बिहार बोर्ड की 9वीं व 10वीं कक्षा की संस्कृत की पाठ्यपुस्तक में मुस्लिम पर्व, मुस्लिम चरित्रों को जबरन ठूंस दिया गया है। इसी तरह, हिंदी से प्रेमचंद को हटा दिया गया है तथा नीतीश कुमार व सोनिया गांधी पर निबंध पढ़ाए जा रहे हैं
बिहार की सेक्युलर सरकार का हिंदू विरोधी रवैया एक बार फिर सामने आया है। बिहार बोर्ड में कक्षा 9 की संस्कृत की पुस्तक में मुस्लिमों के पर्व ‘ईद’ के बारे में पढ़ाया जा रहा है। इसी तरह, 9वीं और 10वीं कक्षा में इसी विषय में मुस्लिम पात्रों के नाम ठूंस दिए गए हैं। मतलब यह कि हिंदू विद्यार्थियों को इस्लामी पर्व के बारे में पढ़ाया जा रहा है, उन्हें उर्दू के शब्द सिखाए जा रहे हैं, जबकि उर्दू में हिंदू त्योहारों के बारे में एक शब्द भी नहीं है। हिंदी का पाठ्यक्रम तो अपने आप में विचित्र है। 9वीं और 10वीं कक्षा के हिंदी के पाठ्यक्रम में प्रेमचंद की एक भी रचना शामिल नहीं की गई है। इसकी जगह बच्चों को श्रम विभाजन और जातिवाद का मतलब पढ़ाया जा रहा है। 10वीं के विद्यार्थियों को ‘नौबतखाने में इबादत’, जबकि 9वीं में नीतीश कुमार व सोनिया गांधी पर निबंध पढ़ाए जा रहे हैं। बिहार सरकार की नजर में साम्प्रदायिक सद्भावना सबसे बड़ी समस्या है। इसलिए 9वीं और 10वीं कक्षा में साम्प्रदायिक सद्भावना पर लेख पढ़ाया जा रहा है। 9वीं में महंगाई की मार विषय पर भी लेख है।
दरअसल, के.के. पाठक ने जब से शिक्षा विभाग में अपर मुख्य सचिव का पद संभाला है, तब से वह नए-नए ‘प्रयोग’ कर रहे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने आदेश दिया था कि बिहार के सरकारी स्कूल में पढ़ रहे बच्चों को अब हर महीने परीक्षा देनी होगी। इसी आदेश के तहत 26 अक्तूबर को 9वीं कक्षा की संस्कृत की परीक्षा हुई थी। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने नीतीश सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सरकार शिक्षा का इस्लामीकरण कर रही है।
उन्होंने संस्कृत की परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों को गजवा-ए-हिंद का नमूना बताया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तंज कसा कि अब सरकार कहीं यह आदेश न पारित कर दे कि सभी हिंदुओं को शुक्रवार को नमाज पढ़नी होगी। लगे हाथ उन्होंने सरकार से यह मांग भी कर दी कि ऐसे विषयों को पाठ्यक्रम से हटा दिया जाए। गिरिराज सिंह की इस आपत्ति के बाद बिहार में सियासत गरमा गई। उनके बयान पर जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि सवाल क्या पूछे गए और क्यों पूछे गए, यह तो मुझे मालूम नही है। लेकिन जो भाजपा नेता महागठबंधन की सरकार पर आरोप लगा रहे हैं, वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में कुछ क्यों नहीं बोलते?
भारत में ईद कहीं भी महोत्सव के तौर पर नहीं मनाई जाती है। इसी प्रकार, 10वीं कक्षा में संस्कृत के 14वें अध्याय ‘शास्त्रकारा:’ में भी शिक्षक व विद्यार्थियों का वार्तालाप है, जिसमें एक मुस्लिम नाम है। राज्य सरकार ने सेक्युलर दिखने के लिए इसमें कमाल और रहीम का चरित्र जबरन डलवाया है। इसके विपरीत उर्दू के पाठ्यक्रम में कहीं भी हिंदू पर्वों का उल्लेख नहीं है। मुस्लिम बच्चों को न तो 9वीं कक्षा में और न ही 10वीं कक्षा में हिंदू पर्वों के बारे में पढ़ाया जा रहा है।
गिरिराज सिंह के बयान के बाद संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष भोला यादव ने कहा कि परीक्षा में पूछे गए सवाल पाठ्यक्रम के अनुरूप ही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि निर्धारित पाठ्यक्रम के माध्यम से बच्चों को सभी पंथों की शिक्षा दी जाती है। जो लोग सवाल उठा रहे हैं, वे भारत का संविधान नहीं, बल्कि मनुवाद का संविधान मानते हैं। वास्तव में यह मासिक परीक्षा थी। पूरे पाठ्यक्रम को समान हिस्सों में बांटकर परीक्षा ली जाती है। अक्तूबर के पाठ्यक्रम में ईद का अध्याय था। उन्होंने कहा कि बहुत से मुस्लिम बच्चे भी संस्कृत बोर्ड से परीक्षा दे रहे हैं। सिलेबस में पहले से ही यह विषय शामिल है। यह नया नहीं जोड़ा गया है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि संस्कृत में इस्लाम का घालमेल केवल एक अध्याय तक सीमित नहीं है। 9वीं और 10वीं में संस्कृत में ही कई अध्याय हैं, जिसमें मुस्लिम नाम वाले चरित्र को वार्तालाप में शामिल किया गया है। 9वीं में संस्कृत के पांचवें अध्याय ‘संस्कृतस्य महिमा’ में कमाल और रहीम को शिक्षक के साथ वार्तालाप करते दिखाया गया है। ईद महोत्सव:10वां अध्याय ” है। इसमें ईद को महोत्सव बताया गया है, पर्व नहीं।
भारत में ईद कहीं भी महोत्सव के तौर पर नहीं मनाई जाती है। इसी प्रकार, 10वीं कक्षा में संस्कृत के 14वें अध्याय ‘शास्त्रकारा:’ में भी शिक्षक व विद्यार्थियों का वार्तालाप है, जिसमें एक मुस्लिम नाम है। राज्य सरकार ने सेक्युलर दिखने के लिए इसमें कमाल और रहीम का चरित्र जबरन डलवाया है। इसके विपरीत उर्दू के पाठ्यक्रम में कहीं भी हिंदू पर्वों का उल्लेख नहीं है। मुस्लिम बच्चों को न तो 9वीं कक्षा में और न ही 10वीं कक्षा में हिंदू पर्वों के बारे में पढ़ाया जा रहा है।
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