अमेरिका के साथ चीन के ‘संबंध सुधारने’ की कवायद कोई बहुत परिणाकारी नहीं साबित हुई है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तीन दिन के अमेरिका दौरे पर गए थे। वहां एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग मंच के शिखर सम्मेलन के मौके पर उन्हें अमेरिका के साथ अपने रिश्ते पटरी पर लाने की ललक हुई थी। सैन फ्रांसिस्को में उनकी राष्ट्रपति बाइडन से द्विपक्षीय बात हुई। लेकिन इस बार में वह बात शायद नहीं रही जिसकी शी जिनपिंग को आस रही होगी। बाइडन ने न सिर्फ उन्हें तानाशाह बताया बल्कि उनके सफेद झूठ से पर्दा भी उठा दिया।
चीन और अमेरिका के बीच हुई इस वार्ता पर वाशिंगटन और बीजिंग सहित दुनिया भर के नीतिकारों और विशेषज्ञों की नजरें टिकी थीं। सबको पता है कि एक अर्से से दोनों देश एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं। ऐसे तनावपूर्ण संबंधों की सलवटें हटाने की गरज से हुई यह वार्ता अपेक्षित परिणाम वाली नहीं रही। रूस—यूक्रेन और इस्राएल—हमास युद्ध की पृष्ठभूमि में दो ताकतवर देशों की वार्ता वैसे भी महत्वपूर्ण मानी जा रही थी।
लेकिन इस वार्ता के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी पीठ खुद ही थपकने की कोशिश में कहा कि, 70 से ज्यादा साल हो गए कम्युनिस्ट पार्टी को बने, लेकिन इस दौरान उनके देश ने न कहीं कोई संघर्ष या युद्ध छेड़ा है, न ही किसी देश की एक इंच जमीन कब्जाई है। चीन की नब्ज पहचानने वाले जानते हैं कि ये दोनों ही बातें सफेद झूठ से बढ़कर नहीं हैं।
सालभर बात इन दोनों नेताओं की इस वार्ता से पहले अमेरिका के सांसदों और विदेश संबंध विशेषज्ञों ने कई बिन्दु सुझाए थे, जिन पर चीनी राष्ट्रपति से स्पष्टता की अपेक्षा की गई थी। लेकिन चर्चा राष्ट्रपति जिनपिंग ने उक्त बयान को लेकर छिड़ गई। ‘विदेशी जमीन पर कभी कब्जा न करने’ का उनका दावा कितना झूठा है, यह सहज समझा जा सकता है। संभवत: इसी वार्ता के संबंध में जब एक पत्रकार ने बाइडन से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि शी जिनपिंग ‘तानाशाह’ है। इस एक शब्द से अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने शी के दावे की हवा निकाल दी। हालांकि उनके इस शब्द प्रयोग से अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन की असहजता प्रेस वार्ता के वीडियो दृश्य में साफ देखी जा सकती है।
जैसा पहले बताया, एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग या ‘एपेक’ के शिखर सम्मेलन के अवसर पर मिले दोनों नेताओं की बैठक में ‘बॉडी लेंग्वेज’ भी कोई बहुत सहज नहीं थी। एक लंबे समय से दोनों देशों के बीच असामान्य रहे संबंधों की प्रतिच्छाया इस वार्ता में साफ देखी जा सकती थी।
भारत के संदर्भ में चीनी राष्ट्रपति के दावे को तोलें तो क्या चीनी नेता नहीं जानते कि भारत की सीमाओं पर विवाद उनके देश द्वारा भड़काए रखा जा रहा है! बीजिंग की कम्युनिस्ट सत्त और पीएलए सेना द्वारा भारत तथा चीन के मध्य सीमा विवाद एक चुभने वाला मुद्दा बनाए रखा गया है। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीन के गत वर्षों में सैकड़ों बार घुसपैठ और जमीन कब्जाने की कोशिशें की हैं। सीमा पर अपनी सेना का जमावड़ा किया है।
द्विपक्षीय वार्ता के बाद, दरअसल राष्ट्रपति जिनपिंग ने कहा था कि पीपुल्स रिपब्लिक को स्थापित हुए 70 से ज्यादा साल हो चले हैं। लेकिन इस बीच ‘चीन ने कहीं कोई संघर्ष अथवा युद्ध नहीं छेड़ा है’। इतना ही नहीं, उन्होंने आगे कहा कि इस अंतराल में चीन ने किसी अन्य देश की एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं किया।
शी के साथ अपनी चर्चा में बाइडन ने सिंक्यांग, तिब्बत तथा हांगकांग का उल्लेख किया था। वहां जिस प्रकार कम्युनिस्ट सत्ता मानवाधिकारों का हनन किए हुए है, उसे लेकर अफसोस प्रकट किया था। बाइडन ने मानवाधिकारों के संदर्भ में विश्व के सभी देशों की मानवाधिकार को लेकर प्रतिबद्धताओं का उचित सम्मान करने की बात की थी। बाइडन ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश जानते हैं कि सिंक्यांग में उइगरों और तिब्बत में बौद्धों का किस प्रकार दमन किया जा रहा है। हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों के साथ कैसा बर्ताव किया जा रहा है।
भारत के संदर्भ में चीनी राष्ट्रपति के दावे को तोलें तो क्या चीनी नेता नहीं जानते कि भारत की सीमाओं पर विवाद उनके देश द्वारा भड़काए रखा जा रहा है! बीजिंग की कम्युनिस्ट सत्त और पीएलए सेना द्वारा भारत तथा चीन के मध्य सीमा विवाद एक चुभने वाला मुद्दा बनाए रखा गया है। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीन के गत वर्षों में सैकड़ों बार घुसपैठ और जमीन कब्जाने की कोशिशें की हैं। सीमा पर अपनी सेना का जमावड़ा किया है और मई 2020 में तो लद्दाख में एलएसी भारत के अंदर घुसकर भारतीस सैनिकों पर कानून के विरुद्ध जाकर घातक हथियारों से हमला बोला था। लेकिन गलवान में की गई चीन की इस शैतानी हरकत का भारत के वीरों ने ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया था कि जिसे ड्रैगन वर्षों तक भूल नहीं पाएगा।
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