'मुस्लिम लड़कियों की इस्लामी माहौल में पढ़ाई हो, सहशिक्षा नहीं' देवबंद के मौलाना मदनी का हैरान करने वाला बयान
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‘मुस्लिम लड़कियों की इस्लामी माहौल में पढ़ाई हो, सहशिक्षा नहीं’ देवबंद के मौलाना मदनी का हैरान करने वाला बयान

मौलाना मदनी के बयान के आखिर मायने क्या हैं, क्या यह मुस्लिम लड़कियों के पृथक्कीकरण की शुरुआत नहीं है? क्या यह उन्हें समाज से काटना नहीं है?

by सोनाली मिश्रा
Dec 9, 2023, 02:59 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
मौलाना अरशद मदनी

मौलाना अरशद मदनी

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विवादित बयानों से सुर्खियां बटोरने वाले मौलाना अरशद मदनी ने एक बार फिर से विवादित बयान दिया है। इस बार उन्होंने कहा कि मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई इस्लामी माहौल में होनी चाहिए क्योंकि सह-शिक्षा (को-एड) के चलते वह दूसरे धर्म में शादी कर लेती हैं।

मौलाना मदनी का यह बयान हैरान करने वाला है क्योंकि यह लड़कियों को सीमित करने वाला कदम है। यह वही खतरा है जिसके विषय में बाबा साहेब आम्बेडकर ने भी कहा था कि मुस्लिम समाज में महिलाओं को उनके परदे में कैद कर दिया जाता है।

जमीयत उलेमा की गुरुवार 7 दिसंबर को राजधानी लखनऊ में आयोजित एक बड़ी बैठक में 37 जिलों से हजारों की संख्या में आए उलेमा ने भाग लिया था। इसी बैठक में मौलाना अरशद मदनी भी शामिल हुए थे और इसी में उन्होंने कई विचारों के साथ मुस्लिम लड़कियों की लालीम के विषय में अपने विचार व्यक्त किए थे।

मौलाना मदनी इसलिए मुस्लिम लड़कियों को सह-शिक्षा में नहीं पढने देना चाहते हैं क्योंकि उनके अनुसार मुस्लिम लड़कियों का जबरन मतान्तरण कराया जा रहा है। उन्होंने कहा इसे रोके जाने की आवश्यकता है। मुस्लिम लड़कियों को मिडिल एवं हाईस्कूल तक इस्लामी माहौल में शिक्षा दी जाए और ऐसी शिक्षा पर जमीयत से जुड़े उलेमा विशेष रूप से ध्यान दें। क्या यह मुस्लिम लड़कियों के पृथक्कीकरण की शुरुआत नहीं है? क्या यह उन्हें समाज से काटना नहीं है?

बात यदि सह-शिक्षा अर्थात लड़के या लड़कियों की अलग शिक्षा की होती तो भी यह समझ में आ सकता था कि लड़कियां कई बार कुछ विषयों पर लड़कों के सामने सहज नहीं हो पाती हैं, मगर यहां पर जो बात कही गयी है वह मुस्लिम लड़कियों के लिए मुस्लिम माहौल में शिक्षा अर्थात दूसरे शब्दों में कहें कि इस्लामी तालीम की बात की गयी है!

रिपोर्ट्स के अनुसार मदनी ने कहा कि देश में जो हाल चल रहे हैं, उसमें विशेष रूप से मुस्लिम लड़कियों के लिए आठवीं कक्षा के बाद अलग शिक्षण संस्थान स्थापित किए जाएं, जिससे लड़कियां बुरे प्रभाव से सुरक्षित रह सकें क्योंकि लड़कियों को धर्मांतरण का शिकार बनाया जा रहा है। इसे रोके जाने की आवश्यकता है क्योंकि इसके चलते खानदान बर्बाद हो रहे हैं और इसलिए दीन की रक्षा करने के लिए इस प्रकार के स्कूल बनाए जाएं।

यह भी बहुत हैरान करने वाली बात है कि जहां आए दिन किसी न किसी हिन्दू लड़की की वही कहानी सामने आती है कि वह मुस्लिक युवक के नाम बदलकर प्रेम और शादी का शिकार हुई, तो वहीं मदनी जैसे लोग इन घटनाओं को दबाने के लिए इसके विपरीत बात करते हैं। असम में हाल ही में अंजू नामक लड़की अपने लिव इन साथी मनी खान का शिकार हुई थी।

