पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर आखिरकार अपनी पहली अमेरिका यात्रा पर गए हैं। आधिकारिक तौर पर तो उनकी इस यात्रा का उद्देश्य आतंकवाद से पाकिस्तान के संघर्ष में अमेरिका की मदद मांगना है, लेकिन अंदरखाने वजह कुछ और भी बताई जा रही हैं। बताया गया है कि, अमेरिका में वे सेना और सरकार के बड़े अधिकारियों से मिलने वाले हैं। लेकिन यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि कंगाल पाकिस्तान के नेता और अधिकारी इन दिनों जहां भी जा रहे हैं, वहां भीख का कटोरा ले जाना नहीं भूलते हैं। पिछले दिनों अमेरिका में पाकिस्तान को किसी भी तरह की आर्थिक मदद रोकने की मांग बहुत तेजी से उठी थी, संभव है उस सिलसिले में भी वे हाथ फैलाना न भूलें!
वैसे, मुनीर की अमेरिका यात्रा की ‘टाइमिंग’ भी गौर करने लायक है। पाकिस्तान की अफगानिस्तान से सटी सीमा पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी का उपद्रव जोरों पर है। उसने ऐसा आतंक मचाया हुआ है कि पाकिस्तानी सेना भी सामना करने में असफल साबित हुई है। तालिबान उस पर कोई नियंत्रण लगा नहीं रहा है, जिसकी वजह से कथित तौर पर तालिबान को काबुल की सत्ता पर बिठाने वाले पाकिस्तान के साथ उसका छत्तीस का आंकड़ा बना हुआ है।
अक्तूबर माह में जनरल मुनीर ने अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन से फोन पर बात भी की थी। इसमें मुनीर ने पाकिस्तान में चल रहे हालात के बारे में अपना दुखड़ा सुनाया था। जुलाई माह में जब अमेरिकी केन्द्रीय कमान प्रमुख जनरल माइकल एरिक कुरिला पाकिस्तान गए थे तब वहां उन्होंने जनरल मुनीर से इलाके में शांति तथा स्थिरता कैसे लाई जा सकती है, इस पर पाकिस्तान का मन टटोला था।
इस्लामाबाद में इसे लेकर असमंजस की स्थिति बनी रही है। शाहबाज के बाद कुर्सी पर बैठे अनवर काकर बेबस नजर आ रहे हैं। उन्हें लगा होगा कि शायद पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष को अमेरिका भेजकर इस संबंध में कुछ मदद मांगना काम आए।
पाकिस्तान की सेना की ओर से उन अमेरिकी सैन्य और बाइडेन सरकार के अधिकारियों के नामों के बारे में खुलासा नहीं किया गया है जिनसे मुनीर मिलने वाले हैं। लेकिन सवाल है कि क्या अमेरिकी सेना या सरकारी अधिकारी पाकिस्तान पर भरोसा कर पाएंगे और क्या उसकी मदद के लिए संसद को मना पाएंगे? तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान तालिबान की शह पर पाकिस्तान का ही पोसा आतंकवादी गुट माना जाता है।
अफगान सीमा से पिछले दिनों पहले ही ऐसी जानकारियां आई थीं कि उस पूरे क्षेत्र में टीटीपी का काफी दबदबा हो चला है, यहां तक बताया जा रहा है कि इस जिहादी गुट ने वहां अपनी समानांतर सरकार चला रखी है। खैबर पख्तूनख्वा के कई इलाके ऐसे हैं जहां पाकिस्तानी सेना की कोई पूछ नहीं रह गई है।
पाकिस्तानी सेना के हवाले बताया यह भी गया है कि पाकिस्तान के तो बरसों से अमेरिका के साथ रक्षा संबंध रहे हैं। बताया कि अक्तूबर माह में जनरल मुनीर ने अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन से फोन पर बात भी की थी। इसमें मुनीर ने पाकिस्तान में चल रहे हालात के बारे में अपना दुखड़ा सुनाया था। जुलाई माह में जब अमेरिकी केन्द्रीय कमान प्रमुख जनरल माइकल एरिक कुरिला पाकिस्तान गए थे तब वहां उन्होंने जनरल मुनीर से इलाके में शांति तथा स्थिरता कैसे लाई जा सकती है, इस पर पाकिस्तान का मन टटोला था।
लेकिन सवाल यही है कि जनरल मुनीर का अमेरिका जाना क्या आतंकवाद से निजात दिलाने की गुहार करना है या इस सफर के अन्य आयाम भी हैं! अफगानिस्तान के तालिबान और टीटीपी की वजह से पाकिस्तानी सेना त्रस्त है। अफगान सीमा के पास खैबर पख्तूनख्वा का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के सैनिकों की पहुंच से दूर कर दिया गया है। पाकिस्तानी सेना की वहां जाने की हिम्मत नहीं है। तो क्या इन परिस्थितियों में अमेरिका आतंकवाद की फैक्ट्री के रूप में कुख्यात भारत के पड़ोसी इस्लामी देश की कोई मदद कर पाएगा?
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