मालदीव की राजधानी माले में चीन के कथित प्रभाव वाले नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रतिनिधि के नाते भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरण रिजीजू पहुंचे थे। मालदीव में जिस व्यक्ति, मोहम्मद मुइज्जू ने अब राष्ट्रपति पद की कमान संभाली है उसे एक लंबे समय से चीन का हित-पोषक माना जाता रहा है।
मुइज्जू ने अपने चुनाव प्रचार में कसमें खाई थीं कि शपथ ग्रहण के अगले ही दिन वहां सुरक्षा और उस देश के अनुरोध पर मौजूद भारत के सैनिकों को वापस भेज देंगे। लेकिन इस मौके पर राजधानी माले पहुंचे रिजीजू ने घोषणा कर दी है कि भारत उस टापू देश में करीब 7 किलोमीटर लंबा पुल बनाने वाला है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह पुल चीन की बीआरआई परियोजना का सख्त जवाब देने का काम करेगा, क्योंकि मालदीव भी चीनी पैसे में प्रभाव में माना जाता है। ऐसे में वहां की विकास परियोजनाओं में भारत की भूमिका होना चीन के लिए हालात असहज ही बनाएगा।
वहां भारत पहले से कई विकास योजनाओं पर काम कर रहा है, उनके लिए कर्ज दिया है। इसलिए भारत के हितों को वह देश एकदम से अनदेखा नहीं कर सकता है। चीन की बीआरआई की काट के लिए भारत मालदीव में विशेष कदम उठाने की सोच रहा है, जिसका हल्का सा संकेत रिजीजू ने कल माले में दिया है।
नए राष्ट्रपति मुइज्जू ने हालांकि अपने भाषणों में यह भी कहा है कि उनके नेतृत्व में मालदीव भारत और चीन, दोनों के साथ आर्थिक संबंध मजबूत बनाकर विकास के रास्ते बढ़ेगा। लेकिन उन्हें भारत विरोधी राष्ट्रपति ही माना जा रहा है। इधर भारत की मोदी सरकार वहां विकास के कामों को आगे बढ़ाए रखने को कृतसंकल्प है। किरेन रिजीजू ने कल खुद वहां भारत के पैसे से चल रही सेतु परियोजना के काम को देखा। रिजीजू ने भारत की स्थिति स्पष्न्ट करते हुए कहा कि भारत उस देश में 6.74 किमी. लंबाई वाला सेतु बनाने जा रहा है।
दरअसल यह पुल ‘ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट’ (जीएमसीपी) परियोजना के तहत बन रहा है। यह राजधानी माले को विलिंग्ली, गुलहिफाल्हू तथा थिलाफुशी के पास के टापुओं से जोड़ेगा। एक तरह से ये सेतु संपर्क का काम करेगा। इस बारे में किरण रिजीजू ने सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में लिखा, ‘मालदीव में ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के कामों की प्रगति को देखकर प्रसन्नता हुई है। भारत सरकार की रियायती ऋण एवं अनुदान सुविधा के अंतर्गत बन रहे इस सेतु से, उम्मीद है, वृहत माले के क्षेत्र में आर्थिक विकास तथा खुशहाली आएगी।’
उल्लेखनीय है कि यह सेतु भारत की तरफ से दिए 10 करोड़ डॉलर के अनुदान तथा 40 करोड़ डॉलर के कर्ज से बन रहा है। माले में रिजीजू सेशेल्स के उपराष्ट्रपति अहमद आरिफ से भी मिले। उनसे दोनों देशों के बीच दोतरफा संबंधों पर बातचीत की।
लेकिन मुद्दे की बात मालदीव में नए राष्ट्रपति मुइज्जू की वह घोषणा है जिसमें उनका कहना है कि मालदीव से भारतीय सैनिकों को फौरन निकाला जाएगा। मुइज्जू के इस व्यवहार से भारत के साथ उनके संबंधों में खटास आई है और भारत सशंकित है कि चीन उस देश पर अपना शिकंजा किस हद तक जकड़ने वाला है। राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू पहले भी चीन के प्रति अपनी निष्ठाएं दिखा चुके हैं।
मालदीव वह देश है जहां चीन की महत्वाकांक्षी बीआरआई परियोजना के अंतर्गत अनेक कार्य चल रहे हैं। इनमें निश्चित तौर पर पैसा बीजिंग का ही लगा है। क्योंकि चीन की रणनीति ही छोटे देशों को अपने कर्जे के जाल में फंसाकर उनकी अर्थव्यवस्था को घुटनों पर लाने की रही है। पाकिस्तान, श्रीलंका और कई अफ्रीकी देश इसके प्रमाण कहे जा सकते हैं। लेकिन सागर तट पर स्थित मालदीव को चीन रणनीतिक और सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण मानता आया है। इसलिए वहां बीजिंग समर्थक सरकार का बनना उसके लिए सहज हालात बना सकता है।
लेकिन भारत भी सावधान है। वहां भारत पहले से कई विकास योजनाओं पर काम कर रहा है, उनके लिए कर्ज दिया है। इसलिए भारत के हितों को वह देश एकदम से अनदेखा नहीं कर सकता है। चीन की बीआरआई की काट के लिए भारत मालदीव में विशेष कदम उठाने की सोच रहा है, जिसका हल्का सा संकेत रिजीजू ने कल माले में दिया है।
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