भारत को प्राचीन काल से ही विविधिता और अनेकता में एकता का पक्षधर माना जाता है। वहीं इस विविधता के परिवेश को सुदृढ़ करने में जिस मूल्य ने सबसे बड़ा योगदान दिया है वह मूल्य है ‘संस्कृति‘। हालांकि जहां यह सकारात्मक पक्ष है वहीं इसी का दूसरा पहलू समय-समय पर भारतीय संस्कृति को अहमियत न देने वाले और विभाजन की राजनीति करने वाले गुट के विरोध में देखने को मिलता रहता है। हाल ही में यह क्रम एक बार फिर देखने को मिल रहा है जहां ‘भारतीय आयुर्विज्ञान आयोग’ ने चिकित्सा के क्षेत्र से संबद्ध भारतीय संस्कृति के परिचायक ‘धन्वंतरि जी को अपने ‘लोगो’ में जगह दी है। इस दौरान कुछ आलोचक इस परिवर्तन को हिंदू धर्म के चिन्हों की स्थापना बताकर विरोध कर रहे हैं।
जबकि यह सर्वविदित है कि भारतीय आयुर्विज्ञान आयोग द्वारा नए लोगो के निर्माण के पीछे की विचारशील प्रक्रिया संस्कृति, भारतीय विचारधारा, और समृद्ध इतिहास की परिचायक है।
वहीं नए लोगो में हमारे भारतीय होने की नींव यानी हमारे देश के नाम ‘भारत’ और भारतीय चिकित्सकीय पद्धति के संरक्षक ‘धन्वंतरि’ जी को स्थान दिया जाना केवल एक धर्म या भाषा के परिर्वतन का प्रतीक नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है।
यहां ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) के चिन्ह में ग्रीक देवताओं के स्थान पर धनवन्तरि जी, भारतीय चिकित्सा के देवता को शामिल किया गया है जो कि संस्कृति के सम्मान का प्रतीक है। वहीं इस चिन्ह को सदियों से काले सफेद में बनाए जाने के बजाय, अब रंगीन बनाया गया है। जोकि हमारी सास्कृतिक विरासत के साथ जुड़ी हमारी धरोहर को प्रकट करता है।
ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि चिन्हों या नामों में परिवर्तन कोई नई या विशेष बात नहीं है, क्योंकि बहुत से संस्थान बहुत पहले से ऐसा करते आए हैं और भारत की प्रतिष्ठित संस्थाओं से जुड़े विभिन्न ध्येय, प्रेरणा और मार्गदर्शन के तौर पर हमारी सांस्कृतिक विरासत यानि वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों या गीता से लिए गए हैं। जहां इसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs), वनस्थली विद्यापीठ, भारतीय तट रक्षक, भारतीय जीवन बीमा निगम, और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय आदि शामिल हैं।
वहीं हर बात में धर्म निरपेक्षता का तड़का लगाकर राष्ट्रीय अखंडता और सांस्कृतिक मूल्यों को दूषित करने वाले लोगों को ये सोचने की आवश्यकता है कि वे विरोध के लिए विरोध करेंगे या भारत में स्वतंत्रता के बाद स्थापित अनेकों संस्थानों के ध्येय वाक्यों पर भी ध्यान देंगे। जब यह हुआ तब कांग्रेस की सरकार थी और कई बार वाम दलों ने भी सरकार का समर्थन किया था। उदाहरण के तौर पर जहां, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग: ज्ञान-विज्ञानं विमुक्तये (विष्णु पुराण), आंध्र विश्वविद्यालय तेजस्विनावधीतमस्तु (कठोपनिषद), बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, पिलानी: ज्ञानं परमं बलम् , वनस्थली विद्यापीठ- सा विद्या या विमुक्तये (विष्णु पुराण), बंगाल अभियांत्रिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय शिवपुर – उतिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधत(कठोपनिषद), प्रौद्योगिकी महाविद्यालय त्रिवेन्द्रम – कर्म ज्यायो हि अकर्मण (भगवद गीता), देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर- धियो यो नः प्रचोदयात् (ऋग्वेद), गोविंद बल्लभ पंत अभियांत्रिकी महाविद्यालय (पौड़ी)- तमसो मा ज्योतिर्गमय (बृहदारण्यक उपनिषद), गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय – आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत ( ऋग्वेद), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर- योग: कर्मसु कौशलम् (श्रीमद्भगवत् गीता), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई: ज्ञानं परमं ध्येयम् , भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर – तमसो मा ज्योतिर्गमय, गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय – आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत ( ऋग्वेद), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर- योग: कर्मसु कौशलम् (श्रीमद्भगवत् गीता), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई: ज्ञानं परमं ध्येयम् , भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर – तमसो मा ज्योतिर्गमय, सेंट स्टीफन महाविद्यालय दिल्ली – सत्यमेव विजयते नानृतम जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय – निष्ठा धृति: सत्यम् जैसे ध्येय वाक्यों के साथ सदियों से शिक्षा और भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं।
वहीं, अगर शिक्षण संस्थानों के अलावा अन्य संस्थानों की बात करें तो डाक एवं तार विभाग, सैन्य अभियंता सेवाएं अपना ध्येय वाक्य अहर्निशं सेवामह, नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन – गुरु: गुरुतमो धाम, वायु सेना- नभ: स्पृशं दीप्तम् (श्रीमद्भगवद गीता), सैन्य अनुसंधान केंद्र – बलस्य मूलं विज्ञानम् , भारतीय तटरक्षक- वयम् रक्षाम तथा भारतीय जीवन बीमा निगम अपने ध्येय वाक्य के रूप में योगक्षेमं वहाम्यहम् का प्रयोग लम्बे समय से करते हुए किसी धर्म का नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं।
साथ ही आलोचकों को अपने संकीर्ण दृष्टिकोण को विस्तार देते हुए मन-मस्तिष्क में इस भाव को स्वीकृति देनी चाहिए कि इन संस्थाओं के चिन्ह और नामों में धर्म की कोई भावना नहीं होती, बल्कि ये संस्कृति, सामाजिक मूल्यों और राष्ट्रीय भावनाओं को दर्शाते हैं। यही कारण है कि ‘भारतीय आयुर्विज्ञान आयोग’ के लोगो में किए परिवर्तन को भी धर्म के दृष्टिकोण से देखने की बजाए संस्कृति के प्रसार के रूप में देखना चाहिए। यह परिवर्तन इसलिए भी अहम है क्योंकि चिन्ह और नाम हमारी विरासत और धरोहर को संजीवनी देते हैं और हमारी संस्कृति और विचारधारा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को प्रकट करते हैं। इसलिए, इन परिवर्तनों को केवल धर्म से नहीं बल्कि हमारी समृद्ध और विविध संस्कृति के हिस्से के रूप में देखना चाहिए। अपनी बुद्धि और मानस को उपनिवेशीकरण से मुक्त करने का यही समय है।
(लेखक-आचार एवं पंजीकरण बोर्ड राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के सदस्य हैं )
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