Dr. Bhimrao Ambedkar : बाबा साहेब और मुस्लिम महिलाओं की पर्दा प्रथा

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सोनाली मिश्रा

आज के दिन श्री बाबा साहेब अम्बेडकर ने देह त्यागी थी। आज इस अवसर पर (Dr. Ambedkar Death Anniversary 2023) पूरा देश उन्हें स्मरण कर रहा है। उनकी कही बातों को लोग अपने-अपने अनुसार स्मरण कर रहे हैं एवं उनके संस्मरणों के आधार पर एक बड़ा वर्ग हिन्दू धर्म पर निशाना साधता है। मगर वह बहुत ही सिलेक्टिवली श्री बाबा साहेब की उन बातों पर गौर नहीं देता है जो उन्हें असहज करती हैं। विशेषकर कांग्रेस एवं वामपंथी। हाल ही के कुछ वर्षों में मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग एवं वस्त्रों की स्वतंत्रता का समर्थन करने वाला कथित लिबरल वर्ग स्कूलों में भी बच्चियों के हिजाब पहनने का समर्थन कर रहा है और इसके लिए वह श्री बाबा साहेब का सहारा लेता है कि उनके द्वारा लिखे गए संविधान में यह आजादी है, मगर वह यह नहीं बात करता है कि श्री बाबा साहेब के विचार बुर्के के विषय में क्या थे?

श्री बाबा साहेब, मुस्लिम समुदाय में महिलाओं की पर्दा प्रथा के सख्त विरोधी थे। उन्होंने अपनी पुस्तक (DR. BABASAHEB AMBEDKAR WRITINGS AND SPEECHES Volume No : 8) में इस कुप्रथा का विरोध करते हुए मुस्लिम महिलाओं की उस पीड़ा को व्यक्त किया है जिसे कथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर दबा दिया जाता है। वह लिखते हैं कि भारत में मुस्लिम समुदाय में हिन्दू समुदाय से अधिक सामाजिक कुरीतियाँ हैं। और जिनमें मुस्लिम महिलाओं के लिए अनिवार्य पर्दा प्रथा मुख्य है।

उन्होंने बताया कि कैसे मुस्लिम समुदाय की महिलाएं इस पर्दा प्रथा के चलते सबसे अलग थलग हो जाती हैं।  मुस्लिम महिलाएं बाहरी कमरों, वरामदो या बगीचों में नहीं जा सकती हैं और उनके कमरे पीछे की ओर होते हैं। चाहे बड़ी हों या छोटी, सभी एक ही कमरे में रहती हैं। उनकी उपस्थिति में कोई भी नर नौकर कार्य नहीं कर सकता है और उन्हें केवल अपने बेटों, भाइयों, पिता, चाचाओं और पति, या किसी अन्य करीबी रिश्तेदार से मिलने की अनुमति है जिसे भरोसे का रिश्ते में बताया जाता है। वह नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद भी नहीं जा सकती और जब भी उसे बाहर जाना होता है तो उसे बुर्का पहनना पड़ता है।

फिर वह लिखते हैं कि “सड़कों पर बुर्के में घूमती ये महिलाएं भारत में देखे जा सकने वाले सबसे भयानक दृश्यों में से एक है। इस तरह के एकांतवास का मुस्लिम महिलाओं की शारीरिक संरचना पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। वे आमतौर पर एनीमिया, तपेदिक और पायरिया के शिकार होती हैं। उनके शरीर विकृत हैं, उनकी पीठ झुकी हुई है, हड्डियाँ उभरी हुई हैं, हाथ और पैर टेढ़े हैं। पसलियों, जोड़ों और लगभग सभी हड्डियों में दर्द होता है। उनमें दिल की धड़कन अक्सर मौजूद रहती है। इस पेल्विक विकृति का परिणाम प्रसव के समय असामयिक मृत्यु है।“

मुस्लिम महिलाओं के प्रति उनके यह विचार DR. BABASAHEB AMBEDKAR WRITINGS AND SPEECHES Volume No : 8 में पढ़े जा सकते हैं।

