भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी का एक भाषण बहुत चर्चा में रहता है। और वह भाषण है उनके गजनी जाने के अनुभव का। जब 1978 में देश में श्री मोरार जी देसाई की गठबंधन की सरकार थी और श्री अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे। सितम्बर 1978 में वह अफगानिस्तान के दौरे पर गए और उन्होंने गजनी जाने की इच्छा जताई।
वह अपने भाषण में कहते हैं कि अफगानिस्तान में जो भी थे वह सभी चौंक गए। वह सभी इसलिए चौंक गए क्योंकि गजनी तो कोई पर्यटन स्थल नहीं है, वहां पर कुछ नहीं है, उजाड़ है। श्री अटल जी ने यह घटना सावरकर जयन्ती पर वर्ष 1996 में साझा की थी। उन्होंने कहा कि मैं अधिकारियों को पूरी बात नहीं बता सकता था कि गजनी मेरे दिल में कहीं कांटे की तरह चुभ रहा है। जब से मैंने उस लुटेरे की कहानी सुनी, कि वह कहीं गजनी से आया और सोमनाथ मंदिर तोड़ गया!”
श्री अटल जी ने करोड़ों देशवासियों के साथ ही उन अफगानियों के भी दिल की बात कही थी जिनके दिल में वाकई गजनी कांटे की तरह चुभता है। तभी तो गजनी एक छोटा सा गाँव है और कुछ भी वहां नहीं है। आज भी गजनी का कोई अस्त्तित्व वहां नहीं है, जहाँ से एक लुटेरा भारत को लूटने आया था, मगर भारत में कुछ लोगों द्वारा अभी भी गजनी को नाम और पहचान दिए जाने की होड़ है।
जो गजनी भारत के मंदिरों को लूटकर भारत की सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहचान मिटाने का सपना लिए था और जिसका नाम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई के दिल में कांटे की तरह चुभता है उसी गजनी से आए लुटेरे को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री एक योद्धा बताते हुए यह भी लिखते हैं कि उसका उद्देश्य केवल मंदिर लूटना था और मथुरा के वैभव को देखकर वह गजनी जाते समय कई कारीगरों को लेकर गया था, जिससे उसका गजनी भी केन्द्रीय एवं पश्चिमी एशिया के महान शहरों में से एक हो जाए।
मगर यह नहीं हो सका, गजनी आज सुनसान और उजाड़ है और जिसे उजाड़ने के लिए सारे दमखम लगा दिए वह मथुरा एवं सोमनाथ आज भी अपनी पहचान के साथ खड़े हैं। सारा संघर्ष और पीड़ा उसी पहचान की है, जिससे छुटकारा हर स्वाभिमानी नागरिक पाना चाहता है, क्योंकि आक्रान्ताओं के नाम उस पीड़ा को जीवित रखते हैं, जिनसे उबरने का प्रयास समाज करता है। तभी भारत के राष्ट्रपति के उद्यान का नाम मुगल गार्डन से बदलकर अमृत उद्यान कर दिया गया, जिससे समाज को जोड़ने का अमृत प्रदान हो।
मगर भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी ऐसा है जिसे अपनी वही गुलामी की पहचान पसंद है और यदि उस गुलामी की पहचान पर प्रहार किया जता है तो वह विरोध में आ जाता है। वह समाज को भड़काने लगता है और उस पहचान से जोड़ने लगता है जिससे छुटकारा पाने का प्रयास आज कट्टरपंथियों को छोड़कर सभी कर रहे हैं। ऐसा ही एक मामला हाल ही में तिरुवनंतपुरम से सामने आया जब साउथ इन्डियन हिस्ट्री कांग्रेस के 42वें वार्षिक सत्र में उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदु ने कहा कि “ऐतिहासिक जानकारी को झूठा करने का प्रयास किया जा रहा है और समाज के कुछ वर्गों के प्रतिनिधित्व को एक बहुत ही सुनियोजित तरीके से हटाया जा रहा है। अल्पसंख्यकों एवं पिछड़े वर्ग के लोगों को या तो विकृतीकरण या फिर पूरी तरह से मिटाकर और भी हाशिये पर धकेला जा रहा है!”
उन्होंने कहा कि “एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों में मुगल वंश के सन्दर्भों को हटा दिया गया है और मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत गार्डन कर दिया गया है। सभी शहरों में मुस्लिमों के नाम वाले स्थान बदले जा रहे हैं और अब सबसे नया कदम है एनसीईआरटी टेक्स्ट में देश का नाम बदलना।”
मंत्री यहीं नहीं रुकीं उन्होंने यह तक कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी हाशिये पर धकेला जा रहा है और हिन्दू राजाओं की विजय की कहानियों को शामिल किया जा रहा है और वास्तविक इतिहास के स्थान पर झूठी कहानियों को दर्ज किया जा रहा है!”
इस पूरे संबोधन में मंत्री जी की पीड़ा यह है कि लोग उन पुस्तकों को क्यों पढ़ रहे हैं, जिन्हें जानबूझकर वाम विचारधारा वाले कथित इतिहासकारों ने सामने नहीं आने दिया। उन्होंने कहा कि असली इतिहास के स्थान पर फैब्रिकेटेड स्टोरीज अर्थात गढ़ी हुई कहानियां लिखी जा रही हैं, तो वह कभी इन बातों का उत्तर नहीं दे सकती हैं कि आखिर इतिहास में हुमायूं और रानी कर्णावती वाली झूठी कहानी क्यों जोड़ी गयी? तमाम घटनाएं ऐसी हैं जो वाम विचारधारा वाले इतिहासकारों ने जोड़ी हैं। और उन तथ्यों को नकारा है जो स्वयं मुगल बादशाहों ने और उस समय के यात्रियों ने या दरबार में रहने वाले दरबारियों ने अपनी पुस्तकों में दर्ज किए हैं।
जहां तक नाम बदलने की बात है तो नाम से ही व्यक्ति की पहचान होती है और यदि किसी स्मारक का नाम ही उस नाम पर हो जो बार-बार पीड़ाओं को उकेरे तो समाज एक सतत नैराश्य में चला जाता है। औरंगजेब रोड आदि से क्या उस औरंगजेब की याद नहीं आती जिसने अपने अब्बा शाहजहाँ को कैद किया, उन्हें प्रताड़ित किया और अपने बड़े भाई दारा शिकोह, जो एक उदारवादी मुस्लिम था और सभी को साथ लेकर चलना चाहता था उसका सिर काटकर थाल में सजाकर अपने अब्बा के पास भेजा?
क्या बख्तियारपुर से उस आग की ताप अभी तक नहीं अनुभव होती जिसने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर राख कर दिया था? यह सब इतिहास है, कहानियां नहीं! कहानियां तो वह है जो इतिहास के नाम पर रोमिला थापर जैसे एकतरफा सोच वालों ने लिखीं। जिसमें मुगलों की तमाम अय्याशियों और अत्याचारों के साथ-साथ पहचान पर अतिक्रमण को भी सहज बना दिया गया।
ऐसे में श्री अटल जी का भाषण कि गजनी आज भी दिल में कांटे की तरह चुभता है बहुत याद आता है क्योंकि वाकई में अभी तक हम पर हुए अत्याचारों को वीरता कहकर हमें ही अपमानित किया जाना वास्तव में बहुत चुभता है। मगर आर बिंदु जैसी मंत्रियों को यह पीड़ा समझ नहीं आएगी, क्योंकि ऐसे लोगों की दृष्टि में दाराशिकोह को मारने वाले औरंगजेब के नाम पर बनी सड़क का नाम डॉ एपीजे अब्दुल कलाम रोड करना मुस्लिमों को हाशिये पर धकेलना है, तो क्या उनके लिए आत्मबोध एवं भारतीय पहचान वाले मुस्लिम इंसान नहीं हैं?
इतिहास निष्पक्ष होता है वह औरंगजेब के साथ-साथ दारा शिकोह की भी कहानी कहता है और आतताइयों का कुशलतापूर्वक सामना करने वाले हिन्दू राजाओं की भी! उन कहानियों को सामने लाना फैब्रिकेटेड स्टोरीज नहीं बल्कि सत्य सामने लाना है, क्योंकि इतिहास का अर्थ ही निष्पक्षता एवं सत्य है !
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