बैंकॉक में विश्व हिंदू कांग्रेस के मंच पर भारत और हिंदू शब्द को लोकप्रिय बनाने का निर्णय लिया जाना इसका नवीनतम प्रमाण है। अब हिन्दू अपमान के भय से अपनी पहचान छिपाने की कोशिश नहीं करता, बल्कि सीना तान कर ‘हिन्दू,इज्म’ शब्द को स्वीकार करने से इनकार कर देता है।
हिन्दुओं की मातृ धरा है भारत। और भारत में ही अल्पसंख्यकों की तानाशाही (Tyranny of the Minority) का स्तर यहां तक था कि हिन्दुत्व के साक्षात प्रज्ञापुरुष स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन जैसे संगठन को भी अपना पंजीकरण एक ‘अल्पसंख्यक’ संगठन के तौर पर करवाना पड़ा। एक विशेष राजनीतिक वर्ग, उसके पालित-पोषित कथित शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों के वर्ग, मुंबई के फिल्मकारों, कथित साहित्यकारों आदि द्वारा हिंदुओं को अपमानित करते जाने का अभियान चल रहा था। उस कठिन दौर में हिंदू समाज और हिन्दू संगठनों के लिए अपनी हिन्दू पहचान पर टिके रह सकना कठिन हो गया।
हिन्दू हित की बात करने को निर्लज्जता से साम्प्रदायिकता कहा गया। इसके पहले फासिस्ट और प्रतिक्रियावादी कहा जाता रहा। चरम यह कि ‘हिन्दू आतंकवाद’ का शब्द गढ़ लिया गया। हमें गर्व है कि ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मजबूती से हिंदू अस्मिता की लौ को जीवित बनाए रखा। लेकिन ‘हिन्दूफोबिया’ के नए ज्वार से यह भी स्पष्ट है कि वही चुनौती अब वैश्विक स्तर पर पैदा हो चुकी है। नई राजनीतिक शब्दावली में ‘अधिकारों’और ‘विशेषाधिकारों’ की बातें आम हैं। लेकिन ये अधिकार मांगे किससे जाते हैं? कथित ‘मानवाधिकारों’ के संरक्षण की मांग मानवेतर जीवों से या पशुओं से तो नहीं की जाती। फिर किससे? स्पष्ट है कि उससे, जिसे प्रताड़ित करना सहज संभव लगता है। हिन्दू अब विश्व भर में हैं, और हिन्दू इस प्रताड़ना का सामना विश्व भर में करते आ रहे हैं।
संतोष और हर्ष की बात यह है कि हिन्दुओं से अब इस प्रताड़ना का प्रतिकार आरंभ कर दिया है, और इसका सीधा तरीका हिंदू पहचान को दृश्यमान, सम्मानजनक और स्वीकार्य बनाना है। बैंकॉक में विश्व हिंदू कांग्रेस के मंच पर भारत और हिंदू शब्द को लोकप्रिय बनाने का निर्णय लिया जाना इसका नवीनतम प्रमाण है। अब हिन्दू अपमान के भय से अपनी पहचान छिपाने की कोशिश नहीं करता, बल्कि सीना तान कर ‘हिन्दू,इज्म’ शब्द को स्वीकार करने से इनकार कर देता है।
आशा की इन किरणों का एक पुंज थी बैंकॉक में हुई विश्व हिंदू कांग्रेस। आज के राजनैतिक मानचित्र वाले भारत से बाहर, थाईलैंड नाम से जो एक और भारत बसता है, वहां से यह वैश्विक हिंदू पुनरुत्थान आंदोलन का शंखनाद है।
हिन्दुत्व किसी एक व्यक्ति से उपजा कोई वाद नहीं है, फिर वह ‘हिन्दूइज्म’ शब्द को स्वीकार क्यों करे? लेकिन विडंबना यह भी है कि हम जिस आधुनिकता के समाज में रह रहे हैं, चाहे उसमें कितने भी दोष हों, वह एक वास्तविकता है। उस वास्तविकता का एक पहलू यह भी है कि अधिकांश लोगों की शिक्षा में अब्राहमिक पंथों, रिलीजनों और मजहबों, मत्स्य न्याय और मार्क्सवाद जैसे सिद्धांत शामिल रहे हैं। इस प्रकार गढ़े गए मानस में यह समझना कठिन हो सकता है कि कोई ऐसा भी धर्म है, जो विशुद्ध शांति की बात करता है, जो विश्व बंधुत्व और वसुधैव कुटुम्बकम की बात करता है। उस मानस को हिन्दुत्व से परिचित कराना है।
स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण से लेकर आज तक असंख्य प्रयास इस दिशा में चले हैं। अब ये प्रयास ज्यादा समेकित, लक्ष्यपरक और व्यवस्थित ढंग से सामने आ रहे हैं, लोगों से उसी भाषा में बात की जाने लगी है, जो उन्हें समझ में आती है और इनका परिणाम भी दिखने लगा है। कौन कल्पना कर सकता था कि हिन्दू साधु-संतों को रहस्यपूर्ण और गुप्त विद्याओं का जानकार समझने वाले विश्व में अब योग और आयुर्वेद प्रचलित हो गया है। इन्हीं समेकित प्रयासों के कारण विश्व भर में हिन्दू पुराने अपमान वाले दौर से बाहर निकल कर सम्मान और लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं। निस्संदेह इस हिंदू पुनरुत्थान में एक भूमिका विश्व में व्याप्त टकरावों की भी है, जो उन्हीं शिक्षाओं का परिणाम हैं, जो ‘मैं’ और ‘उन’ के द्वंद्व को आधुनिक मानती थीं। अब हिन्दुत्व में उन्हें आशा की किरण नजर आने लगी है।
आशा की इन किरणों का एक पुंज थी बैंकॉक में हुई विश्व हिंदू कांग्रेस। आज के राजनैतिक मानचित्र वाले भारत से बाहर, थाईलैंड नाम से जो एक और भारत बसता है, वहां से यह वैश्विक हिंदू पुनरुत्थान आंदोलन का शंखनाद है। प्रस्तुत है यहां हुए मंथन और उसके निष्कर्षों का प्रत्यक्ष और जीवंत विवरण, आगे के पृष्ठों में…
@hiteshshankar
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