पीड़ादायक बात यह है कि मानवाधिकार वह कल्पना है जिसमें मानव की पीड़ा का कोई स्थान नहीं होता है, बल्कि दानव के हितों का पोषण करने के लिए मानवाधिकार की कल्पना की जाती है।
मानवाधिकार क्या होते हैं? अगर पिछले काफी समय से चले आ रहे संदर्भ में और दुनिया भर के स्वयंभू मानवाधिकारवादियों की दृष्टि से उनका राजनीतिक और व्यावहारिक अर्थ खोजा जाए, तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानवाधिकार कोई स्वच्छंद और हिंस्र-पाशविक कल्पना होते हैं, जो उसके कवि के निजी रोमांटिसिज्म में पाई जाती है। पीड़ादायक बात यह है कि मानवाधिकार वह कल्पना है जिसमें मानव की पीड़ा का कोई स्थान नहीं होता है, बल्कि दानव के हितों का पोषण करने के लिए मानवाधिकार की कल्पना की जाती है।
हमास ने 7 अक्तूबर को इस्राएल पर हमला किया। नागरिकों को बंधक बनाया, महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार किए, जिन्हें पूरी दुनिया ने देखा सिर में गोली मार कर बच्चों की हत्याएं की गई, सैकड़ों लोगों को बंधक बना कर गाजा क्षेत्र ले जाया गया, और न जाने क्या-क्या किया गया। यहां तक मानवाधिकार का कोई सवाल ही नहीं था। जैसे ही इस्राएल की जवाबी कार्रवाई शुरू हुई, मानवाधिकार रूदाली शुरू हो गई। लेकिन शायद शोर में दब गई।
लिहाजा, नए सिरे से मंच सजाया गया। अपना ही रॉकेट अपने ही रुग्ण-घायल लोगों के जमावड़े पर दाग दिया गया। अब फिर बड़े पैमाने पर मानवाधिकारवादी रूदाली शुरू की गई। लेकिन तथ्यों के आलोक में यह दांव भी फुस्स हो गया। स्पष्ट है कि मानवाधिकारवादी रूदाली का एक पूर्वनिर्धारित समय होता है, जो आतंकवादियों और उनके लेफ्ट-लिबरल वकीलों की सुविधा के अनुरूप होता है।
जब आतंकवादियों पर कार्रवाई होगी, तो मानवाधिकारों का मामला बन जाएगा, और जब आतंकवादी निरीह नागरिकों की हत्याएं-बलात्कार और बाकी जघन्यता करेंगे, तो वही रूदाली गिरोह या तो दूसरी ओर देखने लगेगा, या महीन ढंग से काते गए शब्दों से उसके लिए ढाल पेश करने की कोशिश करेगा। यह ढाल शाब्दिक होती है, आभासी होती है। भौतिक ढाल वे मनुष्य होते हैं, जो उनके नियंत्रण में होते हैं। लगता है ऐसे में फिलिस्तीनियों को सावधान रहना होगा, क्योंकि मानवाधिकारवादी रूदाली के तीसरे चरण के लिए फिर मानवों की कुर्बानी की आवश्यकता पड़ सकती है। जाहिर है, यह कुर्बानी के मानव वे फिलिस्तीनी ही हो सकते हैं, जो या तो आतंकवादियों के हथियारों के वश में हैं या आतंकवादियों के दिखाए सपनों के वश में हैं।
इस्राएल के प्रति हमास के व्यवहार को याद करें। पकड़े गए सैनिकों को बारूद में लपेट कर जीवित जला देना, अपने ही हिमायती लोगों को अपने लिए मानव ढाल बनने के लिए मजबूर करना, उन्हें युद्ध क्षेत्र में रोकना, जिससे अधिक से अधिक लोगों की जान जा सके यह किसी युद्ध की स्थिति नहीं है, यह शिकार करने वाले पशुओं से संघर्ष है। यह सारी मानवता को चुनौती है, उसके लिए अस्तित्व रक्षा का प्रश्न है।
और इनकी शत्रुता किससे हैं? निश्चित रूप से यह सभ्यता और पाशविक बर्बरता का संघर्ष है, जो लगभग डेढ़ हजार वर्ष से चला आ रहा है। सभ्यता नगर निर्माण करती है, पाशविकता उन पर रॉकेट दागती है, आत्मघाती हमले करती है, उन्हें नष्ट करती है। सभ्यता कला और संस्कृति का विकास करती है, पाशविकता उसे मटियामेट करने का प्रयास करती है। सभ्यता ज्ञान और विज्ञान की ओर बढ़ती है, पाशविकता उसे अपना शत्रु और वर्ग शत्रु घोषित कर देती है। सभ्यता संचार माध्यमों का निर्माण करती है, ताकि लोगों तक सूचनाएं पहुंचाई जा सकें, पाशविकता उनका इस्तेमाल झूठ फैलाने के लिए करती है, ताकि लोगों को निशाना बनाया जा सके। सभ्यता मानवीयता को पालती-पोसती है, पाशविकता उन मनुष्यों को मानव दीवार बनाने में इस्तेमाल करती है।
लोकतंत्र सभ्यता का सबसे सजीव परिलक्षण होता है। यही कारण है कि पाशविक बर्बरता का सहज निशाना लोकतांत्रिक देश और सभ्य समाज ही होते हैं। सभ्यता लोकतंत्र को सजाती-संवारती है, पाशविकता उसे शत्रु के किले की तरह ध्वस्त करने का प्रयास करती है। जैसे-अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति के निवास- ‘कैपिटल हिल’– पर हमला करके उस पर कब्जा किया गया। इस बार इस्लामिस्टों ने किया, पिछली बार ब्लैक लाइव्स मैटर के नाम पर अराजकतावादियों ने किया था।
हमारे यहां भी इसी तरह का प्रयास कम से कम दो बार हो चुका है। एक बार पंजाब के राजमार्ग पर, और दूसरी बार लाल किले की प्राचीर पर। विदेशों में भारतीय दूतावासों और वाणिज्य-दूतावासों पर हमले तो हाल के समय तक जारी रहे हैं। इस्लामिस्टों, अराजकतावादियों और कथित उदारवादियों के घालमेल की सभ्यता और लोकतंत्र के प्रति यह शत्रुता विश्वव्यापी है, हमारे-आपके पड़ोस तक में है या हो सकती है।
फिर एक बार इस्राएल के प्रति हमास के व्यवहार को याद करें। पकड़े गए सैनिकों को बारूद में लपेट कर जीवित जला देना, अपने ही हिमायती लोगों को अपने लिए मानव ढाल बनने के लिए मजबूर करना, उन्हें युद्ध क्षेत्र में रोकना, जिससे अधिक से अधिक लोगों की जान जा सके यह किसी युद्ध की स्थिति नहीं है, यह शिकार करने वाले पशुओं से संघर्ष है। यह सारी मानवता को चुनौती है, उसके लिए अस्तित्व रक्षा का प्रश्न है।
@hiteshshankar
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