भारत में आर्थिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और अनुसंधान के क्षेत्रों में जैसा सकारात्मक रुझान देखा गया है, वह पारंपरिक रूप से नहीं देखा गया था। हालांकि भारत ने अतीत में भी विज्ञान से जुड़े अनेक क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां दर्ज की हैं किंतु सतत और सुव्यवस्थित ढंग से अनुसंधान, विकास और नवाचार को प्राथमिकता देने का चलन अब देखने में आया है।
‘मेक इन इंडिया’ को हालांकि ज्यादातर लोग विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) पर आधारित कार्यक्रम और पहल के रूप में देखते हैं लेकिन विनिर्माण के साथ-साथ उसके कई अन्य पहलू भी हैं। विनिर्माण कोई हवा में नहीं हो जाता और विनिर्माण का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अनेक बुनियादी पक्षों पर काम करना जरूरी है, जैसे निवेश को प्रोत्साहित करना तथा आधारभूत ढांचे का विकास करना। इनके बिना विनिर्माण पर केंद्रित लक्ष्य वांछित परिणाम हासिल नहीं कर सकेंगे।
इसीलिए, 25 सितंबर 2014 को शुरू किये गये ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के उद्देश्यों में आवश्यक निवेश की व्यवस्था करना, विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचें का विकास करना और भारत को विनिर्माण, डिजाइन एवं नवाचार का केंद्र बनाना है। इसका एक अहम पहलू है नवाचार को प्रोत्साहन देना क्योंकि प्रतिस्पर्धा भरे विश्व में स्वदेशी नवाचार के बिना मजबूत भविष्य की इमारत खड़ी नहीं की जा सकती। नवाचार वह ईंधन है जो निरंतर नये विचारों, प्रयोगों, संभावनाओं, अनुसंधान और आविष्कारों का रास्ता साफ करता है और विकास के नये रास्ते खोलता है। बिना नवाचार के, बाहरी ज्ञान पर निर्भर रहते हुए विकास के इंजन को स्थायी रूप से नहीं चलाया जा सकता।
पिछले कुछ वर्षों में ‘मेक इन इंडिया’ के कारण भारत में आर्थिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और अनुसंधान के क्षेत्रों में जैसा सकारात्मक रुझान देखा गया है, वह पारंपरिक रूप से नहीं देखा गया था। हालांकि भारत ने अतीत में भी विज्ञान से जुड़े अनेक क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां दर्ज की हैं किंतु सतत और सुव्यवस्थित ढंग से अनुसंधान, विकास और नवाचार को प्राथमिकता देने का चलन अब देखने में आया है। भारत में इस बात की स्वीकार्यता दिखाई देती है कि यदि हमें वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करना है तो नवाचार, अनुसंधान और विकास को प्राथमिकता बनाना ही होगा। आखिरकार देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है और 2025 के अंत तक पांच ट्रिलियन डॉलर (50 खरब) का लक्ष्य हमारे सामने है।
इन तकनीकी पेटेन्टों में से लगभग दो तिहाई पेटेन्ट नयी और उभरती हुई टेक्नॉलॉजी पर केंद्रित हैं, जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा, साइबर सुरक्षा और ब्लॉकचेन। दूरसंचार क्षेत्र में दाखिल किये गये पेटेन्टों में से लगभग ढाई प्रतिशत पेटेन्ट 5जी और 6जी पर केंद्रित हैं। ये आंकड़े दुनिया में नवाचार के मानचित्र पर भारत की मजबूत होती स्थिति को स्पष्ट करते हैं।
नैसकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार 2022 में समाप्त हुए दशक के दौरान भारत में पेटेन्ट फाइल करने के मामले में अभूतपूर्व बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। वार्षिक आधार पर यह वृद्धि 13.6 प्रतिशत है। सन 2010 और 2022 के बीच भारत में कुल 5,84,000 पेटेन्ट आवेदन दाखिल किये गये जिनमें से 2,66,000 टेक्नॉलॉजी के क्षेत्र से थे। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन तकनीकी पेटेन्टों में से लगभग दो तिहाई पेटेन्ट नयी और उभरती हुई टेक्नॉलॉजी पर केंद्रित हैं, जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा, साइबर सुरक्षा और ब्लॉकचेन। दूरसंचार क्षेत्र में दाखिल किये गये पेटेन्टों में से लगभग ढाई प्रतिशत पेटेन्ट 5जी और 6जी पर केंद्रित हैं। ये आंकड़े दुनिया में नवाचार के मानचित्र पर भारत की मजबूत होती स्थिति को स्पष्ट करते हैं।
इसी संदर्भ में एक अन्य समाचार उल्लेखनीय है जिसमें बताया गया है कि सन 2017 से 2022 के बीच भारत में शोध संबंधी प्रकाशनों (पेपर्स) की संख्या में 54 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। दुनिया भर में शोध के डेटा पर नजर रखने वाली फर्म साइवैल के रिसर्च इनसाइट्स डेटाबेस में कहा गया है कि भारत में हुई यह वृद्धि वैश्विक औसत के दोगुने से भी अधिक है और भारत की तुलना में शैक्षणिक लिहाज से अधिक विकसित माने जाने वाले कई पश्चिमी देशों से आगे है।
इस अवधि में भारत के 54 प्रतिशत के मुकाबले वैश्विक विकास दर 22 प्रतिशत की रही। भारत में इस दौरान लगभग 13 लाख अकादमिक पेपर पेश किये गये जो सिर्फ चीन (45 लाख), अमेरिका (44 लाख) और इंग्लैंड (14 लाख) से कम है। अगर भारत की वृद्धि दर बरकरार रही तो बहुत जल्दी हम तीसरे नंबर पर तो आ ही सकते हैं।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में डेवलपर मार्केटिंग के प्रमुख हैं)
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