भारत में अल्पसंख्यकों मुख्यत: मुस्लिमों के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले पाकिस्तान हिन्दुओं के साथ लगातार ज्यादती हो रही है। हिन्दू महिलाओं का अपहरण, रेप और हत्या आम बात हो गई है। पाकिस्तान में जबरन अल्पसंख्यों का इस्लामिक कन्वर्जन आम बात हो गई है। ताजा मामला पाकिस्तान के ही सिंध प्रांत के संघार जिले के शाहदादपुर का है। यहां चार बच्चों की मां पंगला भील का इस्लामिक कट्टरपंथियों ने अपहरण कर लिया और बच्चों समेत जबरन उसका इस्लामिक कन्वर्जन करवा दिया गया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस्लामिक कट्टरपंथियों ने पंगला भील का इस्लामिक कन्वर्जन करवाने के बाद एक मुस्लिम के साथ जबरन उसका निकाह भी करवा दिया। सोशल मीडिया पर इस घटना का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एक व्यक्ति सिंधी भाषा में बात करते हुए कथित तौर पर खुद के पंगला भील का शौहर होने का दावा करता है। वो खुद को उसका शौहर करार देता है।
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वीडियो में खुद को साई बख्श बताते हुए और सिंधी में बात करते हुए व्यक्ति ने दावा किया कि निकाह से पहले पंगला को वो नहीं जानता था। वीडियो में व्यक्ति ने दावा किया कि कुछ लोगों ने महिला का अपहरण कर लिया था। उसे जबरन इस्लाम में परिवर्तित कर दिया और फिर शादी के लिए उसके पास ले आए। बता दें कि इस खुलासे के बाद एक बार फिर से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है, इसकी पोल खुल गई है। इस घटना से इस बात का पता चलता है कि पाकिस्तान में हिन्दू महिलाओं की सुरक्षा कितनी बड़ी चुनौती है।
पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ बर्बरता की ये इकलौती घटना नहीं है। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहां पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने जबरन हिन्दू महिलाओं और युवतियों का अपहरण करके उनके साथ रेप किया और उनका इस्लामिक कन्वर्जन करवा दिया।
पाकिस्तान के सेंटर फॉर पीस एंड जस्टिस की ओर से साल 2022 एक रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सबसे बड़ी आबादी हिन्दुओं की है, जो कि पाकिस्तान की कुल आबादी का करीब 1.5 प्रतिशत हैं। बावजूद इसके ये पाकिस्तानी के बहुसंख्यक मुस्लिमों को फूटी आंख नहीं सुहाते। पाकिस्तान का कट्टरपंथी सुन्नी समुदाय लगातार हिन्दुओं को प्रताड़ित कर रहा है। खास बात ये है कि पाकिस्तान में हिंदुओं द्वारा फेस की जाने वाली चिंताजनक वास्तविकता पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों का ध्यान नहीं जाता है। इन घिनौने कृत्यों से प्रभावित लोगों की आवाज़ उदासीनता के सन्नाटे में गूंजती है, जो बुनियादी मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के प्रति गंभीर उपेक्षा को रेखांकित करती है।
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