजना बनाकर आए थे, लेकिन वे कहते हैं कि जैसे ही यह खबर सामने दिखी, हम वाइन भूल गए। कबाब भूल गए। हम वास्तव में गिद्ध हैं। ऐसे मौकों पर भी एक्सक्लूसिव खबर की चाहत और दूसरों चैनलों से पत्रकार की प्रतिस्पर्धा का जिक्र राजदीप कर रहे थे। संसद हमले पर यह एक पत्रकार की आपबीती थी।

Topics: संसद पर हमला13 दिसंबर 2001अफजल गुरूAttack on Parliament13 December 2001Afzal Guru
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