राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने कर्नाटक में बिना बुनियादी सुविधाओं के अवैध रूप से चल रहे मिशनरी बाल आश्रय गृह और इस्लामी अनाथालय के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। लेकिन राज्य पुलिस ने उल्टे आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो के खिलाफ ही मामला दर्ज कर लिया
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने बीते दिनों कर्नाटक में मिशनरी संस्था द्वारा संचालित बाल आश्रय गृह और दारूल उलूम द्वारा संचालित अवैध अनाथालय पर छापा मारा। औचक निरीक्षण के दौरान आयोग को दोनों जगहों पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव और बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां दिखीं। आयोग ने बाल गृह और अनाथालय में बच्चों की दयनीय स्थिति पर सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए राज्य के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया। लेकिन नोटिस पर ठोस कदम उठाने की बजाए पुलिस ने एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो के खिलाफ ही मामला दर्ज कर लिया।
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने बताया कि कर्नाटक के दावणगेरे में ईसाई मिशनरी संस्था डॉन बॉस्को द्वारा एक बाल आश्रय गृह ‘ओपन शेल्टर’ का संचालन किया जा रहा है। आश्रय गृह के निरीक्षण के दौरान एनसीपीसीआर की टीम को रसोई में बीफ (गोमांस) मिला। आयोग की सदस्य डॉ. दिव्या गुप्ता ने कचरे में से बीफ का बिल भी ढूंढ निकाला। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आश्रय गृह में बड़ी संख्या में हिंदू बच्चे रह रहे थे, इसके बावजूद यहां न केवल गोमांस पकाया जा रहा था, बल्कि हिंदू बच्चों को ईसाइयत की घुट्टी भी पिलाई जा रही थी। उन्हें ईसाई तौर-तरीका सिखाया जा रहा था। आयोग की टीम को निरीक्षण के दौरान बाल गृह में बुनियादी सुविधाओं के अभाव सहित अनेक गड़बड़ियां मिलीं।
आश्रय गृह के निरीक्षण के दौरान आयोग की टीम को राजस्थान के जोधपुर का एक बच्चा मिला, जो घर से भटक कर यहां आ गया था और बीते कई महीनों से इस आश्रय गृह में रह रहा था। आयोग ने बच्चे को वापस घर भेजने का निर्देश दिया है। आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि कानूनी तौर पर ऐसे बच्चों को तत्काल उसके घर वापस भेजा जाना चाहिए था, लेकिन फंडिंग के लोभ में और अधिकारियों की मिलीभगत से बच्चों को उनके परिवार से दूर बाल गृहों में रखा जा रहा है। यही नहीं, इस आश्रय में रखे जाने वाले बच्चों को स्कूल भी नहीं भेजा जाता है। इसके अलावा, इस आश्रय गृह में एक ईसाई मिशनरी भी अनधिकृत रूप से रह रहा था। इस मामले में आयोग ने आवश्यक कार्रवाई के लिए नोटिस जारी किया है।
आयोग ने बेंगलुरु के कवल बैरसांद्रा स्थित दारूल उलूम सईदिया यतीमखाना का भी पर्दाफाश किया है। यहां भी आयोग को कई गड़बड़ियां मिलीं। इस गैर-पंजीकृत अनाथालय में रहने वाले लगभग 200 मासूम बच्चों की स्थिति बहुत दयनीय है। यहां बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। बच्चों अमानवीय तरीके से महज 100 वर्गफीट के कमरे में 8 बच्चों को रखा जाता है।
अनाथालय ऐसे 5 कमरे हैं, जिनमें 40 बच्चे रहते हैं, जबकि 16 बच्चे तो गलियारे में रहते हैं। शेष 150 बच्चे मस्जिद के नमाज पढ़ने वाले दो अलग-अलग हॉल में रहते हैं, जिन्हें रात में ही सोने को मिलता है। सभी 200 बच्चे दिन भर इन्हीं नमाज वाले हॉल में दीनी तालीम लेते हैं। किसी भी बच्चे को स्कूल नहीं भेजा जाता है। अनाथालय में बच्चों के खाने, आराम करने, मनोरंजन आदि के लिए भी कोई जगह नहीं है। ये मस्जिद में ही रहते हैं।
