- पूनम नेगी
ज्ञान-कर्म और भक्ति की अद्भुत त्रिवेणी है गीता। श्रीमद्भगवद्गीता के प्रत्येक श्लोक में ज्ञान का अनूठा प्रकाश है। मनुष्य को आत्मकल्याण का पथ सुझाकर भटकाव से बचाने वाले इस शास्त्र में किसी पंथ विशेष की नहीं, अपितु विश्व मानव के हित की बात है। इन सूत्रों में वेदों एवं उपनिषदों का सार झलकता है। 18 अध्यायों के 700 श्लोकों में प्रवाहित इस अद्भुत ज्ञान गंगा का कोई सानी नहीं है; देश दुनिया के आध्यात्मिक मनीषी इस विषय पर एकमत हैं। इस अनूठी त्रिवेणी को जितनी बार पढ़ा जाता है, इसके ज्ञान के नित नये रहस्य खुलते जाते हैं। गीता कहती है-“योग: कर्मसु कौशलम्।” यानी कार्य के संग अनासक्त भाव ही निष्काम कर्म है।
भारतीय मनीषियों के अलावा कई विदेशी विद्वानों ने गीता के महत्व को समझा और अपने जीवन में इसके सिद्धांतों को लागू किया। यह महान गीता का ही असर था कि ईसाई मत मानने वाले कनाडा के प्रधानमन्त्री मिस्टर पियर ट्रूडो गीता पढ़कर भारत आये। उन्होंने कहा कि जीवन की शाम हो जाए और देह को दफनाया जाए उससे पहले अज्ञानता को दफनाना जरूरी है।
सुप्रसिद्ध अमेरिकी विद्वान महात्मा थोरो का कहना था कि प्राचीन भारत की सभी स्मरणीय वस्तुओं में श्रीमद् भगवदगीता से श्रेष्ठ कोई भी दूसरी वस्तु नहीं है। गीता में वर्णित ज्ञान ऐसा उत्तम व सर्वकालिक है कि जिसकी उपयोगिता कभी भी कम नहीं हो सकती।
एएच होलेम का कहना है कि वे ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतनी श्रृद्धा व आदर इसीलिए रखते हैं क्योंकि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका गीता में सदियों पहले शुद्ध और सरल तरीके से समाधान दिया गया है। इसीलिए गीता भारत का ऐसा अमूल्य व दिव्य खजाना है, जिसे विश्व के समस्त धन से भी नहीं खरीदा जा सकता।
शैक्षिक पाठ्यक्रम में गीता
श्रीमद्भगवद्गीता को मानवीय प्रबंधन के अद्भुत ग्रन्थ की वैश्विक मान्यता हासिल है। गीता के अनुसार किसी कार्य में समग्र रूप से निमग्न हो जाना ही योग है। गीता में प्रतिपादित प्रबंधन सूत्रों का अनुसरण कर कोई भी व्यक्ति सहज ही अपनी उन्नति और विकास कर सकता है। यही कारण है कि आईआईएम से लेकर दूसरे मैनेजमेंट स्कूलों तक सभी में गीता को प्रबंधन की किताब के रूप में स्वीकार किया गया है।
गीता समूची विश्व वसुधा को “सर्वे भवन्तु सुखिन:” का पाठ पढ़ाती है। गीता के व्यावहारिक जीवन में उपयोगी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इससे जुड़े जो पाठ स्कूल की नैतिक शिक्षा की पुस्तकों में शामिल किये गये हैं, उन्हें धार्मिक नजरिए से देखना गलत है। गीता के दिव्य सूत्रों के नतीजों से उत्साहित होकर भारत ही नहीं अमेरिका, जर्मनी व नीदरलैंड जैसे कई विकसित देशों ने अपने देश के शैक्षिक पाठ्यक्रम में गीता को शामिल किया है, जहां गीता का प्रशासकीय प्रबंधन ज्ञान भंडार के रूप में अध्ययन-मनन किया जा रहा है। अमेरिका के न्यू जर्सी स्थित सैटान हॉल विश्वविद्यालय में तो हरेक छात्र को गीता का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ना अनिवार्य है।
गौरतलब हो कि देश में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने सालों पहले ही “गीता” को राष्ट्रीय पुस्तक घोषित करने की मांग की थी। श्रीमद्भगवदगीता उनकी प्रिय पुस्तक और उनकी प्रेरणा का मूलस्रोत थी। लेकिन अपने ही देश में यानी भारत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शिवराज पाटिल को गीता में जिहाद दिखता है।
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