वह यहीं नहीं रुकते हैं। उनके हृदय में मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक पृथक्कीकरण की भी पीड़ा है और अन्य समुदायों की महिलाओं की तुलना में मुस्लिम महिलाओं के पिछड़े रह जाने की पीड़ा भी। वह इस बात से भी दुखी रहते हैं कि उन्हें गुलाम मानसिकता का शिकार होना पड़ता है और उनमें एक प्रकार की हीन भावना भरी जाती है। वह यहाँ तक लिखते हैं कि इसके चलते उनमें ज्ञान की कोई इच्छा ही नहीं होती है क्योंकि उन्हें यह सिखाया जाता है कि घर की चार दीवारी के बाहर जाने से कोई फायदा नहीं है। वह कहते हैं कि भारत में इतनी अधिक मुस्लिम महिलाएं परदे में दिखती हैं कि कोई भी यह अंदाजा लगा सकता है कि आखिर यह समस्या कितनी गंभीर है।

श्री बाबा साहेब यह भी लिखते हैं कि मुस्लिमों में महिलाओं में पर्दा प्रथा केवल मुस्लिम महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि मुस्लिम पुरुषों के लिए भी खतरनाक है क्योंकि पर्दा होने कारण मुस्लिम पुरुषों का सम्पर्क अपने घर की महिलाओं के अतिरिक्त किसी और महिला से नहीं हो पाता है और उनके साथ भी कभी कभार ही संपर्क होता है। एक पुरुष के लिए केवल या तो बच्चियां या फिर वृद्ध महिलाएं ही बात के लिए मौजूद होती हैं।

वह लिखते हैं कि “पुरुषों का महिलाओं से इस प्रकार का यह अलगाव निश्चित रूप से पुरुषों की नैतिकता पर बुरा प्रभाव डालेगा। इसे समझने के लिए किसी विशेष मनोविश्लेषण की आवश्यकता नहीं है कि ऐसी सामाजिक व्यवस्था जो दो लिंगों के बीच सभी संपर्कों को काट देती है, यौन ज्यादतियों और अप्राकृतिक और अन्य रुग्ण आदतों और तरीकों के प्रति एक अस्वास्थ्यकर प्रवृत्ति पैदा करती है।“

उसके बाद वह इस कुप्रथा को लेकर भारत के सार्वजनिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है उसे भी लिखते हैं। वह लिखते हैं कि यही कुप्रथा हिन्दू और मुस्लिमों के सामाजिक पृथक्कीकरण के लिए जिम्मेदार है जो भारत में सार्वजनिक जीवन के लिए आवश्यक है।

वह यह भी लिखते हैं कि मुस्लिमों में पर्दा मजहबी प्रभाव लिए हुए है जबकि हिन्दुओं के साथ ऐसा नहीं है। वह मुस्लिमों के लिए पर्दा प्रथा को वास्तविक समस्या बताते हैं। (DR. BABASAHEB AMBEDKAR WRITINGS AND SPEECHES Volume No : 8 पृष्ठ 230-232)

आज जब पूरा देश श्री बाबा साहेब को स्मरण कर रहा है तो ऐसे में इन विचारों का भी विमर्श में आना आवश्यक है कि वह मुस्लिम समुदाय की कुरीतियों के प्रति भी उसी प्रकार आलोचक थे, जैसे वह हिन्दू समाज में प्रचलित सामाजिक बुराइयों के लिए थे। श्री बाबा साहेब के नाम पर हिन्दू समाज की आलोचना करने वाला वर्ग बाबा साहेब के समावेशी सुधारक के रूप को सामने लाने से बचता क्यों है यह समझ से परे है क्योंकि वह हर कुरीति के प्रति मुखर थे, हर धर्म की कुरीति के प्रति, हर सम्प्रदाय की कुरीति के प्रति।

उनके समग्र विचारों पर विमर्श करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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