असम के करीमगंज जिले से करीब 200 साल पुराने शिव-पार्वती और लक्ष्मी-नारायण मंदिर में आग लगाने की घटना प्रकाश में आई है। हिन्दू मंदिर को जलाने का कुकृत्य कुछ इस्लामिक कट्टरपंथियों ने किया है। इस घटना के बाद से इलाके में तनाव फैल गया है।
बताया जाता है कि ये घटना 7 नवंबर की रात की है, जब कट्टरपंथियों ने मंदिर में आग लगाई। रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय वनवासी लोगों को सुबह इस जघन्य घटना के बारे में पता चला। उन्होंने रतबारी इलाके में स्थित मंदिर में जाकर देखा तो उनकी पूजा के लिए बचा एकमात्र प्राचीन मंदिर जल चुका था। जानकारी मिली है कि जिले के दमसोरा गांव के जंगल के अंदर मंदिर में सैकड़ों वर्षों से वनवासी देवताओं की पूजा करते आ रहे हैं। यहां के स्थानीय लोगों ने कहा कि मंदिर की स्थापना 1800 के दशक की शुरुआत में गांव के देवी राम बर्मन ने की थी।
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पीढ़ियों से यह पवित्र स्थान वनवासियों की पूजा का केंद्र रहा है। गांव की परेशान महिलाओं का आरोप है कि उपद्रवियों ने वनवासी हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए जान-बूझकर मंदिर में आग लगाई है और उन्होंने दोषियों के लिए उचित सजा की मांग की है। ग्रामीणों ने बताया कि हाल ही में प्रशासन द्वारा मुस्लिम अतिक्रमणकारी परिवारों को वन क्षेत्र से बेदखल कर दिया गया था। लेकिन हटाए जाने के बाद फिर से उन्होंने जंगल के अन्य हिस्सों में अतिक्रमण कर लिया।
दरअसल, मुस्लिम समुदाय को वनवासियों के विशेष प्रावधान के तहत वन क्षेत्र में रहने की अनुमति दी गई थी। मुस्लिम अतिक्रमणकारियों का वनवासी ग्रामीणों के साथ कई बार झगड़ा हुआ। ग्रामीणों को मंदिर परिसर में पेट्रोल के तीन खाली प्लास्टिक गैलन मिले और उन्हें संदेह है कि बदमाशों ने सदियों पुराने मंदिर को जलाने के लिए पेट्रोल का इस्तेमाल किया।
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पैरा मिलिट्री फोर्स तैनात
बदमाशों द्वारा मंदिर को जलाए जाने के बाद जिला आयुक्त (डीसी) और पुलिस अधीक्षक (एसपी) सहित पुलिस अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे। एसपी पार्थ प्रतिम दास ने बताया कि व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने के लिए अर्धसैनिक बल और पुलिस बटालियन की एक टुकड़ी तैनात की गई है। प्रशासन जल्द ही अतिक्रमणकारियों को हटाना शुरू कर देगा। मुस्लिम अतिक्रमणकारियों के पूरी तरह से यहां से हटाए जाने तक सुरक्षा बलों की यहां पर तैनाती रहेगी। डीसी मृदुल यादव ने कहा कि बेदखली एक महीने पहले की गई थी, लेकिन उन्होंने फिर से कुछ अस्थायी संरचनाएं बनाईं और जंगल के अन्य हिस्सों पर अतिक्रमण कर लिया। अगले 15 दिनों में नये सिरे से निकासी करने का निर्देश अंचलाधिकारी को दिया गया है।
वनवासी वन विभाग की अनुमति से सदियों से गांव में निवास कर रहे हैं। हालाँकि, हाल के वर्षों में तनाव बढ़ गया है क्योंकि मुस्लिम समुदाय ने जबरन वन भूमि पर अतिक्रमण करना शुरू कर दिया है। जिला प्रशासन द्वारा बेदखली के बाद भी, वे जंगल के अन्य हिस्सों पर अतिक्रमण कर रहे हैं। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि समुदाय अक्सर वनवासी लोगों के साथ झगड़े में लगा रहता है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि हालिया बेदखली का बदला लेने के लिए उन्होंने मंदिर में आग लगा दी। लेकिन आगजनी की घटना के पीछे का कारण पुलिस जांच में ही सामने आएगा।
इस बीच इलाके की वनवासी महिलाएं जले हुए मंदिर और शिव-पार्वती व लक्ष्मी-नारायण की मूर्तियां देख कर रोने लगीं. उन्होंने उचित जांच और बदमाशों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की। इलाके में हालात अभी भी तनावपूर्ण हैं क्योंकि वनवासी लोगों का मानना है कि यह सनातन धर्म और उनकी मान्यताओं पर सीधा हमला है।
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