गत दिसंबर को दतिया (म.प्र.) में कश्मीरी शैव दर्शन के महान आचार्य, नाट्य शास्त्र मर्मज्ञ और भारत अध्ययन केंद्र के संस्थापक प्रो. कमलेशदत्त त्रिपाठी का निधन हो गया। वे लगभग 90 वर्ष के थे। 4 दिसंबर को वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके निधन से देश ने एक प्रख्यात संस्कृत विद्वान को खो दिया है। उन्होंने अनेक शैक्षणिक और सांस्कृतिक केंद्रों को अपनी सेवाएं दीं।
इस दौरान उन्होंने भारतीय विद्याविदों, कलाविदों, सर्जनशील कलाकारों और रंगकर्मियों के बौद्धिक क्षितिज को बदलकर उनमें शास्त्र एवं परंपरा के प्रति न्यायसंगत रूप में गौरव जगाने के लिए अथक प्रयास किया। वे अनेक वर्ष तक कालिदास अकादमी, उज्जैन के निदेशक रहे। उन्होंने अकादमी की अवधारणा को मूर्त रूप दिया तथा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर प्रतिष्ठित किया। प्रो. त्रिपाठी को 2007 में राष्ट्रपति ने ‘सर्टिफिकेट आफ मेरिट’ सम्मान से सम्मानित किया था।
कुलपति डॉ. भीमराय मेत्री ने कहा कि प्रो. त्रिपाठी के निधन से भारतीय ज्ञान और परंपरा को अपूरणीय क्षति पहुंची है। उनका स्मृतिशेष होना समस्त विश्वविद्यालय परिवार के लिए एक अंतहीन पीड़ा के समान है। उन्होंने कहा कि प्रो. त्रिपाठी के व्यक्तित्व में असाधारण वक्तृत्व कौशल, शिक्षण क्षमता, वाक्पटुता और प्रशासनिक कौशल का दुर्लभ संयोजन था।
वे 2007 से 2016 तक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मनोनीत परामर्शदाता भी रहे। इस दौरान उन्होंने भारतीय कला एवं सौन्दर्यशास्त्र पर विभिन्न गतिविधियों को संचालित किया। उन्होंने अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया तथा जापान, हालैण्ड, आस्ट्रिया, पोलैण्ड, फ्रांस, थाईलैण्ड, फिनलैण्ड, स्पेन, चीन और स्वीडन आदि देशों में भारतीय ज्ञान परंपरा को आलोकित किया।
प्रो. त्रिपाठी महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा के कुलाधिपति भी रहे। 5 दिसंबर को इस विश्वविद्यालय में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुई। इस अवसर पर कुलपति डॉ. भीमराय मेत्री ने कहा कि प्रो. त्रिपाठी के निधन से भारतीय ज्ञान और परंपरा को अपूरणीय क्षति पहुंची है। उनका स्मृतिशेष होना समस्त विश्वविद्यालय परिवार के लिए एक अंतहीन पीड़ा के समान है। उन्होंने कहा कि प्रो. त्रिपाठी के व्यक्तित्व में असाधारण वक्तृत्व कौशल, शिक्षण क्षमता, वाक्पटुता और प्रशासनिक कौशल का दुर्लभ संयोजन था।
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