राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ प्रचारक और पूर्व अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री रंगाहरि जी का निधन हो गया। रविवार सुबह कोचीन के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 93 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से बीमार थे। रंगाहरि जी 1991 से 2005 तक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख थे। जीवन के अंतिम क्षणों तक मां भारती की सेवा में समर्पित रहे।
श्रद्धेय रंगा हरि जी (हरि अट्टन) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ऐसे प्रचारक थे जिन्होंने सहज, साधारण शब्दों में स्वयंसेवकों का बौद्धिक मार्गदर्शन किया। व्यावहारिक बातों की जानकारी उदाहरणों के साथ स्पष्ट करते थे। उनके स्नेहिल मार्गदर्शन स्वयंसेवकों ने अनुभव किया है। आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह हमेशा राष्ट्र के प्रति समर्पित रहे। जीवन का हर क्षण नि:स्वार्थ भाव से माँ भारती की सेवा में समर्पित किया। सांस्कृतिक और राष्ट्रीय विचारों से सशक्त वैभवशाली राष्ट्र के निर्माण में उन्होंने अथक कार्य किये।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने श्री रंगाहरि जी के निधन पर गहरा दुख प्रकट किया है। सरसंघचालक श्री मोहन भागवत और सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले जी ने शोक संदेश में कहा कि हमारे श्री रंगा हरि जी के दुःखद निधन ने हमसे एक गहन विचारक, कुशल कार्यकर्ता, व्यवहार के आदर्श, और सबसे बढ़कर एक स्नेही और उत्साहवर्धक वरिष्ठ को छीन लिया है। श्री रंगा हरि जी ने अपना जीवन पूर्ण एवं सार्थक ढंग से जीया। जब वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख थे, तब से उनके सानिध्य में आए लाखों कार्यकर्ता आज पूरे भारत में उनके निधन पर शोक मना रहे होंगे। अपने बीमारी के दिनों में, अपने अंतिम दिनों में उन्हें अपनी क्षीण होती शक्ति का पूरा एहसास था, लेकिन उन्होंने पढ़ने, लिखने और उनसे मिलने आने वाले स्वयंसेवकों को सुखद सलाह देने की अपनी गतिविधियों को बंद नहीं किया। अभी 11 अक्टूबर को ही पृथ्वी सूक्त पर उनकी टीका दिल्ली में प्रकाशित हुई। वाचाघात के बाद भी वह आगंतुकों को सुनते थे और अपने चेहरे के भावों से प्रतिक्रिया देते थे। मैं व्यक्तिगत रूप से, और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से, उनकी प्रेरक स्मृति के प्रति अपनी आदरपूर्ण संवेदना व्यक्त करता हूं और दिवंगत आत्मा की चिर शांति के लिए प्रार्थना करता हूं। ॐ शांतिः ।
हाल ही में पुस्तक का हुआ था विमोचन
हाल ही में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने दिल्ली के डॉ अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में रंगाहरि जी की पुस्तक ‘पृथ्वी सूक्त : धरती माता को एक श्रद्धांजलि’ का विमोचन किया था।
11 भाषाओं के जानकार थे
रंगाहरि जी अंग्रेजी, संस्कृत, मराठी, हिंदी, कोंकणी और मलयालम सहित 11 भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर विभिन्न भाषाओं में 60 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। रंगा हरि 1944 में नागपुर के प्रचारक पुरूषोत्तम चिंचोलकर से प्रेरित होकर संघ से जुड़े और जीवन के अंतिम समय तक संघ के समर्पित कार्यकर्ता के नाते कार्य करते रहे। वह केरल में सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल थे। उनकी एक उल्लेखनीय उपलब्धि 12-खंडों में हिंदी में प्रकाशित गुरुजी समग्र रही, जिसके वे प्रधान संपादक थे।
प्रबोधन ऋषि श्री रंगाहरि जी को पाञ्चजन्य परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि, कोटि-कोटि नमन…
टिप्पणियाँ