इन बच्चों में खौफ का आलम यह है कि मौलवी को आते देखकर ही वे डर के मारे आंखें बंद कर चुपचाप खड़े हो जाते हैं। कई बच्चों को ठीक से सोने भी नहीं दिया जाता है। उन्हें तड़के 3:30 बजे से ही मदरसे की पढ़ाई में लगा दिया जाता है। इन्हें नमाज के लिए दिन में छोटे-छोटे ब्रेक दिए जाते हैं। करोड़ रुपये की वक्फ संपत्ति वाले इस अनाथालय की एक अलग बिल्डिंग है, जिसमें स्कूल चल रहा है, लेकिन इन बच्चों को स्कूल जाने की भी अनुमति नहीं दी जाती है। आयोग के अध्यक्ष ने कहा, ‘‘ये बच्चे मध्ययुगीन तालिबानी जीवन जी रहे हैं। संविधान में इनके लिए यह जीवन नहीं लिखा है। यह न केवल कर्नाटक सरकार की लापरवाही है, बल्कि संविधान का भी उल्लंघन है।’’ इस मामले में आयोग ने संज्ञान लेते हुए आवश्यक कार्रवाई के लिए बेंगलुरु के जिलाधिकारी और राज्य के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है।
अशरफ खान ने कहा-
‘कानूनगो समुदायों के बीच नफरत फैलाने
के लिए झूठी खबरें फैला रहे हैं’।
उधर, बच्चों के संदर्भ में एनसीपीसीआर अध्यक्ष की ‘मध्ययुगीन तालिबानी जीवन’ वाली टिप्पणी दारूल उलूम सईदिया यतीमखाना के सचिव अशरफ खान को नागवार गुजरी और उसने प्रियंक कानूनगो के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दी। उसकी शिकायत पर पुलिस ने एनसीपीसीआर अध्यक्ष के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज कर ली। मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार, अपनी शिकायत में अशरफ खान ने कहा कि ‘कानूनगो समुदायों के बीच नफरत फैलाने के लिए झूठी खबरें फैला रहे हैं’। उसका कहना है कि एक्स (ट्विटर) पर ‘कानूनगो की पोस्ट पढ़कर उसे आश्यर्च हुआ कि एनसीपीसीआर के अध्यक्ष अनाथालय के बच्चों और सुविधाओं की तुलना कुछ आतंकवादी समूहों से कैसे कर सकते हैं? जब कानूनगो यहां आए तो उन्होंने दावा किया कि वह मानवाधिकार आयोग से हैं। फिर उन्होंने पूरे परिसर का निरीक्षण किया। उस समय दोपहर का भोजन करने के बाद बच्चे अंदर सो रहे थे।
उन्होंने अनाथालय में दी जा रही सुविधाओं की सराहना करते हुए इसे विकसित करने के लिए धन उपलब्ध कराने का भी आश्वासन दिया था। अनाथालय में पहले इतने बच्चे नहीं थे। कोरोना के बाद बच्चों की संख्या बढ़ी। हमने उन्हें बताया भी था कि यहां 60 से अधिक वैसे बच्चों की देखभाल की जा रही है, जिन्होंने कोरोना काल में अपने माता-पिता को खो दिया है।’ बकौल अशरफ अनाथालय दारूल उलूम सईदिया ट्रस्ट के तहत पंजीकृत है। यह ट्रस्ट स्कूल और कॉलेज का संचालन करता है। अनाथालय प्रबंधन लोगों से आर्थिक सहायता, किराने का सामान और अन्य चीजें मांगकर लगभग 200 बच्चों की देखभाल करता है। जो माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई और पालन-पोषण नहीं कर पाते, वे उन्हें यहीं छोड़ देते हैं। हम उन्हें बुनियादी शिक्षा तो देते हैं, लेकिन औपचारिक नहीं। यदि कोई औपचारिक शिक्षा प्रदान करने के लिए आगे आता है, तो हमें बहुत खुशी होगी। हम 1980 से संगठन चला रहे हैं और अब तक किसी को भी इससे कोई समस्या नहीं हुई।
बहरहाल, एनसीपीसीआर अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने मुख्य सचिव को अनाथालय के खिलाफ मामला दर्ज करने का निर्देश दिया था। लेकिन डीजेहल्ली पुलिस ने उन्हीं के खिलाफ धारा 447 (आपराधिक अतिचार), 448 (घर में अतिचार) और 295 (ए) (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य, किसी भी वर्ग के मत या पांथिक विश्वासों का अपमान करके उसकी पांथिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इरादा) के तहत मामला दर्ज लिया।
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