नई दिल्ली। भारत ने संयुक्त राष्ट्र आम सभा (यूएनजीए) में जॉर्डन की ओर से पेश गाजा में ‘शत्रुता की समाप्ति के लिए तत्काल, टिकाऊ और निरंतर मानवीय संघर्ष विराम’ का आह्वान करने वाले गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव पर मतदान नहीं किया। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने इसकी आलोचना की है। सूत्रों का कहना है कि यह फैसला इस बात से प्रेरित है कि आतंकवाद पर कोई गोलमाल बात नहीं हो सकती है।
यूएनजीए द्वारा शुक्रवार को गाजा में इजरायली बलों और हमास आतंकवादियों के बीच संघर्ष विराम के आह्वान का प्रस्ताव अपनाया गया। भारत ने इस पर हुए मतदान में भाग नहीं लिया। भारत ने जॉर्डन के प्रस्ताव पर कनाडा की ओर से पेश संशोधन के पक्ष में मतदान किया। इसमें इज़रायल पर हमास के आतंकवादी हमले की निंदा की गई थी। हालांकि यूएनजीए में दो-तिहाई वोट नहीं मिलने के कारण प्रस्ताव को अपनाया नहीं जा सका।
सूत्रों के अनुसार शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के विशेष सत्र में भारत का जोर 7 अक्टूबर को हमास द्वारा किए गए आतंकवादी हमलों की स्पष्ट निंदा किए जाने पर था। ‘प्रस्ताव पर हमारा (भारत का) वोट हमारी दृढ़ और सुसंगत स्थिति से निर्देशित था। वोट की हमारी व्याख्या इसे व्यापक और समग्र रूप से दोहराती है। आतंक पर कोई गोलमोल बात नहीं हो सकती।’
सूत्रों का कहना है कि भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के तनाव कम करने के प्रयासों और गाजा के लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने का स्वागत करता है। भारत ने भी इस प्रयास में योगदान दिया है। हम बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और चल रहे संघर्ष में नागरिकों की जान के आश्चर्यजनक नुकसान से बहुत चिंतित हैं।
उल्लेखनीय है कि भारत इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका है। भारत ने हमेशा बातचीत के जरिए दो देश समाधान का समर्थन किया है। इसमें इजरायल के साथ शांति से सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर रहने वाले एक संप्रभु और स्वतंत्र फिलिस्तीन की स्थापना है।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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