पिछले लंबे समय से पाकिस्तान में सरकार नाम की एक ढुलमुल व्यवस्था देश को तो गर्त में ले जा ही रही है, बल्कि कानून का राज न रहने से वहां पहले से निशाने पर रहे अल्पसंख्यकों पर दमन और बढ़ गया है। ऐसे में अमेरिकी सांसदों द्वारा अपनी सरकार से उस देश को भविष्य में कोई सैन्य मदद न देने अपील किया जाना, पाकिस्तान की ढहती संवैधानिक व्यवस्था की पोल ही खोलता है। अमेरिका के लगभग 11 सांसदों ने विदेश मंत्री ब्लिंकन को चिट्ठी लिखकर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की बदहाली को लेकर भी चिंता जताई है। कहा है कि वहां ईशनिंदा के नाम पर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं और ये अत्याचार इससे जुड़े कानून में संशोधन होने के बाद और बढ़ने वाले हैं।
लेकिन सवाल है कि बाइडन सरकार अमेरिकी सांसदों की इस अपील पर ध्यान देगी? क्या पाकिस्तान में कोई ठीकठाक संवैधानिक इंतजाम होने तक उसे दी जाने वाली हर प्रकार की मदद रोकेगी? वहां घोषणा के अनुसार आम चुनाव होने को हैं। लेकिन क्या वे स्वतंत्र और निष्पक्ष हो पाएंगे? क्या सेना वहां इस बार अपनी दबंगई नहीं चलाएगी?
ब्लिंकन को चिट्ठी लिखने वाले ये 11 अमेरिकी सांसद प्रभावशाली माने जाते हैं। हैरानी की बात है कि पाकिस्तान को कैसी भी मदद न दिए जाने की अपील करने वालों में इस्लामवादी इल्हान उमर भी शामिल है, जो अमेरिका में मुसलमानों के पक्ष में खूब आवाज उठाती रही है।
दो शर्तें चिट्ठी में साफ लिखी हैं। एक, पाकिस्तान में संवैधानिक तंत्र की बहाली हो, तथा दो, ईशनिंदा कानून में बदलाव करने की कदम वापस खींचे जाएं। इन दो बातों के पूरा होने तक उस इस्लामी देश को किसी भी सुरक्षा सहायता से वंचित रखा जाए। सांसदों का मानना है कि अमेरिका द्वारा मिल रही सुरक्षा मदद के दम पर ही पाकिस्तान ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग करता आ रहा है।
सांसदों का पत्र देखें तो उसमें कहा गया है कि पाकिस्तान को आगे की सुरक्षा सहायता उस वक्त तक के लिए रोक देनी चाहिए जब तक वहां कानून का राज नहीं होता, इसमें वहां के चुनावों का स्वतंत्र तथा निष्पक्ष सम्पन्न होना भी एक शर्त है। इस बारे में पाकिस्तान के मशहूर अंग्रेजी दैनिक द डॉन की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिकी सांसदों की उस चिट्ठी में वहां के ईशनिंदा कानून की आड़ में अल्पसंख्यकों के दमन का मामला भी रेखांकित किया गया है। अमेरिकी सांसदों ने लिखा है कि पाकिस्तान में मानवाधिकार हनन हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून वह कोड़ा है जो अल्पसंख्यकों पर अक्सर लगाया जाता रहा है और उसके विरुद्ध उनकी एक नहीं सुनी जाती। वहां बसे हिन्दू और ईसाई लोग ईशनिंदा कानून के तहत एक ‘सुनियोचित’ अत्याचार को सहने को विवश होते हैं। गत जनवरी में इसी कानून आपराधिक कानून संशोधन विधेयक 2023 को निचले सदन ने पारित करके इसे और दमनकारी बनाना सुनिश्चित कर दिया है। हालांकि अभी इस पर राष्ट्रपति के दस्तखत होने बाकी हैं, लेकिन वह मात्र औपचारिकता ही होगी, इसलिए अमेरिकी सांसदों का इस पर सवाल उठाना स्वाभाविक ही है।
इस आपराधिक कानून संशोधन विधेयक का प्रस्ताव 17 जनवरी, 2023 को पाकिस्तानी संसद के निचले सदन में पारित किया था। इसे प्रस्तुत किया था, जमात-ए-इस्लामी के सांसद मौलाना अब्दुल अकबर चित्राली ने। चित्राली का दावा था कि ‘पैगंबर मुहम्मद तथा दूसरी पाक हस्तियों का अपमान करने से देश में आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है, इससे नुकसान भी होता है।’ आगे चित्राली का कहना था कि ”एक तरफ तो किसी संसद सदस्य के अपमान की सजा पांच साल है, लेकिन दूसरी तरफ पाक हस्तियों का अपमान करने की सजा तीन साल है। यह अपने आप में अपमान है।” इस तर्क के आधार पर चित्राली का प्रस्ताव ईशनिंदा कानून के तहत सजा को और बढ़ाने की बात करता था। निचले सदन में यही संशोधन विधेयक पारित हो गया था।
इसीलिए अपने इस पत्र में सांसदों ने अमेरिकी के विदेश मंत्री ब्लिंकन को सावधान किया है कि इस कानून के अमल में आने पर वहां के कम संख्या वाले पांथिक समुदायों पर कट्टरपंथियों का शिकंजा और कस जाएगा।
इसी कानून में अब संशोधन को रोकने की मांग भी अमेरिकी सांसदों ने की है। यानी दो शर्तें चिट्ठी में साफ लिखी हैं। एक, पाकिस्तान में संवैधानिक तंत्र की बहाली हो, तथा दो, ईशनिंदा कानून में बदलाव करने की कदम वापस खींचे जाएं। इन दो बातों के पूरा होने तक उस इस्लामी देश को किसी भी सुरक्षा सहायता से वंचित रखा जाए। सांसदों का मानना है कि अमेरिका द्वारा मिल रही सुरक्षा मदद के दम पर ही पाकिस्तान ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग करता आ रहा है।
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