31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के हिंसा भड़क गई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में 2,800 और देश के अन्य भागों में 3,350 सिखों की हत्या कर दी गई थी। जहां भी सिख मिले, वहीं उनकी हत्या कर दी गई। कहा जाता है कि सैकड़ों घटनाओं के तो मुकदमे भी दर्ज नहीं हुए थे।
वर्ष 1984 में नवंबर की एक और दो तारीख काले अध्याय के रूप में दर्ज है। पूरे देश में सिखों का नरसंहार हुआ था। इन तारीखों के बाद भी सिखों पर हमले जारी रहे। कांग्रेस के नेताओं के इशारे पर सिखों को मौत के घाट उतारा गया। घरों और दुकानों को लूटकर आग लगा दी गई। हत्यारों को पकड़ा तक नहीं गया था। केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार नहीं थी, तब इस नरसंहार की जांच शुरू हुई।
31 अक्टूबर, 1984 को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दिल्ली स्थित उनके आवास पर हत्या कर दी गई। उन्हीं के अंगरक्षक सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने हत्या की थी। ये दोनों सिख समुदाय से थे। इंदिरा की हत्या ऑपरेशन ब्लू स्टार की प्रतिक्रिया में की गई थी। इंदिरा गांधी के आदेश पर ऑपरेशन ब्लू स्टार 3 से 6 जून, 1984 को अमृतसर स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर को खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त करवाने के लिए चलाया गया था। दरअसल पंजाब में उस वक्त भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सिर उठा रही थीं, जिन्हें पाकिस्तान से समर्थन मिल रहा था।
31 अक्टूबर, 1984 के बाद हालात कैसे थे, इसे बताने के लिए एक ही घटना काफी है। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जब इंदिरा को देखने एम्स जा रहे थे, उस वक्त उनकी गाड़ी पर भी हमला हुआ। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘मेमोरिज ऑफ ज्ञानी जैल सिंह’ में लिखा है, ‘‘… मैंने अस्पताल जाने का निर्णय लिया। मैंने रास्ते में देखा कि लोग आगजनी कर रहे हैं। कुछ लोग हाथों में जलते हुए बांस लेकर घूम रहे थे, लेकिन मैं आगे होने वाली घटनाओं के बारे में सोच नहीं सका।’’
31 अक्टूबर को ही राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ तो ले ली, लेकिन फिर भी देशभर में सिखों के विरुद्ध हिंसा होती रही। इसका सबसे बड़ा कारण था, उनका एक बयान। इसमें उन्होंने कहा था, ”एक बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती थोड़ी हिलती है।” यानी उन्होंने सिखों के नरसंहार को एक तरह से उचित ठहराने का प्रयास किया था। इस कारण कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता खुलेआम हिंसा कर रहे थे।
टिप्पणियाँ