साल 2018 से पटरी से उतरे अमेरिका-चीन रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने की गरज के साथ चीन ने वाशिंगटन की तरफ पींगे बढ़ानी शुरू की हैं। इसके संकेत पिछले सप्ताह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बयानों से ही लग गया था कि चीन कुलबुला रहा है कि अमेरिका और बाकी पश्चिम का बाजार उसके हाथ से छूटा जा रहा है इसलिए बातचीत शुरू करने में ही भलाई है।
चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने अपना स्वार्थ भांपते हुए अपने विदेश मंत्री वांग यी को तीन दिन के लिए अमेरिका भेजकर उस कवायद को अंजाम दिया है। कल वांग ने वहां विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से वाशिंगटन में भेंट की। कूटनीति विशेषज्ञों की नजर में यह बैठक अहम थी क्योंकि, उनके मन में सवाल है कि क्या दोनों देशों के बीच बिगड़े बोल वापस मधुर हो पाएंगे? हालांकि गत जून में एंटनी ब्लिंकन भी बीजिंग गए थे।
इस ताजा भेंटवार्ता का ब्योरा देते हुए अमेरिकी सरकार ने एक बयान जारी किया। इसमें कहा गया कि यह बातचीत दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक मुद्दों पर विचार से शुरू हुई और इन मुद्दों को जिम्मेदारी से देखने की बात हुई। दोनों विदेश मंत्रियों ने द्विपक्षीय सहयोग के विषयों पर भी मंथन किया। बयान में यह भी है कि एंटनी ब्लिंकन से चीन के विदेश मंत्री वांग यी एक तरह से ब्लिंकन के चीन दौरे के जवाब में मिलने आए हैं।
वांग ने अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन से भी भेंट की है। वांग का अमेरिका दौरा चीन की उस आशंकाओं से भी उपजा बताया जा रहा है जो उसे भारत के तेजी से उभरने को लेकर हुई होगी। यह आशंका नई दिल्ली में जी20 के सफल आयोजन और उससे पूर्व भारत—अमेरिका संबंधों में आ रही नजदीकी से भी उपजी होगी। चीन को यह लगने लगा होगा कि यदि विश्व के इस हिस्से में भारत की अर्थव्यवस्था ही नहीं, कूटनीति भी इस तरह आगे बढ़ती गई तो पश्चिम में उसकी कोई पूछ नहीं रह जाएगी।
चीन की अर्थव्यवस्था भी लगातार उतार पर है। भारत सहित अमेरिका और पश्चिमी देशों के बाजारों से छुट्टी होने के बाद चीनी माल उस पैमाने पर नहीं बिक रहा है जिस पर कभी बिका करता था। बड़ी कंपनियों ने भी चीन में काम बंद करके भारत में जमाना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही यूरोपीय संघ बहुत तेजी से एक आर्थिक गलियारे पर काम कर रहा है जो चीन के 130 देशों को झांसे में लेकर चलाई जा रही बेल्ट एंड रोड परियोजना को पानी पिला सकता है। उसके पूरा होने पर तो चीनी परियोजना का असफल होना तय माना जा रहा है। ऐसे में चीन नहीं चाहता होगा कि पश्चिम में उसकी मौजूदगी कमतर हो जाए। इसके लिए संभवत: अमेरिका से बंद हुई वार्ता को चालू करना उसे बेहद जरूरी लग रहा है।
यूरोपीय संघ बहुत तेजी से एक आर्थिक गलियारे पर काम कर रहा है जो चीन के 130 देशों को झांसे में लेकर चलाई जा रही बेल्ट एंड रोड परियोजना को पानी पिला सकता है। उसके पूरा होने पर तो चीनी परियोजना का असफल होना तय माना जा रहा है। ऐसे में चीन नहीं चाहता होगा कि पश्चिम में उसकी मौजूदगी कमतर हो जाए। इसके लिए संभवत: अमेरिका से बंद हुई वार्ता को चालू करना उसे बेहद जरूरी लग रहा है।
एक और महत्वपूर्ण पहलू है। अमेरिकी खुफिया संस्था एफबीआई के निदेशक ने अभी तीन दिन पहले ही एक रिपोर्ट जारी करते हुए बयान दिया है कि अमेरिका चीन की विभिन्न क्षेत्रों में कथित जासूसी की शंका के चलते हजार से ज्यादा मामलों पर जांच चल रही है। शायद चीन को लगा है कि अमेरिका को फिर से बातों के झांसे में लेकर अपना कारोबार पटरी पर लाया जाए और कूटनीतिक दबाव बनाकर जांच वगैरह जैसे झमेलों को दूर किया जाए।
लेकिन, विशेषज्ञों की राय में अभी यह कहना जल्दी होगी कि चीन एक बार फिर से अमेरिका से वही विश्वास पा लेगा और शायद जल्दी ही दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य हो जाएंगे।
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