1989 में जब तत्कालीन दक्षिण बिहार (वर्तमान झारखंड) के धनबाद जिले के रतनपुर तुंडी नामक स्थान से 60 गांवों में ग्राम शिक्षा मंदिर (एकल विद्यालय) का सफल प्रयोग हुआ, तब महिलाएं घरों से बाहर नहीं निकलती थीं। पर दो वर्ष के भीतर ही दृश्य बदला। धीरे-धीरे गांवों में एकल विद्यालय के लिए आचार्य के रूप में महिलाएं एवं युवतियां स्वेच्छा से आगे आने लगीं।
जब से केंद्र सरकार ने लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओें को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून बनाया है, तब से महिला सशक्तिकरण की बड़ी चर्चा हो रही है। वास्तव में यह कानून भारत की महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। लेकिन हमें यह भी पता होना चाहिए कि सरकार के अलावा कुछ ऐसे संगठन भी हैं, जो निरंतर महिलाओं को सशक्त बना रहे हैं। इनमें से एक है—एकल अभियान। सुदूर ग्रमीण क्षेत्रों में विद्यालय संचालक के अतिरिक्त यह संगठन 35 वर्ष से महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक रूप से सशक्त बना रहा है।
1989 में जब तत्कालीन दक्षिण बिहार (वर्तमान झारखंड) के धनबाद जिले के रतनपुर तुंडी नामक स्थान से 60 गांवों में ग्राम शिक्षा मंदिर (एकल विद्यालय) का सफल प्रयोग हुआ, तब महिलाएं घरों से बाहर नहीं निकलती थीं। पर दो वर्ष के भीतर ही दृश्य बदला। धीरे-धीरे गांवों में एकल विद्यालय के लिए आचार्य के रूप में महिलाएं एवं युवतियां स्वेच्छा से आगे आने लगीं। एकल के संस्थापकों में से एक और इन दिनों एकल संस्थान की चेयरपर्सन मंजु श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘वर्तमान में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से लेकर कछार तक 1,00,000 से अधिक गांवों में एकल विद्यालय चल रहे हैं। इनमें 80 से 90 प्रतिशत तक महिला कार्यकर्ता हैं।’’
जम्मू संभाग के कठुआ भाग का कठुआ अंचल आज ‘महिला अंचल’ कहलाता है। अंचल के समस्त कार्यकारिणी पद, 16 संचों में संच प्रमुख, 480 एकल विद्यालयों में आचार्या; सभी पदों को महिलाएं सुशोभित कर रही हैं। जम्मू की पूजा शर्मा एकल की बहुत अच्छी कार्यकर्ता हैं। उनसे प्रेरित होकर अन्य बहनें भी कार्यकर्ता बन रही हैं। कश्मीर घाटी में भी अनेक पर्दानशीं बहनें आचार्या हैं। कुछ समय पहले इन कार्यकर्ताओं के कार्यों को देखने के लिए देश-विदेश से लगभग 100 कार्यकर्ता श्रीनगर गए थे। ये कार्यकर्ता सुदूर गांवों में गए। हर जगह उन्हें बुर्काधारी कार्यकर्ता मिलीं। ये सब इस बात से चकित थे कि मुस्लिम महिलाएं एकल विद्यालयों का संचालन कर रही हैं।
एकल अभियान में बहनों ने 15-16 वर्ष की आयु में अपने गांव के एकल विद्यालय में आचार्या पद से प्रवेश किया और वर्तमान में वे राष्ट्रीय दायित्वों का भी निर्वाह कर रही हैं। अधिकांश बहनें 12 से 18 वर्ष तक लगातार एकल संगठन की सेवाव्रती कार्यकर्ता के कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। कई कार्यकर्ताओं ने संगठन में विभिन्न स्तर पर दायित्व निर्वाह करते हुए स्नातक तक की पढ़ाई की। इसका लाभ एकल अभियान को ही मिल रहा है। धीमाजी (असम) की प्रियंका डिहिंगिया गत 18 वर्ष से एकल में कार्यरत हैं। पहले उन्हें उल्फा और बोडो उग्रवादियों की चेतावनी मिलती थी। इसके बावजूद उन्होंने एकल का कार्य किया। अब वे असम क्षेत्र में ग्रामोत्थान के कार्य देख रही हैं। वे जड़ी-बूटियों की भी अच्छी जानकार हैं। जिस गांव में जाती हैं, लोगों को जड़ी-बूटी की भी जानकारी देती हैं। इससे इनका कार्य आसान हो जाता है।
नूरपुर (हिमाचल प्रदेश) की मोनिका बरवाल इन दिनों आरोग्य सेविका का दायित्व निभा रही हैं। पहले ये एकल विद्यालय में शिक्षिका थीं। कार्य करते-करते इन्हें देश-सेवा की ऐसी धुन चढ़ी कि अविवाहित रहने का निर्णय ले लिया। अब इनके लिए पूरा देश ही अपना परिवार हो गया है। इसी कड़ी में कुल्लू- मनाली की जयश्री भी हैं। वे गत 18 वर्ष से एकल की सेवाव्रती हैं। एकल अभियान को सफल बनाने के लिए वे लगातार पहाड़ों पर प्रवास करती हैं। उत्तर प्रदेश की सविता भी पहले एक शिक्षिका के नाते एकल से जुड़ीं। अब वे राष्ट्रीय स्तर पर एकल का काम देख रही हैं। असम की प्रिया और दक्षिण हिमाचल की करुणा ठाकुर ने व्यास कथाकार बनना पसंद किया। ये दोनोें अपने मधुर कंठ से राम और कृष्ण की कथा का वाचन करती हैं। एकल सुर-ताल सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए इन दोनों का अमेरिका में भी अभिनंदन हुआ है।
ये दोनों हिम्मत और विश्वास के साथ कार्य कर रही हैं। पूर्वी मेदिनीपुर (पश्चिम बंगाल) की दीप्ति मोइती ने यह सिद्ध कर दिया है कि महिलाएं किसी से पीछे नहीं हैं। वे पश्चिम बंगाल के गांव-गांव में प्रवास कर एकल विद्यालयों का विस्तार कर रही हैं। उत्तराखंड की शीला मौर्या और पूजा मेहर प्राथमिक शिक्षा की श्रेष्ठतम प्रशिक्षण कार्यकर्ता मानी जाती हैं। इन कार्यकर्ता बहनों की बढ़ती सहभागिता से उल्लेखनीय परिणाम सामने आ रहे हैं। गांवों की बहनों के मन में पढ़ने व पढ़ाने की महत्वाकांक्षा जाग्रत हुई है। फलत: बाल विवाह में बहुत कमी आ रही है। उसी अनुपात में शिशु मृत्य दर भी घटने लगी है। एकल अभियान के इन प्रयत्नों से गांवों में महिलाओं की स्थिति में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया है।
एकल अभियान के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा के साथ ही स्वास्थ्य शिक्षा व आरोग्य सेवा का कार्य भी उसी क्रम में दूरस्थ गांवों में प्रारंभ किया गया है। गांवों में आरोग्य सेविकाएं स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता फैलाने के साथ ही स्वस्थ पौष्टिक भोजन, स्वच्छता, पोषण वाटिका, सोखता गड्डा, कचरा गड्डा आदि का भी महत्व ग्रामीण महिलाओं को समझाती हैं। ग्राम विकास शिक्षा में गोमूत्र तथा गोबर से खाद बनाना, कीटनाशक बनाना जैसे कृषि विकास के कार्यों में भी ग्रामीण बहनें अग्रणी भूमिका निभाती हैं। संगठन ने इन बहनों को प्यार, प्रोत्साहन और आशीर्वाद दिया तो इन्होंने एकल को ही अपना जीवन लक्ष्य बना लिया। कह सकते हैं कि एकल अभियान महिला सशक्तिकरण में बड़ी भूमिका निभा रहा है।
Leave a Comment