जब अरशद मदनी लखनऊ में बैठकर यह कह रहे थे कि मुस्लिम लड़कियां कथित धर्मांतरण का शिकार हो रही हैं तो उसी समय इसी उत्तर प्रदेश से समाचार आया कि बरेली में विशाल बनकर नाबालिग हिन्दू लड़की को फैजल पकड़कर ले जा रहा था। तीन दिसंबर को ही उत्तर प्रदेश के शामली से समाचार आया था कि लव जिहाद का शिकार बनने से बची हिन्दू युवती। दरअसल शादाब ने शिवा बनकर उस लड़की को फंसाया था। उसने फेसबुक पर फर्जी आईडी बनाई थी। मगर लड़की को उसकी असलियत पता चल गयी और उसने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी थी। अभी चार दिन पहले ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा के पिता ने अपनी बेटी के लापता होने की शिकायर दर्ज कराई है और यह भी आशंका व्यक्त की है कि उनकी बेटी लव जिहाद का शिकार हुई है। लड़की के पिता ने आरोप लगाया है कि किसी अख्तर हुसैन के साथ उनकी बेटी की बातें होती थीं और उनके अनुसार लड़की उन पैसों और सोने के साथ गायब हुई है जो उन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए इकट्ठा किया था।

ऐसे एक नहीं तमाम प्रकरण लगभग रोज ही समाचार में आते रहते हैं, मगर अरशद मदनी सहित कोई भी मुस्लिम समाज का नेता इन मामलों पर बात नहीं करता है, वह उन आंकड़ों पर बात नहीं करते हैं, जो उन्हें असहज करते हैं या कर सकते हैं। क्या इन सभी आंकड़ों से बचने के लिए यह नयी बात कही जा रही है कि मुस्लिम लड़कियों का धर्मान्तरण कराया जा रहा है?
श्रद्धा वॉकर की लाश के टुकड़े एवं झारखण्ड की अंकिता शर्मा के जिन्दा ही जलाए जाने की घटनाएं बहुत पुरानी नहीं हैं एवं लोगों के मस्तिष्क में ताजा हैं। हाल ही में रांची की तारा शाहदेव मामले में निर्णय आया है जिसमें तारा के साथ नाम बदलकर शादी करने और जबरन इस्लाम अपनाने के लिए तमाम अत्याचार करने के आरोप में रंजीत उर्फ़ रकीबुल हसन को उम्र कैद की सजा सुनाई थी।

रकीबुल हसन ने एक राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी का जीवन पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। उसका एक खिलाड़ी के रूप में कैरियर इस कन्वर्जन के लिए किए गए षड्यंत्र का शिकार हो गया। जबकि यह मामला आज का नहीं बल्कि वर्ष 2014 का है, जिसमें रकीबुल ने अपनी मुस्लिम पहचान छिपाकर तारा से शादी की थी और फिर शादी के बाद जबरन इस्लाम क़ुबूल करवाने के लिए कुत्ते तक से कटवाया था। तारा शाहदेव जैसी और भी कहानियां हैं, जिन पर न ही मीडिया में विमर्श होता है और न ही उनपर बहसें होती हैं। मगर यह मामले अब सामने आने लगे हैं। सोशल मीडिया के इस युग में एक-एक मामला सामने आता है और फिर वह षड्यंत्र भी कि कैसे नाम बदलकर गैर-मुस्लिम लड़कियों को शिकार बनाया जा रहा है। और भारत में ही ऐसा हो रहा है, ऐसा नहीं है, ग्रूमिंग गैंग से यह कई यूरोपीय देशों में भी खोजा जा सकता है।

अब ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या इन सभी मामलों से ध्यान हटाने के लिए अरशद मदनी जैसे लोगों द्वारा यह बात उठाई जाती है कि मुस्लिम लड़कियों का धर्मांतरण हो रहा है और वह इस बहाने से उन्हें एक कैद में, एक सीमित दायरे में बंद करना चाहते हैं? दुर्भाग्य यही है कि यदि इस विषय पर कोई भी प्रश्न उठाएगा तो उसे इस्लामोफोबिक कहकर एक तरफ कर दिया जाएगा, परन्तु मुस्लिम लड़कियों के इस प्रकार एक वृहद समाज से कटकर अकेले किए जाने के षड्यंत्र पर बात नहीं की जाएगी!

Topics: धर्मांतरणमौलाना अरशद मदनीMaulana Arshad Madaniमुस्लिम लड़कियांदेवबंद के मौलानाइस्लामिक स्कूलMuslim GirlsMaulana of DeobandConversionIslamic SchoolDeobandदेवबंद
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