नैनीताल। उत्तराखंड के जंगलों में यूपी से आए कट्टरपंथी मुस्लिम न सिर्फ जनसंख्या असंतुलन पैदा कर रहे हैं बल्कि वे जंगलों में बेशकीमती हरे पेड़ भी काट रहे हैं। यह इमारती लकड़ी बाजार में बिक रही है और पेड़ों की शाखाएं काटकर जलौनी लकड़ी के रूप में बाजारों में बिक रही है।
उत्तराखंड में जंगल की लकड़ी काटने और उसे लॉट बनाकर नीलाम कर बेचने का जिम्मा उत्तराखंड वन विकास निगम को है, लेकिन क्या जितनी लकड़ी वन निगम बेच रहा है उससे ज्यादा बाजार में चोरी की लकड़ी बाजार में बिक रही है? पिछले दिनों जौनसार बावर इलाके में टोंस, कालसी वन प्रभाग में देवदार की लकड़ी के स्लीपर बरामद हुए, जो चोरी से काटे गए थे। बताया जाता है कि देवदार पेड़ों का अवैध कटान पिछले कई सालों से हो रहा है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भी पेड़ों के अवैध कटान के मामले की जांच सीबीआई कर रही है, देहरादून के आसपास गोल्डन फॉरेस्ट और टी गार्डन क्षेत्र में पेड़ों के अवैध कटान के मामले पिछले कुछ समय से सुर्खियो में हैं।
ऐसी जानकारी मिल रही है कि उत्तराखंड के जंगलों में मुस्लिम गुज्जरों के साथ साथ यूपी के मुस्लिम तस्करों की घुसपैठ हो चुकी है। ये लोग जंगलों में खैर, शीशम, साल, देवदार, सुरई, चीड़, हल्दु प्रजाति की इमारती लकड़ियों की तस्करी में लिप्त है।
जानकारी के मुताबिक ये लकड़ी तस्कर आधुनिक कट्टर लेकर मोटर बाइक में अंदर जाते हैं और पेड़ों को जड़ के पास से काट आते हैं। गिरे पेड़ की टहनियों की छ्टनी कर दी जाती है और ये लकड़ी साइकिलों पर लादकर जंगलों के पास के गांवों में एकत्र की जाती है और वहां से बाजारों में आकर बिक जाती है। जंगल में जो पेड़ गिराए जाते हैं उनके तनों को तीन से छह फीट के गिल्टे बनाकर बाइक अथवा वन कर्मियों के साथ मिलीभगत करके छोटे बंद बॉडी के वाहनों के जरिए आरा मशीनों तक पहुंचा कर उनका हाथोंहाथ चिरान कर दिया जाता है।
उत्तराखंड में करीब 400 आरा मशीनों का स्वामित्व भी मुस्लिम लोगों के पास है और इनके गुर्गे जंगलों में लकड़ी तस्करी में लिप्त रहे हैं। पिछले दिनों तराई वेस्ट फॉरेस्ट डिवीजन के डीएफओ प्रकाश आर्य ने ऐसे मामलों को पकड़ा भी था।
उत्तराखंड के सत्तर फीसदी हिस्से में जंगल है और बेशकीमती लकड़ी का खजाना है। जिसकी सुरक्षा वन अधिकारियों और वन कर्मियों के हाथो में है। वन विभाग में शायद ही कोई ऐसा अधिकारी होगा जिसने पेड़ों की अवैध कटाई न कराई हो। बड़े-बड़े अधिकारियों पर इस समय हरे पेड़ों की अवैध कटाई के आरोप में जांच पड़ताल चल रही है। ये जांच भी दबाई जाती रही है क्योंकि वन महकमा ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने लिया संज्ञान
नैनीताल हाई कोर्ट ने कालाढूंगी से बाजपुर के बीच चल रहे पेड़ों के अवैध कटान के मामले में राज्य सरकार से एक सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने को कहा है। उच्च न्यायालय ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद वशिष्ठ को सीनियर काउंसल और हर्षपाल शेखों को एमेकस क्यूरी (न्यायमित्र) बनाया है। सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत मौजूद रहे डी.एफ.ओ.ने रिकार्ड पेश किये जिससे उच्च न्यायालय असंतुष्ट दिखा।
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खण्डपीठ ने पाया कि वन विभाग के ऑफिसियल रजिस्टर में जो चालान दर्ज किए गए थे वे सब एक ही व्यक्ति और पैन द्वारा दर्ज किए गए थे। न्यायालय में आज डीएफओ तराई हिमांशु बागरी, डीएफओ तराई प्रकाश आर्य और रेंजर बन्नाखेड़ा लक्ष्मण मरतोलिया उपस्थित हुए।
बीते 30 अकटूबर को न्यायालय ने डीएफओ से पूछा था कि ये पेड़ किस नियमावली के तहत काटे जा रहे हैं ? चेकिंग पोस्ट पर कितने वाहनों का चालान किया गया, ये न्यायालय को बताएं ? खंडपीठ ने यह भी कहा कि चेकिंग पोस्ट में नियुक्त कर्मचारी वाहनों की चेकिंग किये बगैर ही उन्हें जाने दे रहे हैं। सुनवाई पर न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ग्रामीण प्रत्येक दिन साइकिल पर लगभग दो कुंटल लकड़ी लदी साइकिल को धक्का मारकर ले जा रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि खाना बनाने के लिए प्रत्येक दिन कितनी लकड़ी की जरूरत होती है ? हमने देखा है कि उस क्षेत्र में हर घर के सामने कई कुंटल लकड़ियां जमा कर रखी गई है। क्या यह वनों का विदोहन नहीं है ? अधिकारी इस पर कोई कदम नहीं उठा रहे हैं। मामले के अनुसार न्यायमूर्ति शरद शर्मा ने दिल्ली जाते वक्त उस क्षेत्र में हो रहे पेड़ो के अवैध कटान का स्वतः संज्ञान लिया, जिसपर आज मामले की वास्तविक स्थिति को जानने के लिए सम्बंधित क्षेत्र के डी.एफ.ओ.और अन्य अधिकारियों को तलब किया गया था।
सेटेलाइट तस्वीरें बता देती हैं पेड़ों का अवैध कटान
उत्तराखंड में जंगल में कहां-कहां हरे पेड़ों का कटान हो रहा है, ये साक्ष्य वन विभाग को सेटेलाइट तस्वीरें बता देती हैं। ऐसे कई प्रमाण वन विभाग के उच्च अधिकारियों के पास मौजूद है। अवैध पेड़ों की कटाई की जांच करने वाले अधिकारी भी इसी आधार पर अपनी जांच आगे बढ़ाते हैं, उसके बाद मौके पर जाते हैं।
बड़ा सवाल ये है कि जांच के बाद भी प्रभावी कार्रवाई क्यों नही की जाती ? क्यों नहीं उस इलाके के डीएफओ पर गाज नही गिरती ? क्या नीचे से ऊपर तक जंगल के सफाए के खेल चल रहा है ?
सीएम धामी का बयान
हमने फॉरेस्ट के अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि जंगल काटने वालों को बख्शा नहीं जाए, इन पर गैंगस्टर, रासुका भी लगाएं। हरे पेड़ हमारी धरोहर हैं, हमने टोंस कालसी मामले में एसआईटी जांच के आदेश दिए हैं। हाई कोर्ट के निर्देशों का पालन किया जाएगा।
टिप्पणियाँ