साबरमती संवाद में एक सत्र था-‘डर के आगे जीत।’ इसमें गोवा में कार्यरत एक आईपीएस अधिकारी निधिन वाल्सन ने अपनी आपबीती सुनाई। वाल्सन कैंसर से पीड़ित थे, लेकिन उन्होेंने दृढ़ इच्छा-शक्ति से उसे पराजित कर दिया। आज वे सामान्य जीवन जी रहे हैं। प्रस्तुत हैं उनकी आपबीती के संपादित अंश-
एक इंसान के लिए सबसे बड़ी परीक्षा की घड़ी वह होती है, जब उसका शरीर ऐसे दर्द से जूझ रहा होता है, जिसकी कोई स्पष्ट वजह दिखाई नहीं देती। पूरे शरीर को निचोड़ देने वाले उस दर्द से मैं नवंबर, 2020 से जनवरी, 2021 तक पीड़ित रहा। इसी बीच मेरा स्थानांतरण गोवा हो गया। गोवा आने के कुछ ही दिन बाद एक रात बजे मैं एक चीख के साथ उठा। मेरी कमर के आसपास बहुत तेज दर्द हो रहा था। मेरी चीख सुनकर सब जाग गए, बच्चे भी।
यहां तक कि वे रोने लगे। मैंने उन्हें समझाया, ‘‘कुछ नहीं बेटा, आचा (पिताजी) ने बहुत बुरा सपना देखा है, चिंता की कोई बात नहीं है।’’ सब निश्चिंत हो गए। कुछ देर के लिए दर्द बिल्कुल गायब हो गया, लेकिन लगभग 3 बजे के आसपास मुझे फिर से कमर में दर्द शुरू हुआ। मैं फिर उठा। इस बार मैंने कोई आवाज नहीं की। मन में बस यही आया, ‘‘हे भगवान, मेरे साथ क्या हो रहा है?’’ मैंने तय किया कि जल्दी से जल्दी डॉक्टर मिलता हूं। वास्तविकता में मैं उस रात के बाद अगले दो महीने तक नहीं सो पाया।
रोग की पहचान में हुई चूक
अगले दिन सुबह मैं अस्पताल गया। मैंने आर्थो से शुरुआत की, फिर सर्जन के पास गया, न्यूरो-सर्जन, न्यूरोलॉजिस्ट और एक सामान्य चिकित्सक से भी मिला। जांच की एक लंबी सूची मिली। सभी जांच कराने और परिणाम प्राप्त करने में लगभग एक सप्ताह लग गया। डॉक्टरों में सबसे ज्यादा विश्वास दिखाया था जनरल फिजिशियन ने। उनके शब्द मेरे कानों में आज भी गूंजते हैं, ‘‘सर, आप एक तनावपूर्ण नौकरी कर रहे हैं। आपको कोई दिक्कत नहीं है। मैं आपके कई साथियों को जानता हूं। इस प्रकार की स्थिति सामान्य है। चिंता की कोई बात नहीं है, घर जाओ, योग करो, हंसते रहो, स्विमिंग पूल में तैरो…।’’
‘आयरनमैन’ प्रतियोगिता जीतने के लिए आठ घंटे के अंदर 1.9 किमी समुद्र में तैराकी करनी होती है और 90 किमी साइकिल चलानी पड़ती है। साथ ही 21 किमी दौड़ना पड़ता है। बीमार होने के बावजूद मैंने इसका अभ्यास शुरू कर दिया।
लेकिन दिल्ली एम्स में कार्यरत मेरे एक सहपाठी ने मेरे दर्द के शुरुआती लक्षणों को गंभीरता से लिया। उन्होंने मुझे एक विस्तृत एमआरआई कराने की सलाह दी। उन्होंने अपने एक डॉक्टर दोस्त से मिलने की सलाह दी, जो गोवा के मणिपाल अस्पताल में कार्यरत थे। मैं तैयार हो गया। संयोग से उनके डॉक्टर दोस्त शहर से बाहर थे, इसलिए उन्होंने एक दूसरे न्यूरोलॉजिस्ट के साथ मेरे मिलने का समय तय कराया, जो काफी अच्छे थे। मैं उनके पास गया। उन्होंने मेरी अच्छी तरह से जांच भी की, फिर कहा, ‘‘मुझे अभी कुछ ज्यादा तो नहीं दिख रहा। फिलहाल, कुछ दिन के लिए दवाई बंद करके देखते हैं।’’
न्यूरोसिस से साइकोसिस तक
इसी बीच डॉ. बेंज और डॉ. आगस्टस गोवा आए। बेंज मेरे करीबी दोस्त और पारिवारिक डॉक्टर हैं। मैंने उन्हें अपनी बीमारी के बारे में बताया और उनसे संबंधित सभी मसलों पर चर्चा की। मैंने उन्हें सभी जांच के परिणाम और पिछले तीन सप्ताह में मिले चिकित्सा नुस्खे दिखाए। मैंने उन्हें यह भी बताया कि डॉक्टरों का क्या कहना है। चूंकि इसमें वरिष्ठ डॉक्टरों की राय शामिल थी, इसलिए बेंज और आगस्टस ने भी वही माना। हालांकि इन लोगों ने भी मुझे अप्रत्यक्ष रूप से कहा कि हम आपके दर्द की कल्पना कर सकते हैं।
