पाकिस्तान की कंगाली देखकर उसकी हर शैतानी में उसका साथ देने वाले उसके आका चीन ने भी अब शायद हथियारों के मामले में उससे कन्नी काटना शुरू कर दिया है। चीन ने पाकिस्तान को धमकीभरे स्वर में कहा है कि अगर पाकिस्तान ने उसके पहले दिए रक्षा उपकरणों का पैसा जल्दी ही नहीं चुकाया तो आगे से उसे उधार में हथियार नहीं दिए जाएंगे।
दुनियाभर में भीख का कटोरा लेर घूमते पाकिस्तान के लिए ये एक बड़ा झटका है। दुनिया जानती है कि आतंक को पोसने वाले पाकिस्तान को सबसे ज्यादा हथियार चीन ही देता आया है। हथियारों के अलावा कम्युनिस्ट ड्रैगन उसे राशन के लिए कर्जा भी देता आया है। लेकिन अब वही चीन पाकिस्तान को आंखें दिखा रहा हो तो समझ लेना चाहिए कि उसका पाकिस्तान के सुधरने से भरोसा उठता जा रहा है।
गत एक दशक से ज्यादा साल से चीन ने पाकिस्तान को एक से एक हथियार उपलब्ध कराए हैं। लेकिन रक्षा क्षेत्र में अब दोनों षड्यंत्रकारी देशों में संभवत: ठनती जा रही है। पिछले पैसे चुकाने की चीन की पाकिस्तान को धमकीभरी झिड़की के मायने आगे से पाकिस्तान को हथियारों की खेप रुक जाने की तरफ इशारा हो सकती है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन पाकिस्तान को अपनी जेब में ही रखे रहना चाहेगा, उसे छिटकने नहीं देगा। कारण यह कि इस क्षेत्र में भारत के बढ़ते कद को संतुलित करने की गरज से उसे पाकिस्तान का कंधा चाहिए। इसलिए बहुत संभव है हथियार भेजना बंद करने की बजाय कम्युनिस्ट उसे और कर्ज तले दबाने की मंशा पाले हैं।
चीन जानता है कि पाकिस्तान के पास इतना फंड ही नहीं है कि उसका भुगतान कर सके, क्योंकि वहां आम जनता के राशन तक का इंतजाम बीजिंग की आर्थिक की मदद से हो रहा है, ऐसे में कंगाल इस्लामी देश रक्षा खरीद के पैसे चुकाने की सोच तक नहीं सकता। तो क्या चीन की मंशा यह है कि पाकिस्तान उससे और कर्जा ले और अपने देश पर उसके डैने और गहराई से धंसने दे?
पता चला है कि कुछ दिन हुए, दोनों देशों के आला अधिकारियों की इस विषय पर एक मुलाकात हुई है। बताया गया कि पाकिस्तान पर चीन की 1.5 अरब डॉलर की देनदारी बनती है। कर्जा बहुत बड़ा है, लेकिन जैसा पहले बताया, विशेषज्ञ इसे चीन की सिर्फ नब्ज टटोलने और घुड़की दिखाने से बढ़कर नहीं मानते। और यह इसलिए क्योंकि चीन शायद चाहता है कि पाकिस्तान उसका और ज्यादा गुलाम बन जाए।
पैसे के मामले में पाकिस्तान के खजाने खाली हैं। अर्थव्यवस्था के नाम पर शून्य है। उधर इस्लामी देश आईएमएफ के कई करारों के बोझ तले दबा है। ऐसे में चीन की पैसा चुकाने की घुड़की मिलना इस्लामाबाद को और परेशान करने के लिए काफी है।
श्रीलंका के अर्थतंत्र के चरमरा कर ढहने के घटनाक्रम को भी ध्यान में रखना होगा। चीन ने कर्ज के बोझ से उस द्वीपीय देश को ऐसा दबाया कि वह लगभग टूट ही गया। वहां भी ड्रैगन ने कर्ज में अकूत पैसा देकर श्रीलंका का अर्थतंत्र अपने शिकंजे में ले लिया था और उसके तमाम महत्वपूर्ण बंदरगाहों पर अपना हक जमा लिया था। इससे उस देश की अर्थव्यवस्था ऐसी चौपट हुई कि वह घुटनों पर आ गया। अर्थविदों को पाकिस्तान में कुछ वैसा ही परिदृश्य दिखाई देने की संभावनाएं लग रही हों, तो यह आश्चर्य की बात नहीं है।
इन परिस्थितियों में कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि चीन पाकिस्तान को अपनी जेब में ही रखे रहना चाहेगा, उसे छिटकने नहीं देगा। कारण यह कि इस क्षेत्र में भारत के बढ़ते कद को संतुलित करने की गरज से उसे पाकिस्तान का कंधा चाहिए। इसलिए बहुत संभव है हथियार भेजना बंद करने की बजाय कम्युनिस्ट उसे और कर्ज तले दबाने की मंशा पाले हैं।
इससे ये कयास धुंधलाते दिखते हैं कि पाकिस्तान के साथ चीन के रिश्तों में खटास आ जाएगी। पाकिस्तान को वैसे भी कोई अन्य बड़ा देश घास नहीं डाल रहा है। इसलिए इस्लामवादी भी नहीं चाहेंगे कि चीन उसका पल्लू छिटक दे।
ऐसे में एक संभावना यह भी हो सकती है कि और पैसा देने के बदले चीनी कम्युनिस्ट ग्वादर जैसी अन्य बड़ी परियोजनाओं के मालिक बन बैठें और उस बहाने भारत पर अपनी नजरें गढ़ाने में कामयाब हो जाएं। चीन यह भी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान के कंधे पर सवार होकर जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा वह बना रहा है उसमें कोई बाधा खड़ी हो।
यहां हमें श्रीलंका के अर्थतंत्र के चरमरा कर ढहने के घटनाक्रम को भी ध्यान में रखना होगा। चीन ने कर्ज के बोझ से उस द्वीपीय देश को ऐसा दबाया कि वह लगभग टूट ही गया। वहां भी ड्रैगन ने कर्ज में अकूत पैसा देकर श्रीलंका का अर्थतंत्र अपने शिकंजे में ले लिया था और उसके तमाम महत्वपूर्ण बंदरगाहों पर अपना हक जमा लिया था। इससे उस देश की अर्थव्यवस्था ऐसी चौपट हुई कि वह घुटनों पर आ गया। अर्थविदों को पाकिस्तान में कुछ वैसा ही परिदृश्य दिखाई देने की संभावनाएं लग रही हों, तो यह आश्चर्य की बात नहीं है।
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