झारखंड के जनजाति—बहुल क्षेत्रों में सड़क, बिजली, शिक्षा जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। घोर अभाव में जीने वाले कई ग्रामीणों की जान इसलिए जा रही है कि उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है।
आजादी के 75 वर्ष बाद भी झारखंड में ऐसे कई गांव हैं, जहां के ग्रामीणों को अब तक बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं। इन गांवों में न तो सड़कें हैं, न पानी और न ही बिजली। इस कारण इन गांवों में कोई बीमार होता है, तो लोग उसे कंधे पर टांग कर कई किलोमीटर दूर अस्पताल ले जाते हैं। हाल ही में ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार हजारीबाग जिले की एक महिला निशा देवी को 4 नवंबर की रात में प्रसव पीड़ा हुई। निशा देवी इस जिले के इचाक प्रखंड के जनजातीय बहुल पुरपरनिया गांव की रहने वाली है। निशा के पति प्रकाश हांसदा बाहर रहकर मजदूरी करते हैं। निशा को जब प्रसव पीड़ा हुई तो घर वाले परेशान हो गए। सड़क नहीं होने के कारण निशा को अस्पताल तक कैसे पहुंचाया जाए! यह सबसे बड़ा सवाल था। कई घंटे तक निशा प्रसव पीड़ा से तड़पती रही। आखिर में घर वालों ने भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं से संपर्क किया। इसके बाद भाजपा नेता रमेश कुमार हेंब्रम की पहल पर बाबूराम हांसदा, जागेश्वर सोरेन, केशव हांसदा, रोही किस्कू आदि तैयार हुए। इन लोगों ने निशा को एक खटिया पर लेटाया और उसे टांगकर पांच किलोमीटर दूर फुफंदी चौक तक पहुंचाया। यहां से एक वाहन के जरिए इचाक स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। अस्पताल में निशा का सुरक्षित प्रसव कराया गया और अभी वह सुरक्षित है।
ऐसे ही इसी वर्ष 9 जून को भी सुरेंद्र किस्कू की पत्नी मुन्नी देवी को प्रसव पीड़ा हुई थी। मुन्नी को भी खटिया के सहारे ही अस्पताल ले जाया गया था।
ग्रामीणों ने बताया कि गांव तक सड़क न होने के कारण बड़ी दिक्कत होती है। कोई बीमार हो जाता है, तो सोचना पड़ता है कि कैसे क्या होगा। भाजपा नेता रमेश हेम्ब्रम ने बताया कि सरकार ने वादा करके भी अब तक गांव को सड़क मार्ग से नहीं जोड़ा है। हालांकि कई बार इस संबंध में बात भी हुई, लेकिन किसी ने ग्रामीणों की बात को गंभीरता से नहीं लिया है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव में कई लोगों को जान तक गंवानी पड़ रही है।
कैलू गंझू और बंगाली गंझू की मौत
यही हाल चतरा और उसके आसपास का है। 3 अक्तूबर को चतरा के कारीमांडर-बुटकुइया गांव में 30 वर्षीय कैलू गंझू को बिजली का झटका लगा। सड़क की सुविधा न होने की वजह से समय पर उन्हें अस्पताल तक नहीं पहुंचाया जा सका और उनकी मृत्यु हो गई। ग्रामीण राजेंद्र गंझू के अनुसार गांव तक जाने के लिए न सड़क है और न ही नदी पर पुल है। इस वजह से गांव तक किसी तरह का वाहन नहीं आ पाता है। इससे पूर्व 17 सितंबर, 2022 को गांव के बंगाली गंझू को सांप ने काटा था। उस वक्त बारिश का मौसम था और गांव की नदी में पानी अधिक था। इस कारण उन्हें भी समय पर अस्पताल नहीं ले जाया जा सका और उनकी मृत्यु हो गई।
बरसात में पढ़ाई से वंचित बच्चे
गुमला जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर की दूरी पर फोरी जुंगाटोली गांव है। फोरी जुंगाटोली के पास से खटवा नदी गुजरती है। इस नदी पर अब तक पुल नहीं बनने से बरसात के दिनों में गांव का संपर्क जिला मुख्यालय से कट जाता है। बरसात में गांव के बच्चे विद्यालय भी नहीं जा पाते हैं। किसी के बीमार होने पर भी बड़ी दिक्कत होती है।
गुमला के ही एक और लिटिया चुवा गांव में करीब 40 घर हैं। यह गांव छत्तीसगढ़ की सीमा पर बसा हुआ है। यह गांव प्रसिद्ध बाबा टांगीनाथ धाम से सिर्फ 8 किलोमीटर और जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर है। कोरवा जनजाति समुदाय वाले इस गांव के लोगों को पीने के पानी के लिए भी दो किलोमीटर दूर स्थित एक कुएं पर जाना पड़ता है। गांव के लोग लंबे समय से सड़क, बिजली, पानी और दवा जैसी बुनियादी सुविधाओं की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है। ग्रामीणों का कहना है कि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में इस गांव में कोई अपनी बेटी की शादी तक नहीं करना चाहता।
सुविधाओं के अभाव में पलायन को मजबूर
खूंटी जिले के अंतर्गत तोरपा प्रखंड की उकड़ीमाड़ी पंचायत में भी एक ऐसा गांव है जहां सरकार की कोई योजना नहीं पहुंच पाई है। इस कारण गांव के लोग पलायन को मजबूर होते जा रहे हैं। गांव में एक स्वास्थ्य केंद्र तो है लेकिन अक्सर चिकित्सकों का अभाव रहता है।
चिकित्सा वाहन की जगह खाट
बोकारो जिला अंतर्गत गोमिया प्रखंड की तिलैया पंचायत में दनिया रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर दूर हलवैय गांव है, जो पहाड़ की तलहटी पर बसा है। इस गांव की आबादी लगभग 250 है। गांव में सिर्फ दो हैंंडपंप हैं और उस पानी में भी लौह की मात्रा अधिक होने के कारण लोग पानी का उपयोग नहीं कर पाते हैं। सरकार द्वारा एक कुएं का निर्माण कराया गया है, लेकिन उसमें पानी ही नहीं होता है। ग्रामीणों को पीने का पानी डेढ़ किलोमीटर दूर भितिया नाला से लाना पड़ता है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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