दर्द के कारण दौड़ना और भारी कसरत मेरे लिए असंभव सा हो गया था। साथ ही अब मेरे टखनों में भी दर्द उभरने लगा था। दाहिने टखने में सूजन आ गई थी। मुझे कोई मोच वगैरह नहीं आई थी, फिर भी दाहिने टखने, दोनों घुटनों में दर्द हो रहा था। इस दर्द को दूर करने के लिए मुझे योग बेहतर विकल्प लगा।
जनवरी, 2022 में दूसरी कीमोथेरेपी के बाद मैंने गोवा के डीजीपी और मुख्य सचिव को फोन किया कि सर, अब मैं वापस काम पर आना चाहता हूं। एक कमरे में सिमट गया हूं। जीवन पहाड़ लगने लगा है। उन्होंने मुझे समझाया और कहा कि इलाज पर पूरा ध्यान दो, काम की चिंता मत करो। फिर मुझे एक दिन अचानक बुखार आ गया। बुखार बहुत तेज था। अस्पताल में भर्ती कराया गया। अब मुझे लगा कि धैर्य नहीं खोना है, हिम्मत से काम लेना है। इसके बाद मैंने शारीरिक गतिविधियों को बढ़ा दिया। बीमारी में इसका लाभ मिला।
मैं दर्द से तड़प रहा था, लेकिन ऐसा क्योंं हो रहा है, इसका जवाब किसी के पास नहीं था। मैं अच्छे-अच्छे डॉक्टरों के पास गया, लेकिन उनकी ओर से कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला। अंतत: 2021 में एक दिन पता चला कि मुझे कैंसर है। दर्द का सही कारण पता चला तो मैं दु:खी नहीं हुआ। हां, मेरे आसपास की पूरी दुनिया पर उदासी के बादल जरूर छा गए। पर मेरे मन की गहराइयों में आनंद की धारा फूट रही थी, क्योंकि मुझे बेचैन करने वाला सवाल ‘दर्द क्यों हो रहा है’ का जवाब मिल चुका था।
लगभग एक वर्ष तक बीमारी से जूझता रहा। कीमोथेरेपी शुरू हो गई। बाल झड़ गए। शरीर कमजोर हो गया। इस दौरान चार बार मुझे लगा कि अब शायद जिंदगी नहीं रहेगी। जनवरी, 2022 में दूसरी कीमोथेरेपी के बाद मैंने गोवा के डीजीपी और मुख्य सचिव को फोन किया कि सर, अब मैं वापस काम पर आना चाहता हूं। एक कमरे में सिमट गया हूं। जीवन पहाड़ लगने लगा है। उन्होंने मुझे समझाया और कहा कि इलाज पर पूरा ध्यान दो, काम की चिंता मत करो। फिर मुझे एक दिन अचानक बुखार आ गया। बुखार बहुत तेज था। अस्पताल में भर्ती कराया गया। अब मुझे लगा कि धैर्य नहीं खोना है, हिम्मत से काम लेना है। इसके बाद मैंने शारीरिक गतिविधियों को बढ़ा दिया। बीमारी में इसका लाभ मिला।
उन्हीं दिनों कुछ लोगों ने सलाह दी कि आप ‘आयरनमैन’ प्रतियोगिता का अभ्यास करें। इसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता था। नवंबर, 2022 में वह प्रतियोगिता होने वाली थी। यानी कुछ ही महीने बचे थे। इसी में तैयारी करनी थी। इसके बावजूद मैंने तय कर लिया कि जरूर उस प्रतियोगिता में हिस्सा लेना है। यानी हर हाल में ‘आयरनमैन’ बनना है, लेकिन यह इतना आसान नहीं था। ‘आयरनमैन’ 70.3 रेस सबसे कठिन चुनौतियों में से एक है। इसमें 1.9 किमी समुद्र में तैराकी, 90 किमी साइकिल चलाना और 21 किमी दौड़ना शामिल होता है।
इसे साढ़े आठ घंटे के निर्धारित समय के भीतर पूरा करना होता है। बीमार होने के बावजूद मैंने इसका अभ्यास शुरू कर दिया। इसी बीच फरवरी, 2022 में डॉक्टरों ने मुझे कैंसर-मुक्त घोषित कर दिया। इसके बाद तो मैं ‘आयरनमैन’ बनने के लिए जी-जीन से लग गया। कड़ी मेहनत की। इसका लाभ यह हुआ कि मैंने अपनी 70.3 मील की दूरी आठ घंटे, तीन मिनट और 53 सेकंड में ही तय कर ली।
यह सबने मैंने इसलिए किया ताकि मैं दुनिया को बता सकूं कि कैंसर जैसी बीमारी को भी हराया जा सकता है।
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