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मध्य पूर्व में क्यों खुल रहा चीन का फौजी अड्डा? पेंटागन के कान खड़े होने के मायने!

खाड़ी के देश चीन को पहले से लुभाते आ रहे हैं। वजह यह है कि अनेक अफ्रीकी देशों, दक्षिण एशियाई देशों को अपने कर्जे के जाल में फंसाने के बाद, चीन की नजर मध्य पूर्व पर लंबे वक्त से टिकी है

by WEB DESK
Nov 16, 2023, 02:40 pm IST
in विश्व
चीन की सेना पीएलए के फौजी   (File Photo)

चीन की सेना पीएलए के फौजी (File Photo)

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विस्तारवादी चीन अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाता जा रहा है और यह बात महाशक्ति अमेरिका के लिए सिरदर्द की वजह बनती जा रही है। चीन के ओमान में सैन्य आधार शुरू करने की खबरें सिर्फ अमेरिका ही नहीं, खाड़ी के अन्य देशों के लिए भी रणनीतिक रूप से चिंता की वजहें बन सकती है। विशेष रूप से तब जब इस प्रकार का खुलासा सीधे अमेरिकी रक्षा विभाग मुख्यालय पेंटागन की रिपोर्ट से हुआ हो। सवाल है कि क्या ओमान का चीनी फौजी अड्डा अमेरिकी—भारत निकटताओं को प्रभावित करने की गरज से स्थापित होने जा रहा है?

खाड़ी के देश चीन को पहले से लुभाते आ रहे हैं। वजह यह है कि अनेक अफ्रीकी देशों, दक्षिण एशियाई देशों को अपने कर्जे के जाल में फंसाने के बाद, चीन की नजर मध्य पूर्व पर लंबे वक्त से टिकी है। साथ ही, अमेरिका और भारत जिस तेजी से निकट आ रहे हैं और सामरिक रूप से चीन को चुनौती देने की स्थिति में हैं, उसे देखते हुए चीन का ओमान में एक अड्डा बनाने का स्वार्थ सहज समझा जा सकता है। यहां यह जानना दिलचस्प है कि ओमान में पहले से भारत के कुछ सैन्य अड्डे क्रियाशील हैं।

पेंटागन की इस रिपोर्ट की बारीकियों से अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडन को भी अवगत करा दिया गया है। बाइडन जानते हैं कि खाड़ी के इलाके में चीनी मौजूदगी बेवजह का एक तनाव और संघर्ष का मुद्दा बनेगी। ओमान में आखिर अमेरिका के सैनिक भी आज से नहीं, लंबे वक्त से तैनात हैं और अमेरिकी खाड़ी में अमेरिकी स्थिति को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। बाइडन प्रशासन को यह भी आंशका होगी कि भारत के संदर्भ में कहीं चीन की यह शरारत बाधाएं न खड़ी करे।

पेंटागन को लंबे वक्त से पता है कि बीजिंग अपनी रणनीतिक योजनाओं को सिरे चढ़ाते हुए यूएई, इंडोनेशिया, थाईलैंड तथा पाकिस्तान जैसे देशों और अन्य स्थानों पर किसी न किसी ‘केन्द्र’ के नाम पर अपनी फौजी हलचल चलाए रखना चाहता है। कहा जाता है कि ओमान वह देश है जो ‘तटस्थ’ र​हकर अमेरिका तथा ईरान के बीच सेतु का काम करता आया है। वह अमेरिका और चीन को लेकर एक ‘संतुलित’ नजरिया बनाए रखते हुए दोनों से रिश्ते निभा रहा है।

पेंटागन के पास इस बात की पुख्ता जानकारी है कि गत माह चीन के फौजी अफसर ओमान के फौजी अफसरों से मिले थे। वहां इस ‘अड्डे’ को लेकर मंत्रणा की गई ​थी। पता यह भी चला है कि चीन और ओमान के फौजी अफसरों के बीच इस विषय पर आगे भी चर्चा होने वाली है। हालांकि चीन का विदेश विभाग इस विषय में फिलहाल मौन धारण किए हुए है, लेकिन दिलचस्प बात है कि बाइडन प्रशासन की ओर से भी अभी इस पर कुछ बोला नहीं जा रहा है। चीन जिस प्रकार अपनी चालें चलता है, उसी पद्धति पर चलते हुए ड्रैगन ने ओमान को अपने पैसे के प्रभाव में लेने की कोशिशें शुरू की हुई हैं। ओमान के विशेष आर्थिक क्षेत्र में भी बीजिंग के पैसा लगाने को इसी दृष्टि से देखा जा रहा है।

माना जा रहा है कि मध्य पूर्व के प्रमुख देश ओमान पर चीन का यह सैन्य अड्डा विदेशों में उसके बाकी सैन्य अड्डों का ही एक अंग जैसा रहने वाला है। जैसा पहले बताया, पूर्वी अफ्रीका में उसने यही किया है, वहां विकास योजनाओं में पैसा लगाने के बहाने उसने धीरे धीरे अपनी दखल बढ़ाई है। जैसे, ज्बूती में उसका एक सैन्य व्यवस्था केन्द्र चल ही रहा। इस जैसे ‘केन्द्र’ उसने अन्य जगहों पर भी बनाए हुए हैं।

पेंटागन को लंबे वक्त से पता है कि बीजिंग अपनी रणनीतिक योजनाओं को सिरे चढ़ाते हुए यूएई, इंडोनेशिया, थाईलैंड तथा पाकिस्तान जैसे देशों और अन्य स्थानों पर किसी न किसी ‘केन्द्र’ के नाम पर अपनी फौजी हलचल चलाए रखना चाहता है। कहा जाता है कि ओमान वह देश है जो ‘तटस्थ’ र​हकर अमेरिका तथा ईरान के बीच सेतु का काम करता आया है। वह अमेरिका और चीन को लेकर एक ‘संतुलित’ नजरिया बनाए रखते हुए दोनों से रिश्ते निभा रहा है।

अब बात भारत की। भारत के वर्तमान में ओमान में चार फौजी अड्डे हैं। तीन नौसैनिक अड्डे तथा एक हवाईअड्डा। ओमान के रास-अल-हद में भारत का एक ‘लिसिनिंग’ केन्द्र चल रहा है, जो किसी शत्रु देश की ध्वनि द्वारा हलचल पकड़ने में मदद करता है। इससे शत्रु देश की हरकतें पकड़ में आती हैं। यहां से शत्रु देश के इलेक्ट्रॉनिक संवाद को प्रतिबंधित करना सहज बनाता है।

ओमान में अमेरिका का एक फौजी अड्डा है। वह वहां से खाड़ी के देशों यथा कुवैत, कतर, सऊदी अरब, बहरीन तथा संयुक्त अरब अमीरात सहित पूरे इलाके में अमेरिकी अड्डा नजर रखता है। ओमान का अमेरिका के साथ 1980 में एक करार हुआ था, उसी के अंतर्गत उस देश और ड़ी का पहला देश था जिसने सन् 1980 में एक समझौते के साइन होने के साथ ही अमेरिका के बीच फौजी स्तर पर एक सहयोग की प्रक्रिया शुरू हुई थी।

Topics: भारतmiddleeastअमेरिकाsouth asiaamericamillitaryarmystrategyIndiaafricaChinagulfomanओमानbase
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