स्कूली पाठ्यक्रम में प्राचीन इतिहास के स्थान पर ‘शास्त्रीय इतिहास’ शुरू करने की भी सिफारिश
स्कूली पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा गठित उच्च-स्तरीय समिति ने कक्षा 1 से 12 तक सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में ‘इंडिया’ का नाम बदल कर ‘भारत’ करने और प्राचीन इतिहास की जगह ‘भारतीय इतिहास का शास्त्रीय काल’ शुरू करने की सिफारिश की है। भारत इस राष्ट्र का प्राचीन नाम है, जिसका उल्लेख विष्णु पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी है। इतिहासकारों ने विष्णु पुराण के 7,000 वर्ष पुराने होने का आकलन किया है।
समिति के अध्यक्ष सी.आई. इसाक ने कहा है, ‘इंडिया’ का प्रयोग आम तौर पर ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना और 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद ही किया जाने लगा।’ इसलिए समिति ने सर्वसम्मति से सिफारिश की है कि पाठ्यपुस्तकों में इसका नाम ‘भारत’ किया जाना चाहिए।
सामाजिक विज्ञान समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर सी.आई. इसाक एक प्रतिष्ठित इतिहासकार और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित विद्वान हैं। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इस बदलाव को आगामी शैक्षणिक वर्ष से पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकेगा। हालांकि इसके कार्यान्वयन के संबंध में अंतिम निर्णय एनसीईआरटी पर निर्भर है।
यदि यह प्रस्तावित परिवर्तन क्रियान्वित होता है, तो यह शैक्षिक सामग्री में देश के नाम की प्रस्तुति में बदलाव के साथ अकादमिक सामग्री के संदर्भ में ‘इंडिया’ बनाम ‘भारत’ के उपयोग के बिंदु पर चल रही बहस को भी संबोधित करता है। समिति की यह सिफारिश भारत के शैक्षिक ढांचे के भीतर विकसित हो रहे कथानक और इसे सांस्कृतिक व भाषाई विचारों के साथ जोड़ कर प्रस्तुत करने के निरंतर प्रयासों को भी दर्शाती है।
समिति ने आक्रमणकारियों के विरुद्ध महत्वपूर्ण भारतीय विजयगाथाओं को पाठ्यक्रम के एक प्रमुख घटक के रूप में शामिल करने की भी सिफारिश की है। प्रो. इसाक ने कहा, ‘‘वर्तमान में पाठ्यपुस्तकों में हमारी विफलताओं का तो उल्लेख है, लेकिन मुगलों और सुल्तानों पर हमारी जीत का नहीं। फिलहाल एनसीईआरटी की पुस्तकों में स्वतंत्रता के बाद के इतिहास का कोई उल्लेख नहीं है, इसलिए हमने सुझाव दिया है कि 1947 से लेकर अब तक हुई ऐतिहासिक घटनाओं को भी पेश किया जाना चाहिए और स्वतंत्रता से पहले के लिए आवंटित घंटों की संख्या कम की जा सकती है।’’
एनसीईआरटी ने चंद्रयान-3 पर केंद्रित दस विशेष मॉड्यूल विकसित किए हैं, जो मिशन के वैज्ञानिक, तकनीकी, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं पर एक व्यापक दृष्टि डालते हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने कहा है कि इन मॉड्यूल्स में विज्ञान व तथ्यात्मक जानकारी का कड़ाई से पालन किया गया है। पौराणिक कथाओं के साथ विज्ञान का मिश्रण बिल्कुल नहीं होने दिया गया है। मॉड्यूल में महिला सशक्तिकरण, कोविड प्रबंधन, स्थिरता, लोकतंत्र की जननी के रूप में भारत का महत्व, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 और चंद्रयान-3 की उपलब्धियों सहित विषयों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है।
चंद्रयान-3 परियोजना में शामिल वैज्ञानिकों की भावनात्मक यात्रा और टीम भावना को पहचानते हुए एनसीईआरटी ने इन मॉड्यूल को तैयार करने में बहुत सावधानी बरती है। सामग्री में छात्रों को प्रेरित करने और कक्षाओं में अनुभवात्मक शिक्षा की सुविधा के लिए ग्राफिक्स, तस्वीरें, चित्र, गतिविधियां और विचारोत्तेजक प्रश्न शामिल किए गए हैं। मॉड्यूल चंद्रयान-3 मिशन में इसरो वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका का भी उल्लेख किया गया है। इनमें डॉ. विक्रम साराभाई, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, डॉ. एस. सोमनाथ, डॉ. के. सिवन, नंदिनी हरिनाथ और अन्य वैज्ञानिकों का योगदान शामिल है। यह मॉड्यूल एनसीईआरटी की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
‘‘वर्तमान में पाठ्यपुस्तकों में हमारी विफलताओं का तो उल्लेख है, लेकिन मुगलों और सुल्तानों पर हमारी जीत का नहीं। फिलहाल एनसीईआरटी की पुस्तकों में स्वतंत्रता के बाद के इतिहास का कोई उल्लेख नहीं है, इसलिए हमने सुझाव दिया है कि 1947 से लेकर अब तक हुई ऐतिहासिक घटनाओं को भी पेश किया जाना चाहिए और स्वतंत्रता से पहले के लिए आवंटित घंटों की संख्या कम की जा सकती है।’’ – प्रो. इसाक
समिति ने एकमत से देश की उपलब्धियों, इतिहास और संस्कृति के शिक्षण को बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान प्रणाली के बारे में अतिरिक्त सामग्री शामिल करने की भी सिफारिश की है।
एनसीईआरटी की पुस्तकों में प्रस्तावित बदलाव की पृष्ठभूमि में वह राष्ट्रीय बहस भी है, जो सितम्बर से शुरू हुई थी। तब केंद्र सरकार ने जी-20 रात्रिभोज के निमंत्रण में ‘प्रेसिंडेंट आफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसिडेंट आफ भारत’ का प्रयोग किया था।
एनसीईआरटी अपनी नई पाठ्यपुस्तकें बनाने के अंतिम चरण में है। एनसीईआरटी की एक 19 सदस्यीय समिति कक्षा 3 से 12 के लिए स्कूल पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण सामग्री को राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ) के साथ एकीकृत करने के लिए बनाई गई है। इस समिति में फील्ड्स मेडलिस्ट मंजुल भार्गव, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय, संस्कृत भारती के संस्थापक सदस्य चामू कृष्ण शास्त्री, सुधा मूर्ति और प्रसिद्ध गायक व गीतकार शंकर महादेवन शामिल हैं।
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