जिन संस्थाओं के विरुद्ध एफआईआर दर्ज हुई है, उनमें हलाल इंडिया प्रा. लि., हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्रा. लि., जमीयत उलेमा-ए-महाराष्ट्र और जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट जैसी कुल 11 संस्थाएं हैं।
मजहबी को बहाना बनाकर भारत की अर्थव्यवस्था पर शिकंजा कसने का एक बड़ा षड्यंत्र सामने आया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की पहल पर लखनऊ थाने में ऐसी 11 संस्थाओं के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की जा चुकी है, जो हलाल प्रमाणन के बहाने बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में अपने समर्थकों को भर्ती कराने और उनके लाभांश में भी हिस्सा बांटने का दबाब बनाते थे।
यह एफआईआर लखनऊ के हजरतगंज थाने में भारतीय दंड संहिता की सात धाराओं में दर्ज हुई है। इनमें धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र करना), 153ए (विभिन्न समूहों के बीच धार्मिक वैमनस्य को बढ़ावा), 298 (किसी की धार्मिक भावनाएं आहत करना), 384 (फिरौती वसूलना), 420 (धोखाधड़ी), 471 (अनाधिकृत दस्तावेज तैयार करना) और 505 (लोगों को भ्रमित करना) शामिल हैं। जिन संस्थाओं के विरुद्ध एफआईआर दर्ज हुई है, उनमें हलाल इंडिया प्रा. लि., हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्रा. लि., जमीयत उलेमा-ए-महाराष्ट्र और जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट जैसी कुल 11 संस्थाएं हैं।
हलाल प्रमाणीकरण का नेटवर्क कितना फैल गया है, इसका अनुमान ऐसे प्रमाणपत्र जारी करने वाली एक संस्था ‘हलाल इंडिया’ की वेबसाइट से लगाया जा सकता है। संस्था ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि उसने भारत में 100 से अधिक कंपनियों को हलाल प्रमाणपत्र जारी किया है। इस संस्था ने अपनी वेबसाइट पर जिन व्यापारिक संस्थानों के नाम लिखे हैं, उनमें फ्रांसीसी रिटेलर कैरेफोर, निरमा साल्ट, बाकफो फार्मास्युटिकल्स, अंबुजा समूह, दावत बासमती चावल आदि शामिल हैं। हल्दीराम और बीकानेरी भुजिया को हलाल प्रमाणपत्र देने वाली भी यही संस्था है।
झांसे में बड़े औद्योगिक घराने
जिन संस्थाओं के नाम सामने आए हैं, उन पर यह भी आरोप है कि उनके कुछ आतंकवादी संगठनों से भी संबंध हैं और हलाल प्रमाणन से वसूले गए धन का एक भाग उन आतंकी संगठनों को भी भेजा जाता था। लेकिन अभी इन आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश पुलिस इन सभी आरोपों की बारीकी से जांच कर रही है और इसके बाद ही गिरफ्तारियां होंगी। भारत में हलाल प्रमाणन का कारोबार 1974 से आरंभ हुआ था। कुछ संस्थाओं ने मुस्लिम समुदाय के बीच खाने या अन्य उपयोग के लिए ‘हलाल’ वस्तुओं का ही प्रयोग करने के लिए प्रचार किया। अब यह पता कैसे चले कि कौन-सी वस्तु ‘हलाल’ है? लिहाजा, इसके लिए इन संस्थाओं ने प्रमाणपत्र देना आरंभ कर दिया। इन संस्थाओं ने हलाल शब्द का ऐसा भावनात्मक प्रचार किया, जिससे पूरा मुस्लिम समाज इनका अनुकरण करने लगा और व्यावसायिक प्रतिष्ठान अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए इनके झांसे में आकर हलाल सर्टिफिकेशन लेने लगे, जबकि इन संस्थाओं को ऐसा प्रमाणपत्र देने का कोई अधिकार नहीं था। हल्दीराम और बीकानेरी भुजिया जैसी वे संस्थाएं भी इनके झांसे में आ गई, जो शुद्ध शाकाहारी खाद्य सामग्री बनाती हैं।
हलाल प्रमाणीकरण का नेटवर्क कितना फैल गया है, इसका अनुमान ऐसे प्रमाणपत्र जारी करने वाली एक संस्था ‘हलाल इंडिया’ की वेबसाइट से लगाया जा सकता है। संस्था ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि उसने भारत में 100 से अधिक कंपनियों को हलाल प्रमाणपत्र जारी किया है। इस संस्था ने अपनी वेबसाइट पर जिन व्यापारिक संस्थानों के नाम लिखे हैं, उनमें फ्रांसीसी रिटेलर कैरेफोर, निरमा साल्ट, बाकफो फार्मास्युटिकल्स, अंबुजा समूह, दावत बासमती चावल आदि शामिल हैं। हल्दीराम और बीकानेरी भुजिया को हलाल प्रमाणपत्र देने वाली भी यही संस्था है।
अर्थव्यवस्था पर शिकंजे की योजना
हलाल अरबी का शब्द है, जिसका अर्थ होता है जायज। यानी जो उचित, मेहनत तथा ईमानदारी से अर्जित किया हुआ हो, वह कमाई हलाल कहलाती है। खाद्य सामग्री में हलाल का उपयोग सामान्यता मांस के मामले में होता है। लेकिन इन संस्थाओं ने इस मजहबी प्रावधान से आर्थिक लाभ कमाने और भारतीय अर्थव्यवस्था पर शिकंजा कसने की योजना बनाई। इन्होंने अपना नेटवर्क बनाया और प्रमाणपत्र जारी करने लगे। इन संस्थाओं ने स्वयं को केवल मांस तक सीमित नहीं रखा, अपितु तैयार खाद्य पदार्थों जैसे- मिठाइयां, नमकीन, भुजिया, पपड़ी, चिप्स सहित खाने-पीने की सभी वस्तुओं, अनाज सहित दैनिक उपयोग की अन्य वस्तुओं (दवाइयां, लिपस्टिक, पाउडर, टूथपेस्ट सहित सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुओं) और वस्त्रों आदि पर भी हलाल प्रमाणपत्र जारी करने लगीं
‘हलाल प्रमाणपत्र’ यूं ही नहीं दिया जाता था। इसके लिए संबंधित वस्तुओं का निर्माण करने वाली संस्थाओं को कुछ मुस्लिम कर्मचारी रखने होते थे। कर्मचारियों की यह संख्या संबंधित उत्पाद की खपत के अनुसार निर्धारित की जाती है। यह निर्धारण हलाल प्रमाणन करने वाली संस्था करती है। साथ ही, इस्लामिक मान्यताओं के तहत संबंधित वस्तुओं का निर्माण हो, इसकी निगरानी के लिए एक मौलवी भी नियुक्त किया जाता है। इन सबका वेतन और अन्य व्यय संस्थान को उठाना होता है। इसके अतिरिक्त प्रमाणीकरण के लिए मोटा शुल्क भी जमा करना होता है।
‘हलाल’ बन गया हथियार
‘हलाल’ शब्द एक हथियार का रूप ले चुका है, जिसे गैर-मुस्लिमों पर चलाया जाता है। इसके जरिए अर्थतंत्र, राजनीति, समाज आदि को प्रभावित करने के साथ धार्मिक मान्यताओं को आघात पहुंचाया जा रहा है। साथ ही, यह वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कब्जा करने का एक बहुत बड़ा षड्यंत्र भी है। जैसे-पशु काटते वक्त जो कलमा पढ़ा जाता है, वह नमाजी मुसलमान ही पढ़ेगा। जो छुरी चलाएगा, वह भी नमाजी मुसलमान होगा। यानी गैर-मुसलमान इसमें भागीदार नहीं हो सकते। इसलिए उन्हें इस रोजगार और उद्योग से बाहर कर दिया गया। परंतु मांस का व्यापार भी एक उद्योग है और इससे गैर- मुस्लिम को वंचित रखा जा रहा है।
यह भेदभाव यहीं पर ही समाप्त नहीं हो जाता, उसके आगे खाल, सींग, चर्बी, हड्डियां और जो कुछ भी बाकी चीजें हैं, उनका व्यापार भी केवल मुसलमानों के पास ही है। कत्लखाने के बाहर का तंत्र भी हलाल नियमावली के अनुसार, नमाजी मुस्लिम का ही होता है। जैसे- क्रय-विक्रय, परिवहन, रखरखाव सभी केवल मुस्लिम के पास होने चाहिए। इस तरह से यह काफिरों के खिलाफ आर्थिक नाकाबंदी है। हलाल प्रमाणन जिहाद एक के बाद एक उत्पादों, सेवाओं और संस्कारों को लीलता जा रहा है। अब ये उद्यम और सेवाएं इस्लामी जागीरों की तरह हैं। हलाल क्षेत्र यानी शरिया लागू क्षेत्र।
मलेशिया में 1998 में एक विश्वव्यापी हलाल सम्मेलन हुआ। इसमें अगले कई दशकों की नीति बनी और यह निर्णय हुआ कि अब से इस्लामी देश केवल वही उत्पाद, सेवा निर्यात करेंगे जो हलाल प्रमाणित होंगी। यह इतिहास को मोड़ने वाला व गैर-मुस्लिम जगत की नकेल कस कर इस्लाम के नीचे लाने वाला फरमान है। हम दीवार पर लिखी इस स्पष्ट नीति व नियति को नहीं समझ पाए। यदि हलाल के अगले चरण (हलाल बैंकिंग, इस्लामिक बैंकिंग, हलाल स्टॉक एक्सचेंज) का दौर शुरू होगा, तो हमारी आर्थिक, मानसिक, राजनीतिक और धार्मिक व्यवस्थाएं इस्लाम की चपेट में आ सकती हैं। आज हमें हलाल चावल, हलाल आटा, हलाल मेकअप किट, हलाल दवाइयां आदि दी जा रही हैं।
नौकरी जिहाद भी
हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर अपने समर्थक युवाओं और मौलवी को नौकरी दिलाने तथा अवैध धन वसूली का दबाब बनाने की चर्चा एक लंबे समय से हो रही थी। समय-समय पर मीडिया में भी खबरें आई, किंतु इस नेटवर्क ने योजनानुसार मजहबी चादर ओढ़ रखी थी। इसलिए वे कार्रवाई से बचते रहे। समय के साथ दो सामाजिक कार्यकर्ता सामने आए। इनमें एक हैं, शैलेंद्र कुमार शर्मा, जिन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस से शिकायत की कि हलाल प्रमाणपत्र के माध्यम से कुछ कंपनियां आम लोगों की मजहबी भावना का फायदा उठा रही हैं।
शिकायत में यह आशंका भी व्यक्त की गई थी कि इससे अर्जित धन देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त संस्थाओं तक भी पहुंच रहा है। इस शिकायत पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जांच के आदेश दिए। दूसरी ओर, एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गई। यह याचिका अधिवक्ता विभोर आनंद ने दायर की है। याचिका में हलाल प्रमाणन को संविधान के अनुच्छेद 14, 21 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है। शीर्ष अदालत ने भी इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पहले ही जांच के आदेश दे चुके थे। शीर्ष अदालत के आदेश से जांच में तेजी आई और अंत में मुकदमा दर्ज हुआ।
टिप्पणियाँ