केरल की अखिला अशोकन और लव जिहादी शफीन जहां के निकाह को वैध ठहराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक मामला पहुंचा। लगभग एक करोड़ रु. खर्च करके इस निकाह को वैध ठहराया गया। अब वह निकाह टूट गया है और अखिला ने कहा है कि उसने दूसरा निकाह कर लिया है।
जिस निकाह को वैध ठहराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में कपिल सिब्बल जैसे महंगे वकीलों ने बहस की वह मामला एक बार फिर से चर्चा में है। यहां बात हो रही है अखिला अशोकन और शफीन जहां के निकाह की। अखिला अशोकन यानी हादिया ने कहा है कि शफीन जहां से उसका निकाह टूट गया है और उसने दूसरा निकाह कर लिया है।
यह सब अखिला के पिता अशोकन के.एम. द्वारा केरल उच्च न्यायालय में दायर उस याचिका के बाद सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उनकी बेटी को पीएफआई से जुड़े कुछ तत्वों ने अवैध हिरासत में रखा है। इसके साथ ही उन्होंने न्यायालय से कहा है कि उनकी बेटी की जान को खतरा है। उन्होंने यह भी बताया है कि एक महीने से उनकी बेटी से बात नहीं हो पा रही है। वे मलप्पुरम स्थित अपनी बेटी के होमियो क्लीनिक भी गए, लेकिन वह बंद था। उनकी इस याचिका पर न्यायालय शीघ्र ही सुनवाई करने वाला है।
अखिला अशोकन और शफीन जहां का यह निकाह कोई साधारण नहीं था। इसके पीछे प्रतिबंधित इस्लामी चरमपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी पीएफआई का हाथ था। यह संगठन आतंकवादियों को प्रश्रय तो देता ही है, साथ ही लव जिहाद को भी बढ़ावा देता है। यह संगठन हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च करता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अखिला अशोकन और शफीन जहां का मामला। शफीन जहां पीएफआई का गुर्गा है। उसने पीएफआई के षड्यंत्र के अंतर्गत ही अखिला को लव जिहाद में फंसाया। इसके बाद उसने उसे इस्लाम कबूल कराया और नाम रखा हादिया, फिर उसके साथ निकाह कर लिया। घटना 2016 की है।
बता दें कि अखिला अशोकन केरल के कोट्टायम की रहने वाली है। उसके पिता अशोकन के.एम. भारतीय सेना में रहे हैं। अखिला अशोकन अपने पिता की इकलौती संतान है। इसलिए पिता ने उसे पढ़ाने में कोई कोताही नहीं की। उन्होंने 2015 में अखिला का नामांकन तमिलनाडु के सेलम स्थित एक होम्योपैथिक कॉलेज में बैचलर आफ होम्योपैथिक मेडिसिन एंड सर्जरी की पढ़ाई के लिए करा दिया। सेलम में अखिला अपनी दो सहेलियों फसीना और जसीना के साथ रह रही थी। कहा जाता है कि ये दोनों लड़कियां भी पीएफआई से जुड़ी थीं। इन दोनों ने अखिला को इस तरह भड़काया कि वह उनके जाल में फंस गई। इसके बाद 6 जनवरी, 2016 को अखिला गायब हो गई। इसकी जानकारी उसके पिता को मिली तो उन्होंने तमिलनाडु से लेकर केरल तक काफी खोजबीन की, लेकिन अखिला कहीं नहीं मिली। लेकिन उन्हें इतना पता चला कि अखिला लव जिहाद का शिकार हो गई है।
इसके बाद उन्होंने केरल उच्च न्यायालय में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण दायर किया। इस याचिका की सुनवाई के दौरान अखिला 19 जनवरी, 2016 को न्यायालय में हाजिर हुई। अखिला ने एक शपथपत्र के माध्यम से न्यायालय को बताया कि उसने स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार कर लिया है। इस मामले में न्यायालय भी कुछ नहीं कर सकता था, क्योंकि अखिला बालिग थी। इसके बाद न्यायालय ने अखिला के पिता की याचिका खारिज कर दी। न्यायालय में हाजिर होने के बाद अखिला एक इस्लामिक अध्ययन केंद्र ‘सत्य सारणी’ में एक छात्रा के नाते रहने लगी।
इसके बावजूद अखिला के पिता का मन नहीं माना। उन्हें आशंका हुई कि कहीं ये लोग अखिला को विदेश न ले जाएं। इसलिए उन्होंने केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर अनुरोध किया कि यह सुनिश्चित किया जाए कि उनकी बेटी को कोई विदेश न ले जा सके। न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई की और पुलिस से कहा कि वह ध्यान रखे कि अखिला को कोई विदेश न ले जाए। इसके साथ ही न्यायालय ने पुलिस से यह भी कहा कि वह इस बात की जांच करे इस्लामी अध्ययन केंद्र ‘सत्य सारणी’ कहीं कन्वर्जन में तो शामिल नहीं है।
न्यायालय के इस आदेश के बाद अखिला 21 दिसंबर, 2016 को शफीन जहां के साथ सामने आई। दोनों ने आपस में निकाह करने का दावा किया। इसके लिए दोनों ने निकाह का एक प्रमाणपत्र भी दिखाया। यह प्रमाणपत्र एक इस्लामी संगठन ‘धनवीरुल इस्लाम संघम’ ने जारी किया था। लेकिन अखिला के पिता ने इस निकाह को अवैध बताते हुए न्यायालय से अपनी बेटी को बचाने की प्रार्थना की। न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई की और अंत में निकाह को अवैध बता दिया।
इसके बाद 24 मई, 2017 को यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा। यहां शफीन जहां की ओर से कपिल सिब्बल ने सात बार, इंदिरा जयसिंह ने चार बार और दुष्यंत दवे ने तीन बार बहस की। अंत में मार्च, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए कहा कि निकाह वैध है।
दरअसल, इस मामलेे को शफीन जहां नहीं लड़ रहा था। उसकी मदद पीएफआई ने की। उसी ने इन महंगे वकीलों की फीस भी भरी। इस मुकदमे के लिए पीएफआई ने कुल 99,52,324 रु खर्च किए। इनमें से 93,85,000 रु चार वकीलों को दिए गए। सबसे अधिक कपिल सिब्बल को 77,00,000 रु मिले। इसके बाद दुष्यंत दवे, इंदिरा जयसिंह और मार्जूक बवाफी को भी पैसे मिले
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