“छात्र आज का नागरिक” और “छात्रशक्ति – राष्ट्रशक्ति” का आवाहन देकर भारत में छात्रों की भूमिका, स्थिति और आंदोलन के इतिहास में एक नए युग का प्रतिपादन हुआ। 1971 में इस क्रांतिकारी विचार को साकार करने का काम करने वाला छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद है। आज का नागरिक मानकर विद्यार्थी परिषद ने युवाओं को एक स्वर से वर्तमान शिक्षा व्यवस्था, सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन, राजनीतिक बदलाव और नीति निर्माण का अभिन्न अंग बना दिया। इससे पूर्व छात्र संगठन और सामाजिक राजनीतिक शक्तियों ने छात्रों को नेताओं और सामाजिक घटकों का पिछलग्गू बनाकर इनकी शक्तियों को अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए उपयोग किया। परिषद ने करोड़ों युवाओं को दिशाहीन होने से बचाया। आज इसमें शामिल प्रत्येक सदस्य खुद को भारतीयता के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र और समाज निर्माण का एक अभिन्न अंग बना रहा है।
परिषद के निर्माण में दत्ताजी डीडोलकर, प्रो. यशवंतराव केलकर, प्रो. ओम प्रकाश बहल, श्री केशव देव वर्मा, श्री दत्ताजी होसबाले, श्री मदनदास देवी, श्री सुनील आंबेकर और वर्तमान नवोन्मेषी संगठन मंत्री श्री आशीष चौहान समेत हजारों लाखों लोगों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया है। इनके मार्गदर्शन और कठोर अनुशासन भरे जीवन से 45 लाख से अधिक छात्र सदस्यों का एक विशाल वट वृक्ष पोषित होकर निरंतर बढ़ता जा रहा है।
परिषद से जुड़कर युवाओं को एक साथ, परिवार, समाज, राष्ट्र और नीति निर्माण की प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग बना लेता है। “ठीक करेंगे तीन काम, प्रवेश परीक्षा और परिणाम” के लक्ष्य को लेकर विद्यार्थी परिषद ने शिक्षा व्यवस्था में सुसुत्रता स्थापित की। अपने कार्य को यहीं तक सीमित न मान, परिषद ने खुद को हर कार्यकर्ता के परिवार और समाज का हिस्सा बनाया। परिषद में जुड़े कार्यकर्ता आज समाज में विश्वसनीय युवा का मापदंड हैं। क्योंकि परिषद युवा चरित्र निर्माण, आत्मनिर्भर, निर्भीक और प्रामाणिकता की पाठशाला है।1947 में नए स्वतंत्र राष्ट्र भारत में हर ओर सत्ता लोलुपता, धार्मिक उन्माद और स्वार्थी वातावरण युवाओं को दिग्भ्रमित कर रहा था। हर कोई निजी स्वार्थपूर्ति के अभियान में लिप्त था। तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से 1949 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना हुई। परिषद के माध्यम से लाखों युवा राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का अहम अंग बने। परिषद से जुड़ना धैर्य पूर्वक समाज और राष्ट्र निर्माण में निस्वार्थ सेवा से जुड़ना है। आज परिषद के कार्यों और उसका विस्तार क्षेत्र देश के हर गांव हर शहर में हो गया है। “ज्ञान, शील, एकता” का बोध वाक्य परिषद को भारत की एक अत्यावश्यक संस्था बनाती है। इसकी राष्ट्रीय स्वीकृति की चार प्रमुख उपलब्धियां हैं। सबसे पहले परिषद से जुड़ा हर सदस्य भिन्न भिन्न भूमिकाओं को साकार करता है। संगठन के प्रसार और विस्तार, मंच संचालन, संबोधन, टोली बैठकों, तथा कार्यक्रमों के आयोजन के लिए संसाधन जुटाकर विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता समाज का आत्मनिर्भर और लक्ष्य साधक के रूप में आदर्श नागरिक बनता है। दूसरी बात यह कि, परिषद के संस्कार युवाओं के उत्तम चरित्र निर्माण पर विशेष जोर देते हैं। इससे समाज को शीलवान, नशामुक्त और कदाचार मुक्त युवा मिल रहे हैं। राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय अस्मिता के प्रति जागरूकता विकसित करना परिषद का तीसरा प्रमुख योगदान रहा है। परिषद भारत की महान विभूतियों, संतों, दार्शनिकों, स्वतंत्रता सेनानियों को स्मरण करने वाले नियमित रूप से आयोजित करती है। इसी के साथ भारत की संस्कृती, पर्व, कला, परिधानों और जीवन शैली के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाने का कार्य परिषद में सिखाया जाता है।
भारत की एकता और अखंडता के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सबसे रचनात्मक प्रयास परिषद ने ही किया है । पूर्वोत्तर भारत के राज्यों और युवाओं को देश के अन्य राज्यों को जानने, वहां की परंपराओं का अनुभव पाने के उद्देश्य से SEILकार्यक्रम 1964 में शुरू किया गया। इसके अंतर्गत भारत के विभिन्न हिस्सों से विद्यार्थी पूर्वोत्तर के राज्यों में जाते हैं, और वहां से विद्यार्थियों का दल देश के अन्य हिस्सों में जाकर विद्यार्थियों के साथ निवासी जीवन व्यतीत करते हैं। इसी प्रकार असम में अवैध घुसपैठियों के कारण वहां उत्पन्न हुई समस्या के विरुद्ध परिषद ने आंदोलन किया था। हजारों कार्यकर्ताओं को पुलिस की लाठियों, गोलियों और जेल तक जाना पड़ा था। “जहां हुआ तिरंगे का अपमान, वहीं करेंगे उसका सम्मान।” 1991 में इस चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को लेकर कश्मीर में जिहादियों की चुनौती को स्वीकार करके लाल चौक पर तिरंगा झंडा फहराया गया था। साथ ही परिषद ने गुजरात में भ्रष्टाचार के विरुद्ध विरुद्ध छिड़े नवनिर्माण आंदोलन की पृष्ठभूमि 1974 के दिल्ली एवं वाराणसी के छात्र सम्मेलनों में तैयार किया, जिसे आगे चलकर जे. पी. आंदोलन के नाम से जाना गया। साथ ही साथ परिषद छात्रों के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था और चुनाव के प्रशिक्षण की एक पाठशाला भी बनी।
1991 के बाद परिसर संस्कृति की बात उठाई और परिसरों में शैक्षिक वातावरण निर्माण करने हेतु, ” शिक्षा बचाओ आंदोलन” का परिषद ने सूत्रपात किया था। 2002 में शिक्षा परिवर्तन एवं रोजगार हेतु परिषद ने राष्ट्रीय आंदोलन चलाने का निर्णय लिया था। इस देशव्यापी आंदोलन को 15 लाख छात्र छात्राओं का हस्ताक्षरित समर्थन प्राप्त हुआ था। राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय मुद्दे जो भारत के युवा को, छात्रों को और यहां की राष्ट्रीय अस्मिता को प्रभावित करते हैं, ऐसे विषयों पर विद्यार्थी परिषद ने हमेशा स्पष्ट भूमिका ली है। अलग अलग समय पर इसके राष्ट्रीय अधिवेशन और में बैठकों में प्रस्तुत गीत और प्रस्ताव इसका जीवंत उदाहरण हैं। इसके साथ ही परिषद छात्रों में व्यक्तित्व, वक्तृत्व और नेतृत्व क्षमता के विकास की एक सतत साधना परिषद करती रहती है। आज देश में बड़ी संख्या में पत्रकार, अधिवक्ता, लेखक, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक, सीए , डॉक्टर, इंजीनियर, सफल व्यवसाई हैं जिनका बौद्धिक और व्यावसायिक चिंतन परिषद में सक्रिय होने से अधिक विकसित हुआ।
विद्यार्थी परिषद संभवत विश्व का एक मात्र संगठन है जहां छात्र और शिक्षक एक साथ मिलकर काम करते हैं। यह हमारी प्राचीन गुरु शिष्य परंपरा की खुशबू से शैक्षिक वातावरण को अनुशासित और विश्वसनीयता प्रदान करता है। 75 वर्षों की सतत साधना के माध्यम से राष्ट्र और समाज के लिए उत्तम नागरिक बल तैयार करने का काम परिषद करती आ रही है। शिक्षा के साथ साथ सामाजिक समरसता, व्यक्तित्व विकास, नेतृत्व क्षमता विकास, राष्ट्रवाद का बीजारोपण करने का काम एक साथ एक ही संगठन में विश्व में और कहीं नहीं है। इसीलिए परिषद अस्थाई सदस्यों वाला परम स्थाई संगठन बनकर छात्र छात्राओं, युवाओं, शिक्षकों का अद्वुतीय संगठन बन गया है।
(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सह आचार्य हैं